स्त्री दिवस


लिख तो सकता हूँ मैं

बड़ी-बड़ी बातें औरों की तरह

कि मनुष्य को जन्म देती है वो

कि सबसे बड़ा दर्द सहती है वो

या और भी बहुत कुछ

पर खोखला ही होगा ना वो?

मैं कैसे जान सकता हूँ

वो प्रसव पीड़ा

जब जन्म देती हो तुम एक नए मनुष्य को

या वो अपमान वेदना

जब वो मनुष्य

पिता, पति या पुत्र होकर

तुम्हें कमजोर समझ कर देता है

नहीं,

ये भी नहीं जान सकता मैं कभी

कि अपना घर, अपने माँ-बाप छोडकर

किसी और घर में

किसी और घर के होने के एहसास

के साथ कैसे प्यार किया जा सकता है

मैं बस इतना ही कर सकता हूँ

अगर शुभकामना देना चाहूँ

कि पुरुष होने के उस दंभ का

जो समाज ने दिया है

अंत कर दूँ

और ये स्वीकार कर लूँ पूरे हृदय से

कि मैं हूँ अगर तुम हो...

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