चिंटू की होली

 

           नफरती चिंटू लातूर में रहता था उसे दिन-रात भारत माता की जय बोलने की आदत थी और जो जवाब में नहीं बोलता था उसका वो मुँह तोड़ देता था। पढ़ाई-लिखाई को वो समय की बरबादी मानता था। ऐसे प्रतिभाशाली लोगों के लिए जो बिना पढे-लिखे विद्वान कहलाना और बिना करे-धरे देशभक्त बनना चाहते थे नागपुर में एक विश्वविद्यालय स्थापित हुआ जिसने ये घोषणा की कि सिर्फ चिंटू प्रजाति ही असली और सबसे महान प्रजाति है और दूसरे सभी प्रकार के इन्सानों के लिए एक से बढ़कर एक गलियों की रचना की। वहां से 1-1 लाइन का इतिहास जारी होता था और सभी नफरती चिंटू उसे पत्थर की लकीर मानते थे। मसलन भगत सिंह के बारे में वो इतना ही जानते थे कि उन्होने असेंबली में बम फोड़ा था...अब अगर इसके आगे कोई उन्हें ये कहने की कोशिश करे की बम उन्होने इस तरह से फेंका था कि किसी की जान न जाये तो वो उसी की जान ले सकते थे या फिर अगर भगत सिंह खुद भी आकर कहे कि अबे मूरखों, मैं वैसा नहीं था जैसा तुम समझते हो, या फिर ये कि "मेरा रंग दे बसंती चोला" से मेरा मतलब वो चोगा नहीं था जो तुम्हारे ढोंगी बाबा लोग पहनते हैं तो ये लोग उन्हें देशद्रोही साबित करके उनकी जान भी ले सकते हैं।
                           तो साहब इस तरह के जियाले के शहर में पानी की भारी किल्लत हो गई और वो भी होली के टाइम पे। अब वो तो हर होली पे उन लोगों को गालियां देता आया था जो कि फिक्रमंद थे कि साल दर साल बारिश कम होती जा रही है और पानी की कमी होती जा रही है...चिंटू का दर्शन था कि साल भर पानी बचाव और एक दिन जम के होली खेलो और ये लोग हिंदुओं के दुश्मन हैं ये बकरे काटने पर तो कुछ नहीं कहते वगैरह। अब पानी बचाने से बकरे काटने का क्या संबंध है ये आपको जानना है तो आपको दूसरा जन्म लेना पड़ेगा और भगवान से ये मांगना पड़ेगा कि बुद्धि तो दियो ही मत। हालांकि ऐसा बिलकुल नहीं है कि साल भर वो पानी बचाने में ज़मीन आसमान एक कर देता हो...साल भर भी वो पानी सहित प्रकृति की दूसरी चीजों की ऐसी-तैसी करता है, और होली पर पूरी तरह से पानी की। जो लोग पानी-पानी चिल्लाते हैं उनका कुछ समझ नहीं आता, अरे भाई परमात्मा ने बनाया पानी अब वही इंतजाम करेगा ना, हम क्या कर सकते हैं?

 तो ऐसे महान चिंटुओं के शहर में दंगे हो गए पीने के पानी एक लिए, धारा 144 लगानी पड़ी...इधर धर्म का सवाल था होली तो मनानी ही थी। वो आदमी ही क्या कि पीने जैसे गैर ज़रूरी काम के लिए होली खेलने जैसा धार्मिक कार्य न करे। घर में बहुत मेहनत से जमा हुआ पानी उसने एक टंकी में भरा...बच्चों को प्यास लग रही थी पर उसने पानी छूने भी नहीं दिया। कम पड़ा तो उसने इधर-उधर से पानी लूट लिया...आखिर धरम का काम था। वैसे भी साल भर ये चंदा वो चंदा करके उठा-पटक किया ही करते थे और उसके जैसे महान लोग भरे पड़े थे जिन्होने होली खेलने की महिमा से व्हाट्स एप और फेसबुक पाट दिये थे। इन्हें ये क्रांति लग रही थी। तो साहब खूब जम के खेली सभी चिंटुओं ने होली...बच्चे प्यासे मर गए पर धर्म पर आंच नहीं आने दी। दूसरे दिन समझ आया कि अब तो न नहा सकते, न धो सकते, न पी सकते, न खा सकते तो इसी अवस्था में चिंटू ने प्राण त्यागे। दूसरे कुछ चिंटुओं ने उसकी प्रतिमा स्थापित करनी चाही पर मूर्ति बनाने में, उसे लगाने में, उदघाटन के कार्यक्रम में, पूजा-पाठ में सबमें पानी लगेगा...अब इतना पानी इसमें लगा दिया तो अगले साल फिर होली खेल कर धर्म कौन बचाएगा...सोच रहे हैं चिंटूस पर सोचने की आदत है नहीं दिमाग को सो बस खुजा ही पा रहे हैं। सहायता कीजिये कुछ इन दिव्याङ्गो की और प्रण लीजिये कि पूरे देश में लातूर जैसी स्थिति ला देंगे, पानी के लिए भले ही सर फोड़ने की नौबत आ जाए पर होली ज़रूर खेलेंगे... आखिर होली हमारा त्योहार है इसे जान देकर भी मनाएंगे...
होली है...सा रा रा रा...

टिप्पणियाँ

  1. Mitra bahut hi achi soch. par AK prashn ki fir isse kisi vishesh dharm ya sanghathan se jod Kar dekhana kahan tak jayaz hai. Agar apki bhasha me kahen to chintu hone ke liye kisi dharm ya sanghathan jimedar naheen . uske poorv bhi chintu Rahe honge aur aj bhi hai.chintu hone ke liye chintu khud jimedar hai. Yadi hum chahte hain chintu chintu na Rahe to hame chintu par dhyan Dena hoga. Na ki ye kahna ki kisi dharm NE ya sanghathan NE use chintu banaya.

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  2. Chintu kisi bhi dharm ya desh me ho sakta hai, bilkul sahi lekin ye post prerit hai un lagaatar chal rahe sandeshon se jo ye kah rahe hain ki hum to khoob holi khelenge aur jo log paani bahaane ko mana karte hain wo ek dharm vishesh ke virodhi hain. Holi karodo log khelte hain, 1-1 vyakti 4-5 balti bhi kharch kare to sochiye kitna paani barbaad hota hai. aise me ye message dena to banta hi hai ki bhai gulaal le lo par paani bacha lo.
    aapki baat bilkul durust hai ki gair-jimmedarana vyavhar kisi ek dharm se sambandhit nahi hai par ye post specific hai :)

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