क्या हमें शर्म आती है?


     



  


पता नहीं, सही तरह से कुछ लिख पाऊँगा या नहीं। तीन दिनों से दिमाग स्थिर नहीं है, जब से 5 साल की बच्ची के साथ हुए बलात्कार और दरिंदगी की खबर सुनी है। कहीं चैन नहीं मिल रहा था तो सोचा शायद लिखने से थोड़ी शांति मिले। ...लेकिन फिर सोचता हूँ, अब शांति नहीं मिलनी चाहिए, किसी को भी नहीं। ये बेचैनी बढ़नी चाहिए तब तक जब तक बिना कुछ किए जीना मुश्किल हो जाये। मैं चाहता हूँ कि मैं खुद उस आदमी के पास जाऊँ जिसने ये शर्मनाक हरकत की है और शहर मे जितनी भी प्लास्टिक की बोतलें और मोमबत्तियाँ हैं, उसके अंदर डाल दूँ। कुछ तो करना होगा ना? मोमबत्तियाँ कब तक जलाएंगे? जो बेशरम होते हैं उन्हें प्रतीकों से कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर इतनी ही समझ इस देश के लोगों मे होती तो ये दुर्दशा नहीं होती जो आज हो रही है।

       उस आदमी को मैं तो जानवर भी नहीं कहता क्योंकि जानवर इस तरह की हरकत नहीं करते...वो परिभाषा से परे कोई चीज़ है। और सिर्फ वही आदमी क्यों? वो पुलिसवाले भी बराबर के अपराधी हैं जिन्होने मामले को दबाने की कोशिश की, उन्हें भी इस आदमी के साथ ही लटकाया जाना चाहिए। नाकारापन की हद है ये।  ज़रा सोचिए, अपराधी न कोई बड़ा आदमी था, न पैसे वाला था लेकिन फिर भी पुलिस 2000 रुपये अपने पास से दे रही थी मामला निबटाने के लिए। क्यों? सिर्फ इसलिए की इन निकम्मों को कोई काम न करना पड़े, इन्हें अपनी कुर्सी से उठना पड़ेगा, अपनी तोंद को कष्ट देना पड़ेगा उस आदमी को ढूँढने के लिए। 2000 रुपये का क्या है? वो तो 1 दिन मे 10 बार वसूले जा सकते हैं।

       क्यों इस देश मे जानवर ही पैदा हो रहे हैं? महानता के नारे लगाने से कोई देश महान नहीं होता, मुझे तो आज तक महानता की कोई बात यहाँ नज़र नहीं आई। न नेता ही कभी कोई कायदे की बात करते नज़र आते हैं न आम आदमी। सब भौंडेपन के चलते-फिरते नमूने हैं। मैं उच्च-शिक्षित लोगों के बीच रहा हूँ और दुकानदारों की सोहबत भी की है, मुझे कहीं कोई अंतर नज़र नहीं आता। जहां कुछ लोग इकट्ठा होते हैं उनकी बातें अपने आप एक ही दिशा मेँ चली जाती हैं – कौन कितना कमा रहा है...। ऐसा लगता है "कमा खा लेगा" भारतीयों के धरती पर पैदा होने का एकमात्र उद्देश्य है। हर माँ-बाप अपने बच्चो को 'कमाओ खाओ' के अलावा और कुछ नहीं सिखाते। स्कूल भी बस 'कमा-खा' रहे हैं इसलिए वो भी और कुछ नहीं सिखाते। कोई नहीं बताता की प्रकृति क्या है? पेड़ क्या हैं? पहाड़ क्या हैं? समाज क्या है? इंसान क्या है? इंसानियत क्या है? सिर्फ यही बताया जाता है की डॉक्टर बहुत कमाता है और इंजीनियर बहुत कमाता है। नतीजा, बस जानवर ही बन रहे हैं घर और शिक्षा के इन कारखानों मेँ। कुछ बलात्कार जैसे कर्म करते हैं और जो बलात्कार नहीं करते वो भी जानवरों की तरह बस खा रहे हैं और सो रहे हैं।

       कहाँ है हल?? सज़ा तो मिलनी ही चाहिए लेकिन और भी कुछ है जो तुरंत बदला जाना चाहिए । समस्या पत्तों मेँ नहीं बीज मेँ है। मैं कोई नीती विशेषज्ञ नहीं लेकिन 3 चीज़ें तो मुझे समझ आती हैं जिनमें परिवर्तन आवश्यक है।

पहली – प्राथमिक शिक्षा की ज़िम्मेदारी देश के सबसे अच्छे दिमागों को दी जानी चाहिए, बाकी किसी भी काम से ज़्यादा तनख्वाह पर और सब विषयों से ज़्यादा नैतिक और व्यावहारिक शिक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए।  क्योंकि इंसान जो भी बनता है वो अपने जीवन के शुरुआती वर्षों मेँ ही बन जाता है। हाँ, लेकिन ये ना हो कि संस्कारों के नाम पर फिर पोंगा-पंडित बनाए जा रहे हैं। वो तो आज भी हो रहा है, माँ-बाप कमाओ खाओ के अलावा भगवान को जै-जै करना भी सिखाते हैं लेकिन उससे नुकसान ही ज़्यादा हुआ है, वो मन को समझाने का एक तरीका हो गया है कि मैं भगवान को नमस्कार तो करता ही हूँ इसलिए मैं बुरा नहीं हूँ फिर चाहे जितने भी गले काटूँ।

दूसरा – पुलिस की भर्ती की प्रक्रिया को पूरी तरह से बदलना ज़रूरी है। अभी तो तरीका ये है कि थोड़ी जुगाड़ और कुछ लाख रुपयों के सहारे कोई भी ऐरा-गैरा पुलिसवाला हो जाता है और इस तरह अब सिर्फ ऐरे-गैरे ही रह गए हैं पुलिस फोर्स मेँ। वो भी बस कमाने-खाने ही आए हैं तो उनसे दूसरे किसी काम की उम्मीद भी कैसे करें? तरीका ये हो कि ऐसी एक परीक्षा हो जिसमे उम्मीदवार के इरादे के बारे मे पता चलता हो और सिर्फ उन्हीं लोगों को लिया जाये जो सचमुच पुलिस होना चाहते हैं, जिनमे शारीरिक बल के साथ नैतिक बल भी है, वे किसी तरह कमाने-खाने का जुगाड़ करने नहीं आए हैं।

तीसरा – ये थोड़ा अटपटा ज़रूर है लेकिन मुझे लगता है ये ज़रूरी है। इस देश मे बच्चे पैदा करने के लिए भी कोई कानून होना चाहिए। हमारे यहाँ बच्चों के पालन-पोषण जैसी कोई बात लगभग नदारद है, यहाँ बच्चे अपने आप बड़े होते हैं। वे जो सीखते हैं अपने-आप सीखते हैं जैसा कि मैंने ऊपर कहा माँ-बाप कमाओ-खाओ के अलावा कुछ नहीं सिखाते। अधकचरी जानकारियों और अपने आस-पास के कुछ-एक लोगों के प्रभाव से वे अपने आप को बनाते हैं और साथ मे बहुत सारी कुंठाएँ इकट्ठी कर लेते हैं, यही कुंठाएँ बहुत सी समस्याओं को जन्म देती हैं। होना ये चाहिए कि बच्चे पैदा करने का अधिकार केवल उन्हें हो जो उन बच्चों को अच्छी तरह से पाल सके, उन्हें मूलभूत सुविधाएं और शिक्षा तो कम से कम दे ही सकें क्योंकि एक बच्चा सिर्फ एक व्यक्ति या परिवार को ही नहीं पूरे समाज को प्रभावित करता हैं। फिर ये उसका हक़ भी है क्योंकि वो अपनी मर्ज़ी से नहीं आया है, उसे पैदा करने वाला लाया है। अगर उसे चैन से जीने के साधन नहीं मिलते हैं तो ये उसके साथ अन्याय और धोखा है।  

मुझे पता है कि मैंने बहुत ज़्यादा मांग लिया है क्योंकि जो हालात अभी दिखाई दे रहे हैं उसमें ऐसे लोग अगर ढूँढे भी जाएँ तो पूरे देश मे पुलिस फोर्स की कुल संख्या 1000 के आस-पास ही होगी और इतनी ही बच्चों को शिक्षा देने वालों की... लेकिन शुरू तो कहीं से करना ही पड़ेगा ना कि इस देश मे जानवर नहीं इंसान बनने लगें
? कभी होगा हमारा देश महान लेकिन आज नहीं है, इस सच को जितनी जल्दी स्वीकार कर लें उतना ही अच्छा होगा क्योंकि ये अपने को महान मान लेने का ही नतीजा है कि हम निकम्मे हो गए। जो चीज़ सुदूर भूतकाल मे कभी थी उससे वर्तमान का कोई फायदा नहीं। उन लोगों को मंच से तुरंत उतार दिया जाना चाहिए जो अफीम की ये गोली लोगों को देते हैं कि तुम विश्वगुरु हो...ज़रूरत उन लोगों की है जो लोगों को ये आईना दिखाये कि तुम थे कभी गुरु लेकिन आज तो शिष्य भी नहीं बचे हो, तुम सबसे निचले स्तर पर खड़े हो अब अपना मन समझाने का कोई उपाय नहीं, अपने आप को ऊपर उठाओ तभी तुम्हें सम्मान मिलेगा वरना तुम्हारी गिनती जानवरों मेँ भी नहीं की जाएगी...।

टिप्पणियाँ

  1. बेनामी1:59 pm

    I agree with your views.
    The whole system needs rework.
    Temporary work-around se sirf is maamle pe saja hogi par ye fir na ho usne liye Jaagana hoga,

    Aam Aadmi, prashasan aur Shasan sabhi ko..

    Pawan

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  2. Importance of "Kamao Khao and BACHAO" and rest is "chalta hia" attitude is responsible. with malnutrition figure in kids as high as 47% and only 3% of population pays taxes even that priority is in shadows. I think most of social issues will be taken care of if wealth transfer from parents to kids become taxable and use that money to build social infrastructure.

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  3. Its just to depressing and scary how people could behave... being a mother I feel more safer outside India... I am not sure why gang rape case is still going on and on in the court... why the decision is not been made yet... I don't think I will be able to say Mera Bahat Mahan again...

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