एस पी बी - अनोखी आवाज़ के मालिक

 



जब हमें लगता था कि फ़िल्म के गाने जो पर्दे पर गा रहा है वही गा रहा है, तभी सलमान ख़ान की आमद हुई
और एक नई आवाज़ हमने सुनी...हमारे ज़हन मे उस आवाज़ का नाम सलमान ख़ान ही रहा तब तक, जब तक हमें ये समझ नहीं आ गया कि पार्श्व गायक क्या होता है।
सलमान ख़ान की वो दिलकश आवाज़ दर असल एस पी बालसुब्रमण्यम थे।
उस दौर में घर के आसपास, पान की दुकानों पर, कुल्फ़ी के ठेलों पर दो ही आवाज़ें आम थीं - एक मोहम्मद अज़ीज़ और दूसरी शब्बीर कुमार। हालाँकि इन दो आवाज़ों में अंतर मुझे कई सालों बाद समझ आया पर वो सलमान ख़ान वाली आवाज़ एक झटके में पहचान जाते थे। वो बिलकुल अलग थी अब तक सुनी आवाज़ों से। वो भारीपन और वो अंदाज़ सबसे अलग था।
फिल्म "मैंने प्यार किया" में ही पहली बार रु-ब-रु हुए और बाद के बरसों में उसके भी पहले के गीतों पर ध्यान गया।
80 के दशक में दक्षिण भारत के कई निर्माता, निर्देशक हिन्दी फिल्मों में सक्रिय थे, बल्कि बहुत सी दक्षिण भारतीय फिल्मों को उस दौर में हिन्दी में बनाया गया जिनमें जितेंद्र, श्रीदेवी, जयाप्रदा की जोड़ियाँ अक्सर होती थीं। कुछ इन निर्माताओं के कारण और कुछ फिल्म "एक दूजे के लिए" के संगीत की जबर्दस्त कामयाबी की वजह से, एस पी बी को हिन्दी फिल्मों में अच्छा ख़ासा काम मिलने लगा।
यहाँ तक कि किशोर कुमार उनसे अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगे थे। जब राजेश रोशन फिल्म कामचोर के गीत "तुमसे बढ़कर दुनिया में" के लिए उनके पास गए थे तो किशोर दा ने कहा था - "तू भी मेरे साथ ऐसा ही करेगा क्या जैसा सब कर रहे हैं? तू भी साउथ इंडिया वालों से गवाएगा?"
शायद उन्हें बुरा इसीलिए भी लगा हो कि लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ उन्होने बहुत काम किया था और उन्होने एस पी से न सिर्फ एक दूजे के लिए बल्कि अगली फिल्मों में भी गवाया था।
ख़ैर, ये हमारी खुशनसीबी ही कही जाएगी कि एस पी बी को हिन्दी फिल्मों में कामयाबी मिली और हमें बहुत से गीत उनकी आवाज़ में सुनने को मिले जो उन्हीं के लिए थे।
एक और क़िस्सा याद आता है। फ़िल्म "रोजा" का संगीत साउथ में धूम मचा चुका था, उसे हिन्दी में डब करने की योजना बनाई जा रही थी। रोजा ए आर रहमान की पहली फ़िल्म थी। हिन्दी में उस समय कुमार सानू और अल्का याज्ञनिक का राज था। उन्हीं से गवाना तय किया गया पर दोनों सफलता के घोड़े पर सवार थे, उन्होने ये कहकर इन्कार कर दिया कि संगीतकार नया है। तब एस पी बी और हरिहरन से ही गीत गवाए गए। मुझे लगता है डेस्टिनी ही थी क्योंकि जो प्रभाव उन गीतों में एस पी बी की आवाज़ पैदा करती है वो कुमार सानू कभी नहीं कर पाते।
सलमान खान के शुरुआती दौर के गीत गाने के बाद कुछ तो नदीम-श्रवण के कारण गीत कुमार सानू को जाने लगे और कुछ ये भी कहा जाता है कि सलमान के साथ उनका कोई विवाद हुआ था जिसके बाद सलमान ने उनका कैरियर प्रभावित किया।
जो भी हो 80 के दशक के मध्य से 90 के दशक के मध्य तक, उनके कई बेहतरीन गीत हमें सुनने को मिले। वो संगीत अमर है, वे गीत अमर हैं और उन्हीं में अमर रहेंगे एस पी बी जिन्होने अपनी खास अदायगी से उन्हें और खास बना दिया।
मेरे कुछ पसंदीदा एस पी बी गीत -
1। आके तेरी बाहों में
2। साथिया ये तूने क्या किया
3। ये वक़्त न खो जाये
4। ये हसीन वादियाँ
5। मेरे रंग में रंगने वाली
6। तेरे मेरे बीच में
7। हम न समझे थे बात इतनी सी
8। दीवानी दीवानी
9। रोजा
10। रूप सुहाना लगता है
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