गरदा उड़ा दिया...


फ़िल्म का ये गीत ही जैसे घोषणा कर रहा है पूरे एल्बम के बारे में। उस जादूगर ने हाथ के एक झटके में सबको चित कर दिया। फ़िल्म संगीत क्या होता है, एक बार फ़िर बता दिया। उम्मीद जगती है कि 90s में फ़िल्म संगीत की दिशा जिस तरह आर रहमान ने बदली थी, क्या एक बार फिर वैसा हो सकता है?? जबकि अब हालात ऐसे हैं कि फ़िल्म संगीत मरणासन्न है। बहरहाल, 2021 के पूरे पाप इस एक अल्बम ने धो दिए। मेरी रहमान से शिकायत दूर हो गई, वो जो बात उनके पुराने गीतों में थी वो फिर सुनाई दी, पूरी तरह वेस्टर्न नहीं बल्कि हिंदुस्तानी और पश्चिमी संगीत का वही अद्वितीय रहमानिया मिश्रण।

वही हुआ जो रहमान के संगीत के साथ होता है, पहली बार सुनने में समझ नहीं आया, बल्कि कुछ सवाल भी उठे जैसे, ढोल का इतना उपयोग क्यों? पर समझ आने पर भी वो संगीत एक हुक छोड़ जाता है, जो फिर सुनने पर मजबूर करता है, फिर जितनी बार सुनते जाएँ, एक नई चीज समझ आती है। मैं पिछले एक हफ्ते से सुन रहा हूँ और इन गीतों का जादू कईं गुना बढ़ चुका है। ऑर्केस्ट्रा, जो फिल्मी गीतों से लगभग नदारद ही हो चुका है, वो अपनी पूरी शान--शौक़त के साथ मौजूद है, और यही रिच ऑर्केस्ट्रा अहसास करवाता है अलग ही तरह की ऊर्जा का।

1. गरदा उड़ा दिया - दलेर मेहंदी, इस एनर्जी से भरपूर गीत के लिए सबसे मुफ़ीद आवाज़ यही थी, फ़िर चाहे वो आजकल बाज़ार से बाहर हो। दलेर मेहदी ने इससे पहले भी रहमान के साथ दो गीत गाये हैं। आपको याद होगा फ़िल्म "रंग दे बसंती" का टाइटल सॉन्ग, और जो नहीं याद होगा वो है एक गुमनाम सी एक्शन फिल्म 'लकीर' का गीत "आजा नच ले" गीत में ढोल, ट्रम्पेट और कोरस का जबरदस्त इस्तेमाल है। इस गीत को तमिल में "मनो" ने गाया है, वही मुक़ाबला के गायक। दोनों आवाज़ें बहुत मिलती हैं।


2. तेरे रंग - इस गीत को जितनी बार सुनता हूँ, मुझे सोनू निगम याद आते हैं। इसे गाया हरिचरण और श्रेया घोषाल ने है, और हरिचरण ने अच्छा ही गाया है, पर मेरी स्ट्रॉन्ग ओपिनियन है कि इसे अगर सोनू से गवाया जाता तो ये और ज़्यादा मीठा लगता। इस धुन की मिठास के साथ सोनू की आवाज़ ही मैच करती है। रहमान को अपने इन पुराने साथियों को फ़िर लाना चाहिए, खासकर हरिहरन को। श्रेया तो ख़ैर हैं ही सर्वश्रेष्ठ। पहली बार इसे सुनकर मुझे लगा था कि ऐसे गीत में ढोल का उपयोग क्यों किया लेकिन फिर समझ आया कि ढोल फ़िल्म की थीम का हिस्सा है, इसलिए हर गीत में वो मौजूद है, और 2-3 बार सुनने के बाद ये प्रयोग भी अनूठा लगा।

3. तुम्हें मोहब्बत है - फ़िल्म के बेहतरीन गीतों में भी सबसे बेहतरीन गीत। लफ़्ज़ों की बात करें कि धुन की, या कि गायकी की? ये दूसरी बार है कि मैं अरिजीत सिंह की खुले दिल से तारीफ़ कर रहा हूँ। पहली बार फ़िल्म रामलीला के गीत "लाल इश्क़" के लिए की थी। वैसे मुझे आवाज़ का वो टेक्सचर ही पसंद नहीं है। उसमें खुरदरापन है, मिठास नहीं, गला भरा सा लगता है। ख़ैर, रहमान ने जिससे भी गवाया है उसे अमर कर दिया है। ये इस साल का सबसे अच्छा गीत है। मेरा अनुमान है कि ये राग भैरव पर आधारित है, राग की किसी बंदिश सा लगता है, और धीरे-धीरे आपके इतने अंदर उतर जाता है कि फिर निकालना मुश्किल है। मुझे इतना असर किया, कि एक पोस्ट मैंने कुछ दिनों पहले सिर्फ इसी गीत के लिए की थी। ऐसा ही एक गीत रहमान ने फ़िल्म "प्रियंका" के लिए बनाया था - "खिली चाँदनी" अगर नहीं सुना हो तो अभी सबसे पहले यही सुनियेगा, वो भी फीमेल वर्शन। हर दौर में कोई तो होता है जो अपनी विधा का चीरहरण रोकने के लिए मौजूद होता है, इस दौर में इरशाद क़ामिल हैं जो महान गीतकारों की पवित्र परंपरा को थामे हुए हैं।

4. लिटिल लिटिल - क्या कम्पोजीशन है, और उस पर म्यूजिक अरेंजमेंट, उफ़्फ़! रहमान नई rhydms ईजाद करते हैं, कुछ समय पहले ही मैंने सोचा था कि अब वे वैसा क्यों नहीं करते? इस गीत में उन्होंने फिर वही कमाल किया है। गीत बहुत तेज़ नहीं है लेकिन आपके पैर आपको थिरकने के लिए फ़ोर्स करने लगते हैं, इतनी प्यारी रिदम बनाई है। कोरस के साथ अनोखा प्रयोग है। इंटरल्यूड में अजीब से, लेकिन प्यारे साउंड्स मज़ा देते हैं। पूरा गीत स्मूथली चलता है और पहले तबला और फिर अंत में जब ढोल आता है तो बस...गरदा उड़ा देता है। अद्भुत! इस गीत को धनुष से गवा कर उन्हें भी अमर कर दिया गया है।

5. चकाचक - वो गीत जो सबसे पहले रिलीज़ हुआ और फेमस भी। मस्ती भरा गीत है। एक बार फिर ग़ज़ब का ऑर्केस्ट्रा। ऊपर-ऊपर सुनने पर पता नहीं चलता पर ध्यान से सुनते जाएँ तो एक के बाद एक साज़ अपने को खोलते नज़र आते हैं। तबला, ढोल, ढोलक तो हैं ही पर कई दक्षिण भारतीय साज़ भी prominantly use हुए हैं। और श्रेया घोषाल के बारे में बार-बार क्या ही कहूँ।

6. रेत ज़रा सी- एक और अरिजीत गीत। रोमांटिक गीत है लेकिन एक बार फिर, जब पहली बार सुना तो मुझे गीत और उसकी रिदम में मिसमैच लगा था पर थोड़े समय में बहुत अच्छा लगने लगा। इसकी रिदम "रूप सुहाना लगता है" वाली ही है। ये रिदम जैसे टुकड़ों में चलती है, रूप सुहाना के बोल भी वैसे ही टुकड़ों में थे पर इस गीत के बोल स्मूथ है इसलिए पहली बार में थोड़ा अटपटा लगता है।

7. तूफ़ान सी कुड़ी - ये अलग ही तरह का गीत है, जैसा पहले कभी सुना नहीं। कई बार सुनने के बाद आपको समझ आता है कि बहुत फ़ास्ट है। कोई ड्रम मशीन वगैरह का उपयोग नहीं, सिर्फ हल्के संगीत से ही आप झूमने लगते हैं। उन लोगों को इसे 1000 बार सुनाया जाना चाहिए जो डांस सांग्स के लिए हार्ट अटैक देने वाला bass और pace उपयोग करते हैं। झूमाने के लिए साज़ों का पीटा जाना नहीं गीत की आत्मा में रिदम ज़रूरी है। इस गीत में कोरस और सोलो का अंतर भी सुनते जाने पर समझ आने लगता है। इस गीत में भी ढोल बीच-बीच में अपनी उपस्थिति का अहसास कराते रहकर अंत में छा जाता है। इसे कोरस के साथ गाया है राशिद अली ने, जिन्होंने सबसे पहले फ़िल्म 'जाने तू या जाने ना' में "कभी कभी अदिति" गाया था। जाने क्यों उन्हें और मौके नहीं मिले?

पिछले साल "दिल बेचारा" का संगीत भी अच्छा था औऱ हाल ही में आई "मिमी" का भी पर "अतरंगी रे" उसी तरह एक और लैंडमार्क है जिस तरह ताल या दिल से थी। हिंदी में रहमान का काम कम होने की वजह रहमान के ख़िलाफ़ इंडस्ट्री में फैलाया प्रोपेगंडा है। दुखी होकर खुद रहमान ये बात बोल चुके हैं। बातें ये फैलाई जाती हैं कि वे बहुत समय लेते हैं, लेकिन धंधेबाज़ों को ये नहीं पता कि संगीत इबादत है। कुछ नया रचने में हमेशा समय लगता है, बाकी फर्जियों का काम तो कंप्यूटर करता है। 90 के दशक में भी दूसरे संगीतकार असुरक्षित महसूस करते थे पर वे खुद अच्छा काम करने लगे थे, आज तो दौर ही दूसरे की लकीर को छोटा करने का है।

बहरहाल, बहुत सुखद है रहमान का एक बार फिर अपने रंग में आना, आगे कुछ नया और अच्छा मिलने की उम्मीदें बढ़ गईं हैं।


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