दर्शक भूतो भव

 


ज़बान पर तो गालियां आ रही हैं पर लिख नहीं सकता, फैमिली चैनल है।

पिछले 4 महीनों से "भीड़ू" तक पहुंचने की कोशिश कर रहा हूं, पर चाय से ज़्यादा केतली गरम की तर्ज़ पर मैनेजर अड़ंगे डाल देती है। और ये आदमी एक दो कौड़ी की सड़ी हुई, बचकानी स्क्रिप्ट ले जाता है और उसे न सिर्फ़ एक्टर बल्कि बरबाद करने के लिए पैसा भी मिल जाता है। जबकि मैं जिस किरदार के लिए अप्रोच कर रहा हूं वो उन्हें अमर कर देगा ये मेरी गारंटी है। भीड़ू अपने फेवरेट स्टार हैं बचपन से, पर उन्हें वो किरदार नहीं मिला जिसे वो डिजर्व करते हैं, मेरे पास है वो किरदार।

ख़ैर, भीड़ू के कारण ही फिल्म देखनी थी मुझे "अतिथि भूतो भव"। नाम तो catchy रखा है। "प्रतीक गांधी" और "जैकी श्रॉफ" को लेकर स्टार वैल्यू भी बढ़ा ली, फिर पैसे नहीं बचे तो सोसाइटी के बच्चों को पकड़कर स्क्रिप्ट लिखवा ली।

प्रतीक गांधी के साथ क्या समस्या है मुझे समझ नहीं आता। "स्कैम 92" से मनोज बाजपाई की लीग में शामिल होने वाला अभिनेता उसके बाद से सुनील शेट्टी जैसी एक्टिंग भी नहीं कर पा रहा। मुझे बेसब्री से इंतज़ार था उनके अगले काम का, जो आया "द ग्रेट इंडियन मर्डर" के रूप में। इतना खराब कैरेक्टर मैंने किसी सीरीज में अब तक नहीं देखा। मुझे लगा राइटिंग ख़राब है इसलिए परफॉर्मेंस सही नहीं होगा पर इस फिल्म को देखकर वाकई उनकी काबिलियत पर शक होता है। इतना एमेच्योर अभिनय जैसे इंदौर के किसी लड़के ने सस्ते फोन पर कोई घटिया शॉर्ट फिल्म बनाई हो। 

माफ़ी चाहता हूं कि पूरी फिल्म नहीं देखी फिर भी लिख रहा हूं क्योंकि पूरी मैं किसी भी तरह नहीं देख पाया। मैंने आगे बढ़ा बढ़ाकर भी कोशिश की, थोड़ी बहुत कमी होती तो झेल भी लेता पर इस फिल्म का एक भी सीन झेलेबल नहीं है। 

पहला ही सीन है, सरदारजी (प्रतीक गांधी डबल रोल) ट्रैक्टर सुधार रहे हैं, पोता कुछ लिख रहा है। सरदारजी उससे पूछते हैं तो कहता है निबंध लिख रहा हूं पर सरदारजी समझ जाते हैं कि लव लेटर लिख रहा है, वो उसे और टिप्स देते हैं प्रपोज करने की। ये बात बताई जा रही है 1975 की, अब उस ज़माने में, और वो भी गांव में, सटासट जूते पड़ते दद्दू के हाथ के जो भनक भी लग जाती, 75 तो छोड़िए 95 में भी यही आलम था। इसके बाद पोता चल पड़ता है प्रेम पत्र देने। होली का दिन है, भरे बाज़ार सबके बीच गुलाब के फूल के साथ लेटर दे रहा है और आसपास वाले चरस पिए हैं कि कोई देख भी नहीं रहा इनको। असली दुनिया में यहां सामूहिक कुटाव के निश्चित योग बनते हैं। गांव में तो 3 चक्कर कोई गली में लगा आए तो लोग हिट लिस्ट में नाम लिख लेते थे। 

इसके बाद आज की कहानी, उफ़ क्या सीन लिखे हैं और डायलॉग तो माशा अल्लाह।

प्रतीक गांधी शराब पीकर जा रहा है, बीच सड़क पर पेशाब करने लगता है। जैकी श्रॉफ पेड़ पर से कहते हैं " ये क्या कर रहे हो? ये नीचे क्या किया? सू सु क्यों कर रहे हो?"

अच्छा पेशाब की धार भी ढंग से नहीं छोड़ पाए। कुछ भी हो रहा है। प्रतीक गांधी ने जॉन अब्राहम से भी ख़राब एक्टिंग की है। आश्चर्य है कि इतने अनुभवी लोगों में से किसी ने डायरेक्टर को ये नहीं कहा कि अबे ये क्या लिखा है?? ऐसे डायलॉग तो 80s में नहीं बोले थे।

डायरेक्टर से याद आया, मैंने फिर उसके बारे में मालूमात की "हार्दिक गज्जर"। इसके बारे में इतना कहना ही काफ़ी है कि इसने "सिया के राम" और "महादेव" टीवी सीरियल्स बनाए हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि इसको न स्क्रीनप्ले का पता है ना डायलॉग का।


ये लोग करोड़ों खर्च करके ये कूड़ा बना रहे हैं और इधर मलयालम में मामूली से बजट में क्या खूबसूरत फिल्म बनाई है "Nna Thaan Case Kodu".

इसके बारे में कल लिखूंगा, बाकी अतिथि कोई मत देखना, मैं नहीं बताऊंगा कहां उपलब्ध है।


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