मेरा भारत महान ?




 
आज सुबह-सुबह न्यूज़ में एक निराली बात सुनने को मिली, समाजवादी पार्टी का मेनिफेस्टो जिसमे हमारे देश के महान(!) नेता मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि वो इंग्लिश स्चूल्स बंद करवाएंगे, ट्रक्टर की जगह बैल चलवाएंगे, कंप्यूटर बंद करवाएंगे, मशीनें बंद करवाएंगे वगैरह वगैरह… मैं सदमे में हूँ... क्या कहा जाये इस आदमी को? क्या इसे समझाना संभव है? बिलकुल नहीं. जिस आदमी की सोच इतनी घटिया है वो कितने सालों से इतना बड़ा प्रदेश चला रहा है. शर्म की बात है जनता के लिए और यहाँ हद दर्जे के मूर्खों की भरमार है वरना क्यों नहीं इन सडे हुए नेताओं के इस तरह की बातें करते ही मंच से नीचे खींचकर जूतमपैजार कर दी जाती ? और क्यों मुलायम, मायावती जैसे लोग बार-बार आ जाते हैं? कुंठितों का पूरा कुनबा है जो देश को डुबोने पर आमादा है. ये नेता कुंठित हैं इंग्लिश नहीं जानने से, कंप्यूटर के डर से और इन्ही के तरह की जनता है जो सिर्फ अपना मन समझाने के लिए ऐसे लोगों को अपना भविष्य सौंप देती है. मुझे गुस्सा आता है, असहनीय गुस्सा आता है लेकिन जब गहरे में जाता हूँ तो गुस्सा निराशा का रूप ले लेता है. मेरा भारत महान चिल्लाते हुए बरसों बीत गए लेकिन इमानदारी से कहूं तो मुझे कभी इसका कारण समझ में नहीं आया. अब तो मैंने मुद्दत हुई ये वाक्य नहीं दोहराया है लेकिन जब नारे लगाने पड़ते थे तब भी मुझे ये समझ में नहीं आया. किस बात के लिए हम महान हैं? आज जो हालत मैं देखता हूँ उसमें तो निहायत ही नामुमकिन सी बात है महानता को ढूंढ़ना. और अगर इतिहास की बात करें तो समय-समय पर हमारे यहाँ महान लोग हुए हैं इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन दुनिया में सभी जगह हुए हैं. देश उसमें रहने वाले सारे लोगों से मिलकर बनता है यानी कि आम आदमी से . अब देखिये न प्रजातंत्र में देश सरकार चलती है और सरकार कौन बनता है? यही आम आदमी… लेकिन मैं जब इतिहास पर गौर करता हूँ तो महानता तो दूर की बात मुझे आम आदमी में किसी भी दौर में समझदारी भी नहीं दिखाई दी. ये हमेशा से उन लोगों का समूह रहा है जिसे जो जैसे चाहे वैसे हांक देता है और वो भी बहुत ओछी बातों से. वरना वरुण गाँधी को आज सफलता के लिए कोई और शोर्ट कट ढूंढ़ना पड़ता सबसे बड़ी चीज़ जो ओब्सेर्वे करने जैसी है वो है हमारी कौम की हीन भावना. ये भावना हमेशा से रही है और आज भी है. एक दौर था जब राजा-महाराजा शोषण करते थे, आम आदमी शाही लोगों से हीन था और शाही लोग? विदेशियों से… कुछ सचमुच म महान राजाओं को छोड़ दिया जाये तो सभी आखिरकार चाटुकार ही साबित होते थे. जब मुग़ल यहाँ आये तो ये लोग उनके पैरों में गिर गए. कई सालों तक मुग़लों ने राज किया और आम आदमी तो कभी कुछ करता ही नहीं हैं न? समय-समय पर कुछ स्वाभिमानी राजाओं ने विरोध किया लेकिन उन्हें मुग़लों के साथ अपने लोगों का भी विरोध सहना पड़ा. धीरे-धीरे मुग़ल इसी देश का हिस्सा हो गए… ठीक है अगर अपनापन कहीं है तो वो ग़लत नहीं है लेकिन फिर आये अंग्रेज और इस बार हमारे लोगों की हीन भावना देखने के काबिल थी. अंग्रेजों की ठोकरों में रहकर भी उन्हें ऊँची नज़र से ही देखा जाता था. फिर से कुछ लोगों ने बड़ी मुश्किलों से लड़ाई लड़ी. यहाँ ये बात उल्लेखनीय है कि आज जो संगठन स्वाभिमान का झूठा झंडा उठा कर ज़हर फैलाने का काम कर रहे हैं वो तब भी थे और उन्होंने हमेशा की तरह असली समस्या को हटाने की बजाय नकली समस्याएँ पैदा करने का ही काम किया. खैर, जैसे-तैसे हम आज़ाद हो गए लेकिन हमारा स्वाभिमान आज भी धुल में पड़ा हुआ है. हम अपने देश के आदमी को कभी इज्ज़त नहीं देते लेकिन आज भी कोई विदेशी आ जाये तो मुस्कराहट 4 इंच से कम ही नहीं होती. मैं IT इंडस्ट्री से हूँ और मैंने बहुत करीब से इसे देखा है. अंग्रेजी और अंग्रेजों को लेकर इतना क्रेज बाप रे! जहाँ अपनी भाषा में बोलना गवार होने की निशानी मन जाता है, जहाँ अमेरिका जाने के लिए आदमी मर जाता है… वहां किस तरह की महानता निवास करती है मैं नहीं जानता. ठीक है ये बिज़नस है और हमारा ग्राहक और दुकानदार का रिश्ता है, IT की भाषा में कहें तो वो हमारे क्लाइंट हैं लेकिन क्या हमारे यहाँ के दुकानदार देसी ग्राहक को इतनी इज्ज़त बख्शते हैं? क्यों हम उनके पैरों की धूल चाटने को लालायित रहते हैं, क्यों अपने बच्चों के हिंदी बोलने पर शरमाते हैं, क्यों अपने ही लोगों की इज्ज़त करना हमें छोटी बात मालूम होता है? मैंने देखा है छोटे गाँव से लेकर, छोटा शहर और मेट्रो सब देखा है और ये हीन भावना मैंने सभी जगह पाई है. और अगर कहीं स्वाभिमान की बात भी होती है तो वो दरअसल कुंठा ही होती है जो आपस में ही दंगे करवाती है. स्वाभिमान का सबसे अच्छा उदाहरण हैं स्वामी विवेकानंद, अपने देश अपनी भाषा सबके लिए स्वाभिमान और दुसरे देश की भाषा, संस्कृति के लिए भी सम्मान. उन्हें अपनी भाषा से प्रेम था लेकिन दूसरी भाषाओँ से बैर नहीं था उन्हें भी वे समान आदर देते थे लेकिन प्राथमिकता हमेशा अपनी विरासत ही रही. कुछ लोग हैं, और हमेशा रहे हैं जो स्वाभिमान का सही मतलब समझते हैं लेकिन तादाद में कम ही हैं. मेरे ख़याल से एक राम, एक कृष्ण, एक गाँधी. सिर्फ इन नामों का सहारा लेकर हम आम तौर पर महानता का दावा नहीं कर सकते. ये देश तब तक महान नहीं है जब तक यहाँ का आम आदमी महान नहीं है, उसमें स्वाभिमान नहीं है. जय हिंद

टिप्पणियाँ

  1. बेनामी12:21 am

    Nice blog. Only the willingness to debate and respect each other’s views keeps the spirit of democracy and freedom alive. Keep up the good work. Hey, by the way, do you mind taking a look at this new website www.indianewsupdates.com . It has various interesting sections. You can also participate in the OPINION POLL in this website. There is one OPINION POLL for each section. You can also comment on its news and feature articles.

    You also get Live Cricket , News Updates, Opinion Polls, Movie Reviews and Mobile Phone Reviews in this website.


    Kindly go through the entire website. Who knows, it might just have the right kind of stuff that you are looking for. If you like this website, can you please recommend it to at least 5 of your friends. Your little help would help us in a big way.

    Thank you,

    The Future Mantra

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट