तेरी पार्टी, मेरी पार्टी

मैं जब कभी लोगों से राजनीति के बारे में बात करता हूँ, या किसी फोरम में लोगों के कमेंट्स पढता हूँ, तो एक बात बहुत ही शिद्दत से उभर कर आती है, लोगों का पार्टी प्रेम देख कर मैं हैरान हूँ, यहाँ तक की हैरानगी की हद तक चला गया हूँ।  

इन लोगों के लिए समझ क्या बाहर से आयात करनी पड़ेगी ? जब किसी का ध्यान किसी क्षेत्र विशेष की समस्याओं पर दिलाया जाये, तो वो उस पार्टी को गालियाँ देने लगता है जिसके खिलाफ वो आज तक वोट करता आया है। जवाब मैं दूसरा आदमी उसे उस पार्टी की करतूतें बताने लगता है, जिसके बचाव में पहला बोल रहा है। कल ही मैं एक वेबसाइट पर एक लेख पढ़ रहा था जिसमें मध्यप्रदेश की बदहाली का ज़िक्र, और वहाँ के सीएम साहब से कुछ सवालात किये गए थे।  उसमें नीचे पाठकों की टिप्पणियाँ थीं। इन पाठकों में सिर्फ ३ या ४ लोगों ने समझदारी की बात कही थी, बाकी सारे लोग वाहियात सी बातें कर रहे थे चूंकि मध्यप्रदेश में भा ज पा की सरकार है, वहां पर लोग लेखक को कांग्रेस का एजेंट साबित करने पर तुले हुए थे।  उस बेचारे ने जो हाल देखा वो लिख दिया और इन लोगों को बिना बात की मिर्ची लग गई।  एक महाशय लिखते हैं की आप कांग्रेस शाषित राज्यों में जाकर देखिये वहां क्या हुआ है ? मतलब, कोई तुक है इस बात की? तुम्हारे घर में खाना नहीं है तो दूसरे के घरों की फाकाकशी से पेट भर सकते हो? 
अजीब बातें करते हैं लोग, पता नहीं क्यों इस लोकतंत्र में लोक ही किसी काम का नहीं है, शायद इसीलिए लोकतंत्र भी किसी काम का नहीं रहा।  मैं मध्यप्रदेश के एक छोटे कस्बे से हूँ इतना छोटा भी नहीं, तहसील है मैंने वहां अपने बचपन से लेकर आज तक हमेशा अँधेरा ही देखा है, बिजली थोडी देर ही आती है, सड़कें हमेशा ख़राब ही रहीं हैं लेकिन ये कांग्रेस बीजेपी के पिट्ठू अपनी वफादारी साबित करने में लगे रहते हैं।  अरे तुम ये देखो न कि तुम्हारी समस्या कौन हल करता है?  लेकिन नहीं, मर जायेंगे पर पार्टी को वोट देंगे यहाँ तक कहते हैं लोग, कि फलां पार्टी से अगर कोई कुत्ता भी खडा होता है, तो हम उसी को वोट देंगे। और ऐसी बेशर्मी की बातें ये लोग बड़े गर्व के साथ करते हैं।  बताइये अब कहाँ जायेगा ये देश ऐसे बेवकूफों के हुजूम के साथ ? यही वजह है कि कोई नेता कुछ नहीं करता, पता है कि ये बेवकूफ ऐसे ही मुट्ठी में है, और नहीं होंगे तो एक-आध मंदिर-मस्जिद का झुनझुना और पकडा देंगे। 
बिजली नहीं है, पानी नहीं है, सड़कें नहीं हैं, ज़माने भर की समस्याएँ हैं लेकिन पार्टी का पट्टा गले में डाले रहते हैं।  ६० साल से ज्यादा हो गएँ हैं जब अँगरेज़ हमें छोड़ गए थे लेकिन हमारे लोग बड़े ही नहीं हो रहे। 

क्या आप बता सकते हैं कोई हल... ?

टिप्पणियाँ

  1. sahi hai aniruddha bhai...
    are netavo ke kitane bhi gali de ..
    nahi sudharenge..!

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  2. Yaar Party ek vichar-dhara hoti.. Aur mujhe lagta hai kuch log vichar-dhara ko tawajjo dete hai..Aur kisi pradesh ki samasyain ki wajah kewal vartman ki ku-shashan nahi hota, uske beej ateet mein boye hote hain..aur vartman ka sashan jo badlao laane ki koshish karta hai, usko prtyakch hone mein samay lagta hai..main bhi BJP ko support karta huun kyonki unhone apne sashit pradeshon mein vikash ki koshish ki aur woh kuch sttar par pratakshya bhi hai..50 saal se jyada ke ku-shashan mein badlao lane mein waqt lagta hai,aur hamein unhe woh waqt dena chahiye..unhone 5 saal ke kendra shashan mein kafi nayee prayojnaein layee,aur uska asar dikh bhi raha tha..lekin shayad hum abhi bhi samrajyawad ki mansikta se ubhre nahi hai,isliye vapis Gandhi samrajya ki jarein majboot kar rahein hai :(

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