अल्लाह मेघ दे पानी दे, पानी दे रे...
सबके होठों पे यही फरियाद है लेकिन लगता है अल्लाह को इनकी कोई परवाह नहीं है वो अपने और कामों में व्यस्त है शायद वो इन फरियादियों को एक सबक देना चाहता है या शायद ये इनकी सजा की शुरुआत है जो धीरे-धीरे भयावह रूप लेगी जो भी हो, हालात अच्छे नहीं हैं और जिम्मेदार अल्लाह, भगवान् या जो भी आप कहना चाहें, नहीं है और अपने हाथों अपना घर बर्बाद करके कुछ नहीं करना बस फरियादें करना किसी भी तरह समझदारी नहीं कही जा सकती और मददगार को भी चिढ जाने पर मजबूर करती है यही हम करते हैं, पेड़ काटते हैं, दिल खोलकर प्रदूषण और गंद फैलाते हैं और फिर अल्लाह के पास जाकर बैठ जाते हैं की लो अब करो... वो कब तक हमारी फैलाई गंद साफ़ करेगा, कभी तो वो सजा देगा ही और शायद ये सजा की शुरुआत ही है अब भी अगर लोग नहीं जागे तो वो हाल होगा की फरियाद भी करने के काबिल नहीं रहेंगे

मैं पिछले ४ सालों से पूना में हूँ और यहाँ की बारिश ने पहली बार ही में मेरा दिल ले लिया था लेकिन आज जून का महीना पूरा गुज़र गया है और बारिश तो ठीक बूँदें भी नहीं आईं हैं और हाल इंदौर का क्या कहूं... जहाँ मेरा घर है, लोगों की नींद इतनी पक्की है की सर्दी के मौसम में पानी के लिए जूतमपैजार होने के बाद भी नहीं जागे हैं पेडों का अंधाधुंध काटना जारी है नगर निगम तो ठीक है लोग भी बाज नहीं आते क्योंकि पेड़ उनके घर या दुकान के रास्ते में आता है और लोग देख नहीं पाते की उन्होंने कितना खर्च करके उसे बनवाया है फिर बारिश नहीं होती तो यही लोग करोडों रुपये खर्च करके यज्ञ करवाते हैं मैं अगर अल्लाह होता तो इन सब लोगों को तुंरत उठा लेता
अल्लाह मेघ से पहले इन्हें सदबुद्धी दे दो...
फिर भी उम्मीद पर दुनिया कायम है इसी उम्मीद में मैंने इंदौर में वृक्षारोपण की पहल की है कुछ मेरे जैसे मित्रों को इकठ्ठा करके ये योजना बनाई है, जो अपने शहर के लिए चिंतित हैं
उम्मीद करते हैं की कुछ लोग तो जागेंगे और ऐसे कुछ लोग शायद हर जगह जाग जाएँ तो अल्लाह फिर से खुश हो सकता है

आमीन...

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