चिट्ठी आका के नाम...

"दिल्ली बेली" देखने के बाद उसके कुछ अंग्रेजी रिव्यू पढ़े और उन सभी का सारांश ये था कि हमारा सिनेमा अब मेच्योर हो गया है और हम अब हॉलीवुड से तुलना किये जाने लायक होते जा रहे हैं....तो मैंने सोचा फिल्म के बारे में लिखने की मजबूरी में वे लोग अपने भाव अच्छी तरह प्रदर्शित नहीं कर पा रहे हैं. उनके उस सारांश को विस्तार देते हुए मैंने एक पत्र इन सब की तरफ से उन आकाओं के नाम लिख दिया जिसमें इन लोगों की भावनाओं को जस का तस रख दिया है, एकदम खालिस. तो पत्र शुरू किया जाए-

मालिक, आशा है आप मज़े में होंगे और इसी आशा के कारण हम भी मज़े में हैं. पत्र लिख रहे हैं क्योंकि हमने आखिर एक फिल्म बना ही ली जो आपको ज़रूर पसंद आएगी. अब तो हमारी तारीफ कर दो, आखिरकार हमने भी एक गन्दी फिल्म बनाई है जिसमे भर-भर के गालियाँ हैं और वो सब गंदगियाँ हैं जो आपको पसंद है :) आप जो fuck fuck बोलते रहते हैं उसको हमने अपने खून में उतार लिया है, अब हम उसे मंत्र की तरह जपते रहते हैं. अब तो एक ऑस्कर हमारे मुंह पर मार दो, हम मरे जा रहे हैं. फिल्म फेअर तो हम खरीद ही लेते हैं और आजकल नेशनल अवार्ड में भी सेंध मार दी है वो तो आप ही हाथ नहीं रखने देते वरना हम तो अवार्ड जीतने से ज्यादा खरीदने में विश्वास रखते हैं. जीतने में बहुत मगजमारी है और फिर भी ग्यारंटी नहीं. हम तो आपको देख-देख कर फ़िल्में बनाए जाते हैं.
ऐसा नहीं है कि सिर्फ फिल्मों में ही आपकी इज्ज़त करते हैं हम. हम तो हर चीज़ में आपका मुह ताकते हैं...फ़िल्में, संगीत, पहनावा, भाषा, यहाँ तक कि सुन्दरता किसको कहते हैं ये भी हम आपसे ही सीख रहे हैं. अब देखिये आपने गागा को लेडी बता के पेश किया तो हमने उन्हें खूबसूरती की मिसाल माना और उनके वीभत्स गीतों और वीडिओ को उत्कृष्ट कला का नमूना मान के पूजने लगे. हम उनके पीछे पागल ही हो गए. जब शकीराजी ने अपने नितम्बों को जोर-जोर से हिलाया तो क़सम से हमारे मन में भूचाल आ गया, इसे कहते हैं नाच, हमारे यहाँ के लोग तो बेहूदा नाचते हैं लेकिन अब बदलाव आ रहा है, हमने आपके नाच को पूरी तरह अपना लिया है और अपने नाच पे इतना हँसे हैं कि कोई सोचता भी नहीं है अब उसके बारे में.

दरअसल, जब aapne कहा कि थोडा सा हेल्दी फिगर मतलब मांसल देह सुन्दरता कि निशानी है तो हम उसके पीछे भागने लगे फिर अचानक आपकी तरफ से खबर आई कि जीरो फिगर ही सुन्दर होता है तो हम फिर पलते और जीरो फिगर के पीछे दौड़ लगा दी, यहाँ तक कि हमारे यहाँ कि कई लड़कियां भूखों मर गई. देखा आपने हम आपके कहने पे जान तक देने को तैयार रहते हैं. मालिक 2 शब्द तो बोलो अब.

और एक बात हमारे इस दकियानूसी देश में औरतों के सामने गाली बकना असभ्यता मानते थे लेकिन आपसे दिन-रात F*** F*** सुन-सुन के मन ऐसा मोहित हुआ कि अब लड़कियों के सामने क्या हमने उन्हें ही गाली देना सिखा दिया है. हमने उन्हें अच्छी तरह समझा दिया है कि पुरुषों कि बराबरी तुम एक ही तरीके से कर सकती हो….खूब दारु पियो, सिगरेट पियो और गालियाँ बको बस…..बाकी घर का काम तो औरत का ही होता है ये तो सब जानते हैं सो वो नहीं छुड्वाया हमने. हमारे कान तो बस आपकी ही तरफ लगे रहते हैं कि कब आप कुछ कहें और हम वो कर दिखाएँ. हमारे यहाँ लोग टट्टी को बुरी चीज़ मानते हैं लेकिन आपसे ही हमने सीखा कि वो एक हकीकत है और हकीकत से क्या भागना, फिर आप तो अपनी महान फिल्मों में बिंदास उपयोग करते हैं उसका सो हमने भी कर डाला, पूरी फिल्म ही बना डाली जी. अब तो हमे इंतज़ार है कि कब आप कहें कि ग्रो अप और हम अपने ड्राइंग रूम में ही बैठ जाएँ प्रेशर आने पर.

हमारे यहाँ के लोग कितने गवार है मैं बताता हूँ. ये लोग जब कहते थे ग्रो-अप तो उसके साथ आत्मा, विचार-शुद्धि, भाव ऐसी हज़ार तरह की बकवास करते थे लेकिन फिर कुछ लोग हुए हमारे यहाँ जिनको आपके स्वभाव और ज्ञान की गहरी जानकारी है, उन्होंने हमें बताया कि बहुत ही आसान है ग्रो-अप होना, ग्रो-अप का मतलब है सेक्स और shit की बातें बेहिचक करो, हर बात में गालियाँ दो….shit shit f*** f*** रटते रहो, उसी तरह के गीत सुनो, फिल्मे देखो, किताबें पढो और लो जी हो गए ग्रो अप. धन्य हैं आप.

अब आपकी बराबरी तो हम नहीं कर सकते लेकिन फिर भी आशा है कि जो थोडा बहुत विकास हमने किया है उससे आप खुश होंगे और एक ओस्कार तो दे ही देंगे.

और एक बात तो कहना भूल ही गया, हमारी एक भाषा हुआ करती थी हिंदी हमने उसकी तो ऐसी बजाई है कि पूछिए ही मत, वैसे भी जाहिलों की भाषा थी वो….हमने अपने बच्चों को अब बस आपकी ही सुन्दर भाषा सिखाई है और उन पर हसना भी सिखाया है जो उस जाहिलों वाली भाषा का उपयोग करते हैं ताकि शर्मिंदा हो कर वो भी उसे छोड़ दें….साहित्य में भी अब हमारे बच्चे आपस में आपके महान लेखकों जेम्स हेडली इत्यादि कि ही बातें करते हैं और प्रेमचंद, रवीन्द्रनाथ वगैरह को तो जानते तक नहीं (मैं भी क़सम खा के कहता हूँ कि मैंने भी इनके बारे में अभी-अभी ही सुना है और मेरा इनके लिखे हुए से कोई वास्ता नहीं) धीरे-धीरे काम चल रहा है, एक दिन देखिएगा हम लोग अपना राष्ट्रगीत आपकी दैवी भाषा में ही गायेंगे.

कहने को तो बहुत सारी बातें हैं लेकिन इस पत्र में इतना ही क्योंकि आपके समय और मूड का भी ख़याल हमें रखना पड़ता है.

जय Christ!

टिप्पणियाँ

  1. Very True...but can't help it.for instance...Parents just teach their children two relations for strangers/acquiantances -"Uncle" "Aunty" thats it!!! "Bua","didi", "bhaiya" etc..to pata nahi aajkal ke bacche jante bhi hain ya nahi. Few days back I saw a young lady(around 20-22)selling flowers, 3-4 youngsters of age around 16-17 came and said "Aunty...ye vala flowers dena". She scolded them nicely.:):)

    Even if their mother tongue is "hindi", the kids don't talk and feel shame talking in hindi.

    Upar likhi apki baton ko sudharne ke liye bhi koi aandolan karna padega like IAC :)

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