दर्द भरी छोटी सी कहानी





एक कार थी। उसे चलाने के लिए एक ड्राईवर रखा गया। ड्राईवर से उम्मीद थी कि वो कार को बहुत अहतियात से और लगन से आगे बढ़ाएगा। कार कुछ दूर चली भी, लेकिन उस कुछ दूर के बाद रुक गई। ड्राईवर ने बहुत कोशिश की, उसके साथी भी आ गए, वो भी कोशिश करने लगे, लेकिन उनमें से कुछ ने कार के पुर्जे ही गायब कर दिये। लोग जमा हो गए। सब कहने लगे कि ड्राईवर अयोग्य है, हमने भी माना कि ड्राईवर ठीक नहीं है। खुद भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ा पा रहा है और साथी चोरी-चकारी कर रहे हैं, उन्हें भी नहीं रोक पा रहा है। जमा हुई भीड़ ने एक दूसरा आदमी आगे कर दिया कि इसे दे दो कार, ये बहुत अच्छा ड्राईवर है। उस आदमी ने भी अपनी ढेर सारी खूबियाँ गिनाई। उसने तो यहाँ तक कहा कि आपको इस ड्राईवर की वजह से गंतव्य तक पहुँचने में जो देर हुई है उसे भी बराबर कर दूँगा, मैं बैठते ही आपको पहुँचा दूँगा। भीड़ ने भी यही कहा। हम भी खुश हुए। पुराने ड्राईवर और उसके साथियों को चलता कर दिया और नए ड्राईवर को बाकायदा चाबी सौंप दी। नया ड्राईवर बैठ कर बातें करने लगा, शुरू में हम खुश हुए कि चलो मिलनसार आदमी है, सफर भी अच्छा कटेगा। हम भी कुछ देर बातें करते रहे, उसने कार के बारे में बहुत सारी अच्छी-अच्छी बातें की। कार कैसे चलानी चाहिए, इंजिन को कैसे मैंटेन करना चाहिए वगैरह-वगैरह। हम फिर खुश हुए पर अब थोड़ा असहज हुए कि भाई मान लिया कि आपको सब आता है, पर अब आगे भी तो बढ़ो, पर वो तो जैसे सुन ही नहीं रहा था। हम एक बात करें वो 10 करे। हमने फिर कहा – बड़ी देर भई नंदलाला अब आगे बढ़ो...अब तो वो तुनक गया, कहने लगा तुमने उस ड्राईवर को तो कुछ नहीं कहा, वो तो कितनी देर से यहाँ अटकाए हुए था तब तुम्हें चलने की याद नहीं आई? हमारे होश उड गए। अब तो खेल शुरू हो गया, हम उससे चलने को कहें और वो लगे पुराने ड्राईवर को गालियां देने। हमने उस भीड़ से भी कहा तो वो हमारे ऊपर चढ़ गई। भीड़ भी यही कहे कि तुम इतनी देर से उस नालायक ड्राईवर के साथ बैठे थे और ये इतना अच्छा ड्राईवर है, इसके पीछे पड़ गए। हमने कहा कि ठीक है भई लेकिन अच्छा ड्राईवर ड्राइव भी तो करे तब तो पता चलेगा कि वो अच्छा है। इस पर तो भीड़ भड़क गई, हमारी सात पुश्तों की शामत आ गई। गाली-गलौज से माहौल गरम हो गया। वे हमें पडीसी देश की टिकिट लेकर गाड़ी से उतर जाने को कहने लगे। हम शांत हुए। भीड़ खुश थी, उनके आदमी को नौकरी मिल गई थी। भीड़ ने वहीं खोमचे लगा लिए। चाट बेचने लगे, हमें भी खानी पड़ी वरना हमारी सात पुश्तें फिर खतरे में थीं। उन्होने गाड़ी की सीट्स बाहर निकाल ली और उन पर बैठ कर बातें करने लगे, बातें वही सफर की और मंज़िल की। वहाँ पहुँच कर ये करेंगे, ऐसे जाएंगे, वैसे जाएँगे और ये भी कि प्राचीन काल में तो हम वहाँ पर ऐसे ही चले जाते थे इसके भी आगे ये भी कि अब तो हम विश्व को सिखाएँगे। हम बड़े परेशान, ड्राईवर से कहें या भीड़ से, जिससे भी कहें कि भैया आगे बढ़ो वो पुराने ड्राईवर को गालियां देने लगें, प्राचीन काल की बातें करने लगें, मुग़लों की बातें करने लगें, अमेरिका की, चीन की, जापान की बातें करने लगें।
अब तो हम भी बैठ कर चाट-पकौड़े खा रहे हैं कि देखें कार कब आगे बढ़ती है, नहीं तो एक खोमचा हमें भी लगाना पड़ेगा, यहीं।

जय हिन्द।

यहाँ कार की जगह हिंदुस्तान भी रखकर देख लीजिये, कहानी समान रहेगी। J

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