महाधार्मिक कथा

एक देश था जिसे आर्यावर्त कहते थे। उसके निवासी बड़े ही धार्मिक और वीर थे, फिर समय के फेर में कुछ यूं हुआ कि उस पर एक के बाद एक आक्रमण हुए, आक्रमण करने वालों ने उसे खूब लूटा-खसोटा। लोग तो वहाँ के धार्मिक और वीर थे पर जब हमला हुआ तब वो हिमालय की गुफाओं में बैठकर मूँगफली खा रहे थे , जो लोग धार्मिक नहीं थे वो देश को बचा नहीं पाये। फिर ऐसा हुआ कि बहुत सारी गलत परम्पराएँ उन विदेशी लोगों ने चला दीं जैसे सती करना, बलि चढ़ाना, शिकार करना इत्यादि। धार्मिक लोगों की मूँगफलियाँ खत्म नहीं हो रही थी इसलिए वो वापस नहीं आ पा रहे थे। इस बीच अंग्रेज़ भी आ गए। जब अंग्रेज़ आए तब तक हिमालय गए कुछ धार्मिकों की मूँगफलियाँ खत्म हो गई थीं और वो लौट आए थे। उन्हें पता चला कि अभी तो अंग्रेज़ हैं पर पहले बहुत से आ कर जा चुके हैं । अब भले ही वे जा चुके पर धार्मिकों की उनसे लड़ाई अभी बाकी थी इसलिए उन्होने उनकी अनुपस्थिति में ही जंग छेड़ दी। अंग्रेजों पर उनका ध्यान ही नहीं जा पाया, वैसे थे बड़े ध्यानी लोग, एक समय में एक ही चीज़ पर ध्यान केन्द्रित करते थे। अंग्रेजों से एक अधनंगा आदमी और कुछ खुले विचारों वाले क्रांतिकारी लड़ने की कोशिश कर रहे थे पर ये लोग धार्मिक नहीं थे। अधनंगे आदमी ने धर्म के नाम पर कुछ वाहियात बातों को तरजीह दे रखी थी जैसे “जीव हत्या पाप है”, “प्राणी मात्र में ईश्वर का वास है”, “प्रेम ही धर्म का मूल है” इत्यादि। धार्मिक लोगों को अत्यधिक क्रोध आया, वो थोड़ी सी मूँगफली खाने क्या चले गए यहाँ तो धर्म का नाश ही हो गया। उन्होने उन “जा चुके” लोगों के साथ इस आदमी के खिलाफ भी युद्ध छेड़ दिया चूंकि दरअसल धर्म युद्ध का ही दूसरा नाम है। किसी न किसी तरह से युद्ध चलाते रहना ही सच्चा धर्म है । धर्म की कुछ और शिक्षाएं भी इन्होने बताई जैसे जब व्यवस्था से कोई खतरा हो तो अपने ही साथियों की तरफ पीठ करके खड़े हो जाओ, अपनी ही बातों से मुकर जाओ और वैसा ही इन्होने किया जब इनके ही एक साथी ने युद्ध में अत्यधिक वीरता दिखाते हुए धोखे से उस अधनंगे, निहत्थे, कमजोर आदमी को मार डाला। तब ये लोग फिर मूँगफली खाने चले गए। खैर, इस सारी उठा-पटक में अंग्रेज़ चले गए तब जाकर इन्हें बहुत दुख हुआ कि अंग्रेजों ने भी लूट लिया। इन्होने तुरंत अंग्रेजों के खिलाफ भी युद्ध छेड़ दिया। पश्चिमी संस्कृति के नाम पर हर चीज़ के खिलाफ हो गए हालांकि इतनी उदारता और दयालुता इन्होने बनाए रखी कि उन्हीं पश्चिमी लोगों द्वारा आविष्कृत हर चीज़ का जम कर उपयोग करते रहे। पर इसके लिए भी उनके पास वैध कारण था, दरअसल जो लोग हिमालय में मूँगफलियाँ खाने चले गए थे उन्होने ये सब चीज़ें पहले ही बना ली थी पर मूँगफलियाँ ठंडी हो रही थी इसलिए वो अपने लोगों को उसके बारे मे बता नहीं सके सिर्फ एक-दो कहानियों के अलावा।
साहब, अंग्रेज़ तो चले गए पर धार्मिकों के हाथ में अब भी बागडोर नहीं आई थी तो वो इंतज़ार करने लगे और तब तक अंग्रेजों से और अपने देश के अधार्मिक लोगों से और उन सारे लोगों से जो भूतकाल में आकर चले गए थे, लड़ते रहे। समय रुक गया था साहब...विकास नाम की चिड़िया आ ही नहीं रही थी। अंग्रेजों के जाने के वक़्त जो जिस अवस्था में था, उसी मे रह गया। पूरे 68 साल देश freezed रहा। फिर धार्मिकों ने घोषणा की कि जो महान पूर्वज मूँगफली खाने हिमालय में गए थे उनका ही वंशज प्रकट भया है और अब जाकर देश का उद्धार होगा। लोगों की खुशी के मारे नींद हराम हो गई। चीख-पुकार मच गई और अंततः वो युगपुरुष उन्हीं ‘जा चुके’ लोगों से लोहा लेता हुआ आया और गद्दी पर विराजमान हो गया। देवों ने पुष्प वर्षा की। हालांकि धर्म के अनुसार उसने भी गद्दी पर बैठने से पहले अपनी पीठ अपने संगठन और लोगों से फेर ली ताकि अधार्मिकों को विश्वास दिला सके। जैसे ही वो गद्दी पर बैठा पूरे देश में ठंडी बयार चलने लगी, खेतों में बिना बीज डाले बम्पर फसल होने लगी, बारिश के लिए प्रकृति के संरक्षण की ज़रूरत ही नहीं बची वो वैसे ही खूब होने लगी, पूरी दुनिया अपने सभी काम-धंधे छोड़ कर इधर ही टकटकी बांधे देखने लगी जैसे अब कोई जादू का खेल होने वाला है। उस महापुरुष ने अपने घोड़े को एड़ लगाई और ये जा वो जा...अपने अश्वमेध के घोड़े पर खुद ही बैठकर उसने दुनिया का चक्कर लगा मारा और आ-आकर बताया कि उसका घोडा किसी ने नहीं रोका इसलिए वो विश्वविजयी हुआ। जब से वो आया है देश में अमन-चैन है, वैसे धर्म में अमन चैन का कोई स्थान नहीं होता क्योंकि मैंने बताया था न कि युद्ध ही धर्म है? अब हर आदमी के सामने भूख लगते ही थाली आ जाती है जिसमें वो पहले वाली दाल नहीं, बहुत ही कीमती स्वर्ग की दाल आती है। सब वाह-वाह करते हुए स्वर्गिक भोजन का आनंद ले रहे हैं। धार्मिक लोगों को पर चैन कहाँ, उन्होने हिमालय में सन्देस भेजकर मूँगफली खा रहे बाकी लोगों को भी बुला लिया। देश की बागडोर उस अवतारी पुरुष को सौंपकर वो फिर उन ‘जा चुके’ लोगों और बचे-खुचे अधार्मिक लोगों से युद्ध में तल्लीन हो गए। उन्होने संकल्प लिया है कि देश को फिर वैसा ही बना डालेंगे जैसा 1000 साल पहले मूँगफली खाने जाते समय था और तब तक चैन से नहीं बैठेंगे।
अथ श्री महाधार्मिक कथा।

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