नायक कहता है – “चाहे
आसमान टूट पड़े, चाहे धरती फूट जाये, चाहे हस्ती ही क्यों न
मिट जाये, फिर भी मैं...”
यहाँ तक तो ठीक है,
पर इसके आगे जो काम वो करना चाहता है वो भी सुनिए
“एक घर बनाऊँगा तेरे घर के
सामने
दुनिया बसाऊंगा तेरे घर के सामने”
पहली बात – आसमान टूट पड़े,
आसमान तो चलो कोई सीमेंट कोंक्रीट का नहीं होता तो टूट नहीं सकता,
यहाँ से बच जाएगा।
फिर धरती फूट जाये – भाई
धरती फूट जाये तो कैसे घर बनाएगा? और इसके भी आगे जा रहा है कि हस्ती मिट जाये...अरे
हस्ती मिट जाएगी तो मजदूर, ठेकेदार का पेमेंट कौन करेगा?
फिर इस प्लानिंग से पहले
और भी चीज़ें देखनी पड़ेंगी कि नहीं?
जैसे उसके घर के सामने
प्लॉट खाली है या नहीं? खाली है तो साइज़ क्या है?
खाली भी है तो बिकाऊ है या
नहीं? या खरीद कर नहीं बनाना, कब्ज़ा करना है? कब्ज़ा करना है तो नायक
पहलवान टाइप है या पिद्दी? पिद्दी है तो प्लॉट मालिक ही पीट देगा और पहलवान
भी हुआ तो दंगे के बहुत चान्स हैं।
अगर खरीदना है तो स्क्वेयर
फीट का भाव क्या है? उतना पैसा है ज़ेब में या यूँ ही प्रधान की तरह
फेंकम-फाँक कर रहा है? चलो उतना है भी, पर उसके बाद घर बनाने का
पैसा भी बचेगा या नहीं? बचेगा तो उतने में कैसा घर बना पाएगा?
छोटा सा घर या बंगला (Banglow)?
1 BHK बनाएगा या 2 BHK?
ये सब तय हो भी गया तो भाई,
आजकल काम करने वाले तेल निकाल देते हैं। मजदूर नहीं मिलते,
ठेकेदार पैसा लेकर गायब हो जाता है। कभी रेत नहीं तो कभी सीमेंट ख़तम। कभी-कभी तो ईंट
के सारे भट्टे भी खाली मिलते हैं, कहीं ईंट नहीं मिलती।
गर्मी में बनाएगा कि सर्दी
में? गर्मी में पानी नहीं मिलता, बारिश में पानी नहीं रुकता।
दरवाज़े खिड़की लकड़ी के बनाएगा
कि लोहे के? असली लकड़ी मिलती नहीं,
मिलती है तो बहुत महँगी, नकली में मज़ा नहीं आता। टॉइलेट का भी सोचना पड़ेगा।
माना कि प्रेम का मामला है पर टॉइलेट तो आती ही है न?
फिर कलर तय करने पड़ेंगे,
कि कौन से रूम मे क्या कलर होगा। पुताई वाले अलग भाव खाते हैं।
इस सब में नल और बिजली फिटिंग
तो भूल ही गए। बिजली ऑफिस के चक्कर भी लगाओ, कनैक्शन के लिए। lineman से गुजारिश
करो।
उफ़्फ़!
इतनी सब उठा-पटक के बाद नायिका
को पसंद ही नहीं आया तो क्या?
L L L
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