Sunflower - Web Series

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सनफ्लावर एक सोसाइटी है। इस सोसाइटी में हैं कुछ बहुत अमीर, और कुछ कम अमीर लोग, कुछ परिवार वाले, कुछ तलाक़शुदा, कुछ अकेले लोग। 

इस सोसाइटी में राज कपूर साहब का हो जाता है ख़ून। अब ख़ून किसने किया, कहानी ये नहीं है क्योंकि वो तो शुरुआत में ही बता दिया जाता है, पर ख़ून करने वाले तक पहुँचने के लिए जो जांच चलती है और उस बीच सोसाइटी के लोगों के बीच क्या उठा-पटक चल रही है, यही है कहानी। 

ख़ून हो जाता है, पुलिस आती है और पुलिस की पूछताछ के बीच ही हम रु-ब-रु होते हैं उन सभी लोगों से, जिनके साथ इस पूरी कहानी में हमें रहना है। 

राज कपूर के फ्लॅट के बिलकुल सामने रहता है रसायन शास्त्र का अध्यापक आहूजा, अपनी सुंदर बीवी और बदतमीज़ बच्चे के साथ। बहुत ही चिड़चिड़ा, और गुस्सैल आदमी है। कुंठित है, इसलिए अपनी भी हर गलती पर फौरन बीवी को डाँटने लगता है। बीवी हमेशा घबराई-घबराई घूमती है। खालिस मर्दवादी प्रॉडक्ट है ये अध्यापक। 

और एक है सोनू सिंह, जो बेवकूफ़ सा आदमी है। अकेला रहता है, सौन्दर्य प्रसाधनों की एक कंपनी में सेल्स मैनेजर है। यही कहानी का नायक है। इसे हर फटे में टाँग अड़ाने की आदत है, अपनी बेवकूफी से हमेशा अपना ही नुकसान करता है, पर मन का बहुत साफ और भोला है। हर लड़की को पटाने की कोशिश करता है। इसे हर चीज़ को करीने से सजा देने की ख़ब्त है, अपने दरवाजे के बाहर पड़ा डोर मेट बहुत ही बारीकी से symmetry में रखता है हर रोज़, ऐसे ही जहां भी जाता है वहाँ अव्यवस्थित रखी चीज़ को करीने से रखने लगता है, कहीं भी गंदगी बर्दाश्त नहीं। अपनी बेवकूफ़ियों की वजह से ही ये केस की जाँच को अपनी तरफ़ मोड लेता है।

 कहानी का ज़्यादातर हिस्सा आहूजा, सोनू और दो पुलिस वालों, डीजी और तांबे के इर्द-गिर्द ही घूमती है। इंस्पेक्टर डीजी बहुत संजीदा, मितभाषी व्यक्ति है, इसके विपरीत सब-इंस्पेक्टर तांबे बड़बोला और छिछोरा है। डीजी की अपनी पारिवारिक समस्याएँ भी हैं, जिनका सिर्फ आभास ही दिया गया है। तांबे ड्यूटि से फ्री होता है तो अलग-अलग लड़कियों के साथ पाया जाता है। 

इनके अलावा एक ट्रैक चलता है सोसाइटी के सदस्यों द्वारा सोसाइटी में रहने के लिए आने वाले आवेदको के इंटरव्यू का। सोसाइटी का वर्तमान चेयरमेन उदार व्यक्ति है। दिलीप अय्यर (आशीष विद्यार्थी) एक रूढ़िवादी और काइयाँ व्यक्ति है, जो सोसाइटी में जल्दी ही होने वाले चुनावों में चेयरमेन बनना चाहता है। अय्यर को हर उस चीज़ से चिढ़ है जो उसके विचारों के अनुसार बने खाके में फ़िट न हो, उसे मुसलमानों से समस्या है, नई पीढ़ी की स्वतन्त्रता से चिढ़ है, अकेले रहने वाली लड़कियों से समस्या है, थर्ड जेंडर से समस्या है। वो संस्कारों की, परंपरा की दुहाई देता है और इन्हें बचाकर सोसाइटी और फिर इसी तरह देश को बचाने की बात करता है। ये आज के देश के हालातों पर ही एक टिप्पणी है। उदार चेयरमेन को धीरे-धीरे बाकी सदस्य भी नकार देते हैं, वो अकेला पड़ जाता है। अय्यर की बातों में सभी आ जाते हैं और एक खास चश्मे से हर चीज़ को देखने लगते हैं। ये वर्तमान दक्षिणपंथी प्रभाव को दर्शाता है, जो संस्कृति और परंपरा की आड़ में भेद-भाव और नफरत की जड़ें मजबूत करता है। अय्यर की अपनी बेटी लेसबियन है, और अपने पिता से चिढ़ती है, ये सबसे बड़ी विडम्बना है। 

सोनू सिंह के किरदार में सुनील ग्रोवर ने कमाल किया है। आश्चर्य भी होता है, दुख भी कि एक प्रतिभा को अपने आपको साबित करने में कितने बरस लग जाते हैं। सुनील ग्रोवर जसपाल भट्टी के “फ्लॉप शो” में भी नज़र आते थे। इतने बरसों में क्या-क्या पापड़ नहीं बेले। कपिल शर्मा के शो में गुत्थी से दिन फिरे और अब वे एक नए ही लेवल पर पहुँच गए हैं। तांडव के बाद सनफ्लावर ने उन्हें एक बेहतरीन अभिनेता के रूप में स्थापित कर दिया है। अब वे भी वापस गुत्थी नहीं बनना चाहते, और हम भी उन्हें गुत्थी नहीं देखना चाहते। 

रणवीर शौरी अपने शुरुआती दौर में चमके थे, फिर एक दौर गुमनामी का आया, पर वेब सिरीज़ के चलन ने उन्हें नया जीवन दे दिया। कमाल के अभिनेता हैं। सबसे जानदार जो प्रदर्शन रहा है, वो है गिरीश कुलकर्णी का। क्या गजब का काम किया है। किरदार को अपने अंदर इस कदर उतार लिया है कि बस तांबे ही नज़र आता है। 

एक बड़ी शिकायत है मेरी, सुबह 3.30 बजे तक जाग कर सिरीज़ पूरी की पर जिस खुजली ने पूरी रात जाग कर देखने को विवश किया वो फिर भी बनी रह गई। ये सही नहीं है। अगले सीज़न के लिए कुछ बचा कर रखना है, ये माना लेकिन जो बात छेड़ी है उसे तो पूरी कीजिये? ये क्या बात हुई कि पाँच घंटे देखने के बाद भी बात वहीं की वहीं बनी हुई है? अगले सीज़न के लिए कुछ नया सोच कर रखिए, उसी कहानी को दो सीज़न में कहना अन्याय है। एक ट्रैक को उपसंहार तक पहुंचाया जाना चाहिए। 

और ये सिरीज़ में सेक्स सीन डालने को डॉक्टर ने कहा है क्या? ज़रूरत नहीं है तो काहे? हर सिरीज़ में, और आजकल फिल्मों में भी जबरन ठूँसे जाते हैं। ये बनाने वाले की हीन भावना ही दिखाते हैं जो उसमें अङ्ग्रेज़ी फिल्में देखकर आती है, कि हम पीछे रह गए। अरे भाई, जहां ज़रूरी है वहीं दिखाओ ना, क्या हर सीन मे गुंजाइश निकालते रहते हो?

एक और चीज़ जो ध्यान खींचती है वो है बैक्ग्राउण्ड म्यूजिक। अच्छा बनाया है, टोरेंटिनो की फिल्मों से प्रभावित है, पर कहीं-कहीं अति कर दी है, एक जैसा संगीत हर जगह नहीं लगाया जा सकता। 

इसे निर्देशित किया है विकास बहल और राहुल सेनगुप्ता ने। विकास बहल अपनी फिल्मों चिल्लर पार्टी, क्वीन और सुपर 30 के लिए जाने जाते हैं। निर्देशन अच्छा ही है, थोड़ा और टाइट हो सकता था। कहीं-कहीं खींचा हुआ लगता है। 

सिरीज़ को काफी पसंद किया जा रहा है, अच्छी बनी है लेकिन इसी श्रेणी में बनी “अ स्ट्रेंज मर्डर” से कमतर है। Zee5 पर उपलब्ध है। 

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