श्रद्धांजलि - सुरों की देवी


"अरसा पहले लंदन के एक अस्पताल में डॉक्टरों की दवाओं के बावजूद अनिद्रा और परिणामस्वरूप उच्च रक्तचाप से पीडि़त मेहबूब खान ने फोन पर लता से 'रसिक बलमा' गीत सुनाने को कहा और गीत ने दर्द हर लिया, दवाओं को मात दे दी। मेहबूब खान निश्चिंत सोए और रक्तचाप भी नियंत्रण में गया। यह तो एक प्रसिद्ध और सफल व्यक्ति का अनुभव है, परंतु अनगिनत आम आदमियों के अनअभिव्यक्त अनुभव हैं कि लता के गीतों ने उनको कितनी राहत दी है।"



हम कभी उनसे मिले नहीं, कभी उन्हें जीता-जागता देखा भी नहीं लेकिन वे हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा थीं। आज सच में ऐसा लग रहा है जैसे अपना एक हिस्सा चला गया।

औरों का नहीं पता लेकिन मेरी आत्मा को सुकून लताजी के गीतों में ही मिलता है। जब और कुछ सुनने का मन करे तब भी लता जी के गीत सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है। मैं कभी आँखें बंद करके सुन लूँ तो सच में मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं। ये असर और किसी भी आवाज़ में नहीं है।

ये ठीक है कि धुन संगीतकार बनाता है पर उन अनगिनत धुनों को स्वर्ग की ऊँचाई पर सिर्फ एक ही आवाज़ ले जा सकती थी। आप लताजी के गीत किसी और की आवाज़ में सुन लीजिये, अचानक ऐसा लगेगा जैसे उस गीत की बस डैड बॉडी है, रूह निकल गई है। संगीत की रूह थीं लताजी, सामान्य गीतों को भी दैवीय बना देने की कूवत सिर्फ और सिर्फ उन्हीं में थी।

हम लोग वाकई खुशनसीब हैं कि हम उस युग में जिये जिसमें लताजी मौजूद थीं। हमारा बचपन उनके गीतों की छांव में गुज़रा, हमारी जवानी उनके गीतों में छलकते प्यार से सराबोर रही। सब आवाज़ें लता होना चाहती हैं मगर इस धरती के रहने तक उन जैसा दूसरा कोई होना नामुमकिन है। वे उच्चतम शिखर थीं अपनी विधा की। वे भारत देश और उसके निवासियों को ईश्वर का वरदान थीं।


और सभी चीज़ें विवादित हैं लेकिन ये तथ्य निर्विवाद है कि इस पूरी दुनिया में लता मंगेशकर नामक अनमोल खज़ाना सिर्फ और सिर्फ हमारे पास था, जिसके लिए हम गर्व कर सकते हैं।

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