4 फरवरी को हॉट स्टार पर रिलीज़ हुई सिरीज़ “द ग्रेट इंडियन
मर्डर” देखने का कारण तिगमांशु धूलिया का नाम था। आज के दौर के सबसे बढ़िया
निर्देशकों में से एक हैं। इसके साथ ही प्रतीक गांधी का नाम भी जिज्ञासा जगाता था।
स्कैम 92 में उनका जबर्दस्त परफॉर्मेंस देखने के बाद एक बार फिर वैसा ही कमाल
देखने की उम्मीद थी।
सिरीज़ बहुत ही सधे हुए कदमों से चलना शुरू करती है। एक अय्याश अमीरज़ादा
विकी है जो पूरी दुनिया को अपने बाप का माल समझता है। उसके फ़ार्म हाउस से दो
नाबालिग लड़कियों की लाशें बरामद होती हैं। स्क्रॉल करते हुए स्किप कर दी थी। फिर
पता चला निर्देशक “तिग्मांशु धूलिया” ने बनाई है। विकी छत्तीसगढ़ के गृह राज्य
मंत्री का बेटा है। हाइ प्रोफ़ाइल केस है पर उसे रफा-दफ़ा करना मुश्किल हो जाता है।
3 साल जेल में बिताकर आख़िर राजनीति की उठापटक में रिहा हो जाता है। इसी ख़ुशी में
पार्टी फेंकी (throw) गई है। इस पार्टी में विकी को कोई गोली मार देता है। आगे
की कहानी “गोली किसने मारी” की ही तफ़्तीश है। हर एक suspect के पीछे की कहानी
दिखाई गई है जिसमें मुन्ना है जो एक लोकल चोर है, एकेती है जो
अंडमान से अपने चोरी हुए देवता की खोज में आया है, मोहन कुमार है
जो रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर है। जैसा की मैंने कहा, सधे हुए कदमों
से चलना शुरू करती है, पर आगे बढ़ते-बढ़ते लड्खड़ाने लगती है। पहले दो एपिसोड
आपको बांध कर रखते हैं। पहले suspect मुन्ना की कहानी भी अच्छी लगती है लेकिन इसके आगे लेखक
की रुचि शायद खत्म हो गई, या सोचा कि दो एपिसोड तक दर्शक बैठा है मतलब अब खींच
सकते हैं, लिहाज़ा खिंचने लगती है। बीच एपिसोड्स बहुत खींचे हुए
हैं जिससे एकरसता सी पैदा हो जाती है। चूँकि उप-कथानक रखना अब अनिवार्य हो गया है, इसमें ढेर सारे
उप-कथानक हैं जिनमें अंडमान की समस्या, नकसलवाद, राजनीति, चाइल्ड अब्यूज, स्प्लिट
पर्स्नालिटी वगैरह वगैरह वगैरह, सब घुस गए हैं। फ़िर भी अगर मैंने पूरी देख ली है इसका
मतलब बिलकुल बोरिंग नहीं है। सभी लोगों की पूरी ज़िंदगी देख चुकने के बाद भी पता
नहीं चला कि किसने मारा? सीज़न 2 में पता चलेगा।
मर्डर केस है और हाइ प्रोफ़ाइल है, तो राजनीति तो आनी ही है, पुलिस भी है वो
भी सीबीआई और सीबीआई अफसर बनकर आते हैं प्रतीक गाँधी। प्रतीक गाँधी से आसमान जितनी
उम्मीदें थीं जिन्हें मायूसी ही हाथ लगी। पहले तो वे तीन एपिसोड्स के बाद आते हैं, फ़िर आने के बाद
भी कुछ समय तक समझ ही नहीं आता कि इनको करना क्या है? उनके किरदार का
कैरक्टराइजेशन ही नहीं हो पाया ठीक तरह से। पूरी सिरीज़ में ऐसा लगा कि वे खुद अपने
कैरक्टर को लेकर confused हैं। हम भी तय नहीं कर पाते कि ये आदमी किस तरह का है, उससे कभी भी कुछ
भी करवा लिया गया है। किरदार में कोई depth नहीं है, न ही अभिनय में।
‘स्कैम 92’ में उनका जो परफॉर्मेंस था, उसके आगे
बड़े-बड़े अभिनेता फीके थे। मैं तो उन्हें मनोज बाजपई के समकक्ष रखने लगा था, पर इस सिरीज़ ने
निराश किया। उनसे ज़्यादा प्रभावशाली, बल्कि सबसे प्रभावशाली
मुन्ना बने शशांक अरोरा थे। बहुत बढ़िया काम किया है। अगर आपने उनकी फिल्म “तितली”
नहीं देखी है तो ज़रूर देखिये। निर्माता और निर्देशक नामी हैं तो ज़ाहिर है, नामी अभिनेताओं
का भी जमावड़ा है। इसके निर्माता अजय देवगन हैं। रिचा चड्ढा भी एक बहुत अहम किरदार
में हैं पर वही बात उनके साथ भी है, कैरक्टर बनाया नहीं गया सही
तरह से और वे भी confused ही नज़र आ रही हैं। और क्या उन्होने जिम जाना छोड़ दिया है? फूल गई हैं बहुत, उस पर उन्हें
कपड़े ऐसे पहनाए गए हैं कि डर लगा रहता है, कहीं फूट न
जाएँ। आशुतोष राणा को पर्दे पर देखना हमेशा एक अनुभव होता है, वे विकी के पिता
बने हैं। रघुवीर यादव को भी एक अलग ही तरह का किरदार दिया गया है। वेब सिरीज़ के
दौर ने एक काम तो अच्छा किया है। भुला दिये गए और एक ही तरह के किरदारों में बांध
दिये गए अभिनेताओं को नए अवसर और नए किरदार दिये हैं। आशुतोष राणा की बेटी का
किरदार कर रही हिमांशी चौधरी भगवान का रिपीटिशन हैं, ऐसा चेहरा भगवान
ने पहले ईशा देओल का बनाया, फ़िर नेहा धूपिया का और अब ये आई हैं। ये इन दोनों का
मिक्स लगती हैं। विकी के किरदार में जतिन गोस्वामी ने अच्छा अभिनय किया है। एक उप
कथानक welfare ऑफिसर अशोक राजपूत का भी है जिसे निभाया है शरीब हाशमी
ने, उन्हीं की भाभी के किरदार में साक्षी बेनीपुरी बेहतरीन
खोज हैं, वे आखिरी एपिसोड में नमूदार होती हैं और महफिल लूट लेती
हैं, बेहद सुंदर लगी हैं।
तिगमांशु धूलिया के साथ ये समस्या है, उनका परफॉर्मेंस
एक जैसा नहीं रहता। वे आलसी हो जाते हैं। पान सिंह तोमर और हासिल ही ऐसी फिल्में
हैं जो पूरी तरह से कसी हुई हैं, इनके बाद शागिर्द, मिलन टॉकीज
वगैरह बिखरी हुई, ढीली-ढाली कहानियाँ हैं। वही हाल इस सिरीज़ का भी हुआ।
सिरीज़ विकास स्वरूप के उपन्यास ‘सिक्स सस्पेक्ट्स’ पर आधारित है, मुझे लगता है
उपन्यास ज़्यादा पठनीय होगा। फ़िर भी एक बार देखने लायक है।
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