Sawan Kumar Tank - Accidental Filmmaker, lyricist

 


सावन कुमार टाँक हीरो बनने मुंबई गए थे। जब किसी ने मौका नहीं दिया, तो फिल्म निर्माता बन गए। उन्होने नए कलाकार "संजीव कुमार" को लेकर फ़िल्म "नौनिहाल" बनाई। अपनी दूसरी फिल्म "गोमती के किनारे" के लिए वो मीना कुमारी के पास गए, मीना कुमारी ने उन्हें फ़िल्म को ख़ुद ही डाइरैक्ट करने की सलाह दी, सावन कुमार डाइरेक्टर भी बन गए। फ़िल्म पूरी होने के बाद मीना कुमारी का निधन हो गया, उम्मीद थी कि फ़िल्म चलेगी लेकिन फ़िल्म भी पिट गई। चूँकि वे ख़ुद ही निर्माता भी थे सो किसी और के भरोसे उन्हें रहना नहीं था। उन्होने अगली फ़िल्म प्लान की "हवस"। उस दौर में मजरूह सुल्तानपुरी का बतौर गीतकार बड़ा नाम था। इस फ़िल्म के दो गीत वे उन्हीं से लिखवाना चाहते थे। 

वे मजरूह साहब के पास पहुंचे। मगर, मजरूह साहब ने जो पैसे मांगे वो उनके बस के नहीं थे। उन्होने request की, कि अंकल, दो ही गाने चाहिए, मेरी पिछली फिल्म भी पिट गई, अब मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं। मजरूह साहब ने कहा - "मियाँ, चाहे 2 गाने हो या 9 गाने, पैसे तो हम इतने ही लेते हैं"। 

सावन कुमार को बहुत बुरा लगा। वो उठकर निकल गए। जब वे सीढ़ियों पर थे तभी उनके दिमाग में दो पंक्तियाँ आईं - "तेरी गलियों में ना रखेंगे क़दम आज के बाद"।  ये ख़याल मजरूह साहब के लिए था पर उन्हें पंक्तियाँ अच्छी लगीं, उन्होने तय किया कि अब वे ही गीत लिखेंगे। उन्होने ये लाइन संगीतकार "उषा खन्ना" को सुनाई। उन्होने इसकी बढ़िया धुन बना दी और इस तरह बना एक लाजवाब गीत जिसे गाकर रफ़ी साहब को भी मज़ा आ गया था। इसके बाद सावन कुमार गीतकार भी बन गए। 


पर एक बात है, जब वे ख़ुद निर्माता बन गए तब भी खुद को हीरो बनने का चांस उन्होंने कभी नहीं दिया 😉

 

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