डॉक्टर स्ट्रेंज का दूसरा भाग झेलना बड़ा मुश्किल हो गया। हर कोई हाथ
घुमा-घुमा कर कुछ भी फ़ेंके दे रहा है। मुझे प्रधानमंत्री याद आ गए। हॉलीवुड के पास
पैसा है, चमक-दमक है, तकनीक है, फ़िल्में इतनी
चमकीली दिखती हैं, आधा तो उसी से मन लगा रहता है। लेकिन कब तक? कहानी से कब तक
बचेंगे हाथ घुमा-घुमाकर?
फ़िर एक हम हैं, गरीब देश, उस पर भी बहुत गरीब फ़िल्म
मेकर (मैं असली वाले फ़िल्मकारों की बात कर रहा हूँ, वो जो परदे पर
300 करोड़ की शिट करते हैं, उनकी नहीं)। फ़िर भी इस गरीब देश के एक गरीब फ़िल्मकार ने
पहली सुपर हीरो फ़िल्म बना ही दी। क्या हुआ जो चट्टानें गत्ते की नज़र आती हैं? पर कहानी है, भावनाएँ हैं।
खलनायक को दुनिया नहीं जीतना है, उसे बस अपना बचपन का प्यार चाहिए और हीरो भी कोई दुनिया
बचाने नहीं निकला है, उसके अंदर बस उस बाप का ख़ून है जो बिना किसी सुपर पावर
के आग में कूद पड़ा और कई लोगों को बचाकर चला गया। कुछ लोग चाहकर भी बुरे नहीं हो
पाते और कुछ चाहकर भी कोई ढंग का काम नहीं कर पाते...देखिये, मुझे फ़िर वही
याद आने लगे हैं J
मैं बात कर रहा हूँ “मिन्नल मुरली” की। हालाँकि देख पहले ही ली थी पर आज
फ़िर से देखी तो सोचा कुछ तो लिखा ही जाना चाहिए। बच्चों को कहा था कि अपना इंडियन
सुपर हीरो दिखाता हूँ पर उनका मन ही नहीं लगा। दर असल बच्चों को ऐसी कहानी चाहिए
जिसमें सिर्फ हीरो हो और विलन हो, और बात-बात पर दोनों एक दूसरे को छू लग जाते हों। इसमें
हीरो और विलन का मिलन ही बहुत देर से होता है। अबीर तंग आ गया तब जाकर पहली लड़ाई
हुई दोनों की।
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जब फ़िल्म का हीरो पहली बार स्क्रीन पर आया तो मैंने अबीर को कहा ये बनेगा
सुपर हीरो, तो छूटते ही उसने पूछा, इसके पास कार
नहीं है? कुछ भी नहीं है? बेचारा जेसन
अपनी पुराना मॉडेल साइकल लिए हीरोइन की तरफ जा रहा था। साइकल वाला फटीचर सुपर
हीरो। जेसन का सपना है अमेरिका जाने का, उसकी गर्ल फ्रेंड उसे छोडकर
किसी और से शादी कर रही है। दूसरी तरफ़ शीबू है, जिसे गाँव के
लोग पागल कहते हैं। ये तो और भी फटीचर है। एक झोपड़ी में रहता है। उसे बचपन से एक
लड़की से प्यार है जो किसी के साथ भाग गई थी, और अब वापस आ गई
है, अपनी बेटी के साथ। फ़िल्म में चारों तरफ़ गरीबी बिखरी पड़ी
है। सुपर हीरो का ऐसे माहौल में उभरना बहुत ही बढ़िया सोच है। अगर ये हॉलीवुड के
सुपर हीरो की नकल होती तो ये हीरो किसी बड़े शहर में होता।
एक रात जेसन और शीबू दोनों पर बिजली गिर जाती है। दोनों बच जाते हैं लेकिन
वो बिजली शरीर में अजीब से परिवर्तन कर देती है। गहराई से देखें तो एक दर्शन भी है
इस कहानी में। शक्ति किस तरह के काम करेगी ये निर्भर करता है उस व्यक्ति की
प्रकृति पर, जिसे शक्ति मिली है। कोई विकास करता है तो कोई विकास के
नाम पर विनाश, लो देखो फ़िर याद आ गए वो।
तो यही होता है, दोनों के अंदर जो शक्तियाँ पैदा होती हैं, उनका रंग
अलग-अलग होता है। और घटनाएँ दोनों को आमने-सामने लाकर खड़ा कर देती हैं। हालाँकि
विलन भी इस समाज का सताया हुआ इंसान है जो शायद हमेशा सोचता आया हो, कि मैं भी अगर
कुछ होता तो इन्हें बताता। जो लोग सताये जाने पर रोते हैं, ताक़त आने पर वही
सताने लगते हैं दूसरों को, ये चरित्र है हमारे लोगों का। शीबू का गुस्सा हालाँकि
प्रेम के लिए है, उसे प्रेम चाहिए जो उसे कभी नहीं मिला और उसी प्रेम के
लिए वो विध्वंस करने लगता है।
ये सुपर हीरो फ़िल्म है लेकिन इसका genre कॉमेडी है। बहुत
ही सधी हुई, subtle कॉमेडी है। जबर्दस्ती हँसाने की कोशिश नहीं है।
अंत में होता वही है जो हॅप्पी एंडींग में होता है, sequel
की
भी गुंजाइश छोड़ी है। अगर आपने नहीं देखी तो देखनी चाहिए।
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