Vikram - Not like other mindless south Indian movies

 


ये बहुत महत्वपूर्ण है कि लेखक के दिमाग में पहले कहानी आई या ये विचार, कि चलो एक एक्शन फिल्म लिखते हैं। क्योंकि अगर कहानी आई है तो एक्शन, कॉमेडी, ड्रामा उसके साथ अपने आप आएगा और अगर एक्शन ही आया है तो उसके साथ कहानी नहीं आएगी, कुछ जोड़-तोड़ करके उसे एडजस्ट करना पड़ेगा।

विक्रम के केस में एक्शन पहले आया, फिर उसे दिखाने के लिए कहानी बनानी पड़ी। कहानी वही डृग माफिया की है। उसे सरल रेखा में दिखाने की बजाय आगे-पीछे कर के थोड़ा सस्पेन्स भी बनाया गया है।

फिल्म के पहले ही दृश्य में चार नकाबपोश विक्रम (कमल हासन) को सीने में चाकू मारकर क़त्ल कर देते हैं। इस ख़ून का बाकायदा विडियो बनाकर पुलिस को भेजा जाता है जिसमें मारने वाले “ये तुम्हारे सिस्टम के खिलाफ लड़ाई है” का संदेश देते हैं। आगे इन नकाबपोशों को पकड़ने के लिए एक खुफ़िया टीम लगाई जाती है जिसे अमर (फहाद फाजिल) लीड कर रहा है। ये टीम तहक़ीक़ात करते हुए कुछ छुपे हुए रहस्य उजागर कर देती है और फिर अमर नैतिकता के नाते ये केस छोड़ देता है। इस बीच और इसके बाद लड़ाई-झगड़ा-दंगा चालू ही रहता है। विजय सेतुपति एक बड़े ड्रग माफिया को ड्रग सप्लाइ करता है, उसी सप्लाइ का एक बड़ा ट्रक गायब हो गया है। ये भी झगड़ा चल रहा है।

ये कहानी नई नहीं है। पर कहानियाँ तो सब वही हैं, नया तो सिर्फ़ तरीक़ा होता है उन्हें कहने का। तरीक़ा नया करने की कोशिश ज़रूर है पर गोलीबारी, ढिशुम-ढिशुम का अतिरेक अब थोड़ा मुश्किल से हजम होता है। अब क्या, मुझे अपने बचपन में सौदागर देखकर भी भयंकर सर दर्द हो गया था। फ़िल्म में रोलेक्स नाम का एक किरदार है जो सबका बॉस है, उसे अंत में दिखाया गया है, शायद पार्ट 2 की जगह बनाई है। उसका आखिरी सीन अतिरंजित है।

थोड़ी बुराई तो कर दी लेकिन फिर भी फ़िल्म बुरी नहीं है। जिस फ़िल्म में कमल हासन, फहाद फ़ाजिल और विजय सेतुपति जैसे अभिनेता हो वो बरबाद तो नहीं ही हो सकती। अभिनय के लिहाज से कोई कमी नहीं, जो कमी है वो लेखन की ही है। कहानी पर थोड़ा और काम होना चाहिए था। फ़िल्म पृथ्वीराज के साथ रिलीज़ हुई थी और ढेर रुपये कमाए। पृथ्वीराज से तो कई गुना बेहतर होने की गारंटी अकेले कमल हासन ही दे देते हैं, बाकी के स्टार तो बोनस हैं। फहाद फासिल का साइड पोज़ लॉन्ग शॉट में दीपक डोबरियाल का आभास देता है। इतने दुबले-पतले होकर भी कैरक्टर में पूरी तरह रम गए ये सरफरोश के आमिर ख़ान की याद दिलाता है। फ़िल्म का एक्शन mindless नहीं है आरआरआर या अन्य दक्षिण भारतीय फ़िल्मों की तरह, जो इस तरफ़ खूब बिज़नस कर रही हैं। इसके ट्रेलर में इसे म्यूज़िकल कहा जा रहा था, पता नहीं क्यों? गाने तो बेकार हैं ही, बैक्ग्राउण्ड म्यूजिक भी कई जगह सूट नहीं कर रहा। intense सिचुएशन में हिप-हॉप बज रहा है। कुछ अलग करना बढ़िया है पर इतना भी अलग नहीं करना चाहिए कि भाव ही बदल जाएँ।

मुझे भारतीय एक्शन फ़िल्मों में घातक का कोई मुक़ाबला नज़र नहीं आता। उसका एक्शन naturally आता है। कहानी की डिमांड के रूप में एक्शन आता है, वहाँ एक्शन जबर्दस्ती फिट नहीं किया गया था, बल्कि उसके सिवा और कुछ हो ही नहीं सकता था। वहाँ हीरो भी कोई सुपर हीरो नहीं बल्कि आम आदमी था, आम आदमी जब लड़ जाता है तो वो एक्शन कमाल करता है। 

फ़िल्म एक बार देखने क़ाबिल है।

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टिप्पणियाँ

  1. बेनामी4:03 pm

    कहानी वहीं होती है कहने का तरीका अलग होता है ये आपने सही कहा

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  2. बेनामी5:25 pm

    घातक के एक्शन के बारे में आपका नज़रिया सही है।

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  3. बेनामी6:09 pm

    सही पकड़े हैं आप... फिल्म में सबकुछ था बस थोड़ी सी कहानी और डायलॉग और होते तो इसका स्तर कुछ अलग ही होता। वैसे फिल्म लाउड ज़्यादा है एक्शन की भी अति ही है, बैकग्राउंड म्यूजिक ज्यादातर जगह अच्छा है, फिल्म का माहौल वही बनाता है जब बैकग्राउंड में "विक्रम" जब बजने लगता है। बाकी जैसा आपने लिखा है मेरे लिए भी फिल्म देखने के लिए वैसे कमल हसन का होना ही काफी है, बाकी विजय सेतुपति, फहाद फासिल और जिनका आपने जिक्र नहीं किया है लास्ट में एंट्री करने वाले मेन विलेन सूर्या भी बेहतरीन लगे हैं। मुझे तो उस हरे पदार्थ में इंटरेस्ट है जो चबाकर विजय सेतुपति में एकदम से सुपरपावर आ जाती है, वो माल मुझको भी मांगता है। कुलमिलाकर बुराइयों के साथ भी फिल्म ठीक ही है, मुझे लगता है कि गलतियों पर ठीक से काम कर लें तो नेक्स्ट पार्ट अच्छा होगा और नए तरह के ओल्ड मैन नेक्स्ट डोर टाइप का सुपर हीरो भी मिलेगा भारतीय सिनेमा को। बुज़ुर्ग एक्शन हीरो का कॉन्सेप्ट ही बड़ा इंटरेस्टिंग लगता है मुझे, बुसुर्गियत को कुछ सम्मान और वैलिडिटी ही मिलेगी। आखिर वहां हॉलीवुड में टॉम क्रूज़ बुढ़ापे में मिशन पे मिशन पॉसिबल किए जा रहे हैं, तो हमारे देश के बुजुर्गों को भी पीछे नहीं रहना चाहिए।
    वैसे मुझे कमल हसन की हिंदुस्तानी फिल्म में बुजुर्ग सुपर हीरो वाला कांसेप्ट बहुत बढ़िया लगा था, आज के समय उसे फिर से रिवाइव करके हिंदुस्तानी-2 बनानी चाहिए, उसमें कमल हसन की बैक स्टोरी भी कमाल की थी, फिर उनका करप्शन से लड़ना, अपने खुद के बेटे का करप्ट होना, सबकुछ बहुत बढ़िया था।

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