डॉ अरोड़ा - गुप्त रोग विशेषज्ञ

तलवार वही होती है, उसे चलाने वाले पर निर्भर करता है कि वह रक्षक बनेगी या भक्षक। कलम वही होती है, उसे चलाने वाले पर निर्भर करता है वो रचना करेगी या विध्वंस। कुर्सी वही होती है उस पर बैठने वाले पर निर्भर करता है विकास या विनाश, कृति या विकृति, गरिमा या फूहड़ता? फिर वो कुर्सी प्रशासकीय हो या निर्देशक की। “डॉ अरोड़ा” ऐसी कहानी है जो इतनी संवेदनशील है कि एक लाइन उधर हो जाये तो अर्थ का अनर्थ हो जाए। इतनी भूमिका मैंने इसीलिए बाँधी, क्योंकि ये विषय हर तरह के लेखक, फ़िल्मकार के लिए tempting है। और ये विषय ऐसा है कि पूरी तरह निर्भर है लेखक और निर्देशक पर कि वो इसके जरिये कुछ बहुत खूबसूरत चीज़ पेश करें या बहुत ही गलीज़ सी कोई चीज़।  सौभाग्य से निर्देशक के दिमाग में पोर्न नहीं चल रही थी।

शायद हर पीढ़ी किसी न किसी गुप्त रोग विशेषज्ञ के विज्ञापनों से पटी दीवार देख चुकी होगी। न जाने कितने बरसों से हम डॉ शाह के नाम से रंगी दीवारें देख रहे हैं। भगवान जाने ये एक व्यक्ति है या पदवी, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चला जा रहा है। “डॉ अरोड़ा” भी ऐसे ही एक गुप्त रोग विशेषज्ञ हैं जिनके विज्ञापन दीवारों पर लिखे होते हैं। डॉक्टर साहब झाँसी, सवाई माधोपुर और मुरैना, तीन जगह क्लीनिक चलाते हैं। अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार और गरिमामय व्यक्तित्व और उस गरिमामय व्यक्तित्व के लिए इससे अच्छी कास्टिंग नहीं हो सकती थी। कुमुद मिश्रा गजब के अभिनेता तो हैं ही, इंसान भी उतने ही गजब हैं। उनके व्यक्तित्व से वही गरिमा टपकती है जो इस किरदार को चाहिए थी। डॉक्टर कोई डिग्री धारी डॉक्टर नहीं है, खुद के तजुर्बों से बना है। इसके पीछे की भी बहुत ही खूबसूरत कहानी है। अपने अनुभवों से सीखकर डॉक्टर “विशेष अरोड़ा” दूसरों के जीवन की सबसे बड़ी समस्या दूर करता है। ऐसी समस्या जो इंसान को खाये जाती है, जिसे वो किसी को बता नहीं सकता लेकिन उसका जीवन उस एक समस्या से तबाह हो सकता है। डॉ अरोड़ा के मरीजों में सभी तरह के लोग हैं, पुरुष, महिलाएँ, अमीर, गरीब, हवलदार, एस पी, मिनिस्टर और यहाँ तक कि बाबा भी। बहुत ही कम फीस में डॉक्टर सभी लोगों का सटीक इलाज करते हैं। और चूँकि काम के लिए ईमानदार हैं इसलिए कभी किसी से दबते नहीं। नहीं दबते का मतलब कोई दबंगाई नहीं करते, यहीं उस गरिमा के दर्शन होते हैं जिसका ज़िक्र मैंने ऊपर किया। न तो डरते हैं, न कभी हाथ जोड़ते हैं। अपने काम पर भरोसा है, कि अच्छा कर रहे हैं इसलिए मजबूती से अपनी बात रखते हैं। यहीं पर कमाल करते हैं कुमुद मिश्रा। अपने अतीत के साथ जीते हुए शांति के साथ अपना काम करते हुए ये व्यक्ति इतना भला, इतना अच्छा लगता है कि बस आप मुरीद हो जाएँ। अपनी उस पत्नी, जो 15 साल पहले छोड़ कर जा चुकी, से अब भी प्यार करते हैं, उसका इंतज़ार करते हैं और उसकी एक झलक देखने अब भी उसकी गली जाया करते हैं। ये ट्रैक बहुत खूबसूरत है। डॉ अरोड़ा इन रोगों का सटीक इलाज करते हैं, यही वजह है कि बड़े-बड़े लोग छुपते-छुपाते उनके पास आते हैं और चूँकि ये बीमारी कुंठा का कारण होती है, लोगों का अहम, डॉक्टर की साफ़गोई से टकराता है और विपरीत परिस्थितियाँ पैदा होती हैं। सभी कहानियों का ताना-बाना बहुत अच्छी तरह बुना गया है। पुराने कई कलाकारों को एक बार फिर स्क्रीन पर देख कर अच्छा लगा, खास तौर पर विवेक मुश्रान, जिन्होने एक अखबार के घमंडी मगर लीचड़ एडिटर का किरदार निभाया है। ये बहुत ही दिलचस्प कैरक्टर है जो ऊपर से कुछ और, अंदर से कुछ और है। इस कैरक्टर को बहुत ही अच्छी तरह लिखा गया है और विवेक मुश्रान ने कमाल निभाया है। मेरे ख़याल से ये उनका अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन है, और अगर सिरीज़ हिट होती है तो उनके करियर को एक बार फिर गति मिल जाएगी। यही किरदार है जो डॉक्टर के अच्छे खासे चलते जीवन में मुश्किलें पैदा करता है। विद्या मालदवे ने डॉ अरोरा की भूतपूर्व पत्नी का किरदार निभाया है और बहुत ही बढ़िया निभाया है। उनके चेहरे पर, हाव-भाव में उस किरदार की दुविधा, अंतर्द्वंद्व सब साफ़ नज़र आता है। मैंने उन्हें पहली बार नोटिस किया, हालाँकि उनकी पहली फिल्म “इंतहाँ” (2003) थी। वे “चक दे इंडिया” से limelight में आई थीं। उल्लेखनीय है कि वे स्मिता पाटिल की भांजी हैं। शेखर सुमन भी अरसे के बाद नज़र आए हैं, अपने चित-परिचित अंदाज़ में। वे राजनीति के किंग मेकर हैं, अंबानी जी की तरह। उनका किरदार फ़िलहाल बहुत छोटा रहा, हो सकता है अगले सीज़न में बढ़े। अभिनय सभी कलाकारों ने बेहतरीन किया है। 

एक अच्छी कहानी सिर्फ अपने मूल मुद्दे को ही नहीं उजागर करती बल्कि आसपास के सभी बारीक मुद्दों को भी रेखांकित करती चलती है, वैसे ही जैसे एक व्यक्ति की ज़िंदगी उसकी अपनी मर्ज़ी से नहीं चलती बल्कि, आसपास के माहौल, लोग और परिस्थितियों से नियंत्रित होती है। एक मामूली डॉक्टर है जो छोटा सा काम करके जीवन चला रहा है, लेकिन उसके जीवन में आए लोग उसके जीवन को बर्बाद भी कर सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे आप यूं ही सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट डाल दें, किसी नेता की दुखती रग दब जाये और अगले दिन आपके दरवाज़े पुलिस खड़ी हो। कई लोगों का तो पता ही नहीं चला। 

 ख़ैर, सिरीज़ देखने के बाद मैंने जो बाद ख़ुद कुमुद जी को कही वही यहाँ लिखूंगा, “वैसे तो सिरीज़ लिखी ही बहुत अच्छी गई है, लेकिन इस कैरक्टर को जो dignity और charm वे दे सकते थे, वो किसी और के बस की बात नहीं थी।“ कुमुद मिश्रा बहुत ही चार्मिंग लगे हैं वाकई। अगर इसमें कोई कमी रह भी गई हो तो वे उस तरफ़ नज़र ही नहीं जाने देते। यूँ भी उनकी परदे पर उपस्थिती परदे को रोशन कर देती है। सिरीज़ में “इम्तियाज़ अली” को “created by” का क्रेडिट दिया गया है, समझ नहीं आया इसका क्या मतलब हुआ। 

 सबसे ज़्यादा सुकून मुझे किस बात से मिला पता है? संगीत से, जी हाँ, इस सिरीज़ में गाने भी हैं और लाजवाब हैं। संगीत नीलाद्रि कुमार का है जो एक सितार वादक हैं, उन्होने संगीत की गरिमा बरकरार रखी है और बहुत ही मीठे और प्यारे गीत बनाए हैं। इसी विषय को अगर आल्ट बालाजी उठाता तो क्या बनाता आप समझ सकते हैं, शुक्र है नहीं उठाई। सिरीज़ का genre कॉमेडी है लेकिन लाउड नहीं, बहुत ही subtle कॉमेडी है। कॉमेडी एक किरदार की कास्टिंग से भी पैदा हो सकती है ये समझ आता है जब आप एसपी तोमर के किरदार को देखते हैं। और ऐसा भी नहीं जैसा जॉनी लीवर करते हैं, एक्टर गंभीरता से एसपी बना है लेकिन फिर भी हास्य पैदा हो रहा है। यही एक अच्छे लेखक और निर्देशक की पहचान है। सिरीज़ ज़रूर देखी जानी चाहिए। विषय को देखते हुए इसमें सेक्स सीन होना लाज़मी है इसलिए बच्चों के साथ कतई न देखें। 

 #DrArora #WebSeries #WebSeriesReview #DrAroraReview #SonyLiv #FilmReview

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट