Little Umbrella - Janhit mein Jaari

मैंने देखी "जनहित में जारी"। ज़ी5 पर उपलब्ध है। फ़िल्म में नुसरत भरूचा मुख्य किरदार में हैं हालाँकि मैं सूरत से उन्हें नहीं पहचानता, नेट पर ही कहीं पढ़ा था। मुझे आजकल की सारी हीरोइन्स एक जैसी लगती हैं। जिस अतिशय सुंदरता के होने पर लड़कियों को हीरोइन कह दिया जाता था, वो अब गुज़रे ज़माने की बात है। मैं कई बरसों से इस बात पर क़ायम हूँ कि सम्पूर्ण नायिका माधुरी दीक्षित के बाद कोई नहीं आई। सम्पूर्ण से मेरा मतलब है, खूबसूरती और प्रतिभा का जानलेवा मिश्रण। "जनहित में जारी" को एक कॉमेडी के रूप में प्रचारित किया गया जो सामाजिक संदेश भी देती है। फ़िल्म एक छोटे शहर की कहानी कहती है, जैसा कि आजकल चलन है, और इसीलिए फ़िल्म की नायिका का नाम "मनोकामना" रखा गया है, हालाँकि इस उम्र की किसी भी लड़की का, किस छोटे शहर में मनोकामना नाम नहीं मिलेगा। नाम तक से मिडिल क्लासपना टपका रहे हो यार। ख़ैर, तो ये लड़की नारी शक्ति है, वैसी ही जैसी कि आजकल फिल्मों में होती है, वुमन एम्पावरमेंट मतलब दारू पीने, गाली बकने वाली लड़की। इस लड़की को बियर पीने का शौक है और शादी नहीं करनी अभी, पहले जॉब। मोहल्ले का एक लड़का उसे चाहता है जिसे पता नहीं कि शास्वत काल से उसके नसीब में मामा बनना लिखा है। मनोकामना इम्प्रेस हो जाती है बाहरी एलिमेंट से और धड़ाधड़ शादी भी हो जाती है क्योंकि कहानी में ट्विस्ट शादी के बाद ही आना था। अब ये लड़की काम करती है एक कॉन्डोम कंपनी में,,जिसका नाम है, लिटिल अम्ब्रेला, बतौर सेल्स गर्ल। एक लड़की दुकान-दुकान जाकर कॉन्डम बेचे ये हौव्वा तो है भिया। पहले मैं आपको आजकल की छोटे शहर, मिडिल क्लास की हीरोइन का चरित्र-चित्रण बता देता हूँ। वो मुँहफट होगी, बाप को तू-तड़ाक भी कर सकती है, शादी के ख़िलाफ़ होगी, दारू-सिगरेट पिएगी, मॉडर्न गर्ल होगी और सब कुछ साफ-साफ कहने वाली होगी, छुपाकर न करेगी। तो साहब अपने मियाँ को कहती है कि घर मेेरे काम के बारे में बता दो पर मियाँ नहीं बता पाता, क्योंकि उसका बाप विजय राज़ है, और उनका नेचर तो आप जानते ही हैं, वो अपने बाप की भी नहीं सुनते। तो बस यहीं से कहानी उलझती है, कुछ फनी situations बनती हैं, कुछ बनाई जाती हैं। बीच में सामाजिक कोण ये लगा दिया जाता है कि लिटिल अम्ब्रेला का उपयोग न करने की वजह से कई महिलाओं की मौत हो जाती है या बार-बार गर्भपात करवाने से शरीर खराब हो जाता है। मनोकामना ये बात सबको समझाने लगती है और परिवार की फ़जीहत होने लगती है। फ़िल्म बुरी नहीं है लेकिन अच्छी होने के थोड़ी पहले ठहर जाती है। क्लीशे तो है ही, ऊपर से जिसे सामाजिक सरोकार बनाकर पेश किया गया है, वो भी कमजोर है। कोई स्ट्रांग मोटिवेशन नहीं नज़र आता मनोकामना के सामने। छोटे शहर में पंचायत बैठा दी गई है जो कहीं से भी सही नहीं लगता। आजकल तो छोटे गावों तक में ऐसी पेड़ के नीचे पंचायत नहीं बैठती। लोग घर की दीवार पर बड़े-बड़े अक्षरों में आपत्तिजनक शव्द लिखकर वहीं खड़े-खड़े बातें भी कर रहे, हँस रहे और मुँह पर बोल भी रहे, जबकि ऐसा कहीं भी नहीं होता है। बवाल हो जाता है इतना होने पर तो। जिस तरह पुरानी फिल्मों में नकली गांव होता था, वैसे ही आजकल नकली कस्बा होता है। रियलिटी के नाम पर कुछ भी बनाया जा रहा है। ऐसी ही एक और फ़िल्म आई है "गुड लक जेरी"। बिहार की पृष्ठभूमि पर है। इसके मेकर्स ने तो कमाल ही कर दिया, जान्हवी कपूर को ले लिया बिहारी, लोअर मिडिल क्लास लड़की के रोल में। जिस लड़की ने उस तबके के दर्शन ही ना किये हों कभी, वो उस किरदार को कैसे समझेगी? उसे तो हिंदी ही ठीक से नहीं आत्ति फिर बिहारी लहज़ा?? मैंने पूरी फिल्म नहीं देखी, मैं देख ही नहीं पाया। वही नकलीपन। उस पर जान्हवी कपूर की एक्टिंग, उफ। इससे जनहित में जारी बेहतर है, मैं फिर भी पूरी देख पाया। TV पर देखने में यही समस्या है कि एक बैठक में पूरी फ़िल्म देख लें संभव नहीं होता। वो तो कोई गेम ऑफ थ्रोन्स ही हो तो कॉलर पकड़ कर बैठा लेता है चाहे ज़रूरी काम ही क्यों न हो। ये फ़िल्म भी दो बार में देखी पर दूसरी बार सिर्फ पूरी करने के लिए, ऐसी कोई उत्कंठा नहीं थी। बहरहाल, फ़िल्म एक बार देखी जा सकती है। भरूचा ने एक्टिंग अच्छी की है और विजय राज़ तो ट्रीट हैं हमेशा। हीरो बिल्कुल हीरो जैसा नहीं है, मेरा मतलब सामान्य दिखने वाले हीरो जैसा भी नहीं। बाकी ठीक है। गाने भयानक हैं। #janhitmejari #review #filmreview

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