महारानी 2 - सर्वश्रेष्ठ पॉलिटिकल ड्रामा

महारानी-2 देखनी तो थी और जल्दी ही देखनी थी क्योंकि हमारे उमा भाई ने लिखी है पर जब देखने बैठा तो कमबख्त याद ही नहीं आ रहा था कि पहला भाग कहाँ ख़त्म हुआ था। सिरीज़ के साथ ये बड़ी समस्या है, खास कर मेरे जैसे मेमोरी लॉस वाले लोगों के साथ, लंबा समय हो जाये तो कहानी तो याद रहती है, घटनाएँ भूल जाते हैं। खैर, पिछले भाग का recap देखा और फिर शुरू किया द्वितीय भाग। पहले भाग में रानी पति को गोली लगने पर मुख्यमंत्री बन जाती है और धीरे-धीरे सत्ता और पति का घिनौनापन उसके सामने आने लगता है। बहुत जल्दी ही वो राजनीति के दाँव-पेंच सीख जाती है लेकिन उनका इस्तेमाल जनता की भलाई और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ़ करती है। इस सब में लगभग सभी लोग उसके दुश्मन हो जाते हैं, क्या पक्ष वाले, क्या विपक्ष वाले। क्योंकि अंततः दोनों पक्ष सत्ता, ताक़त और दौलत के लिए ही तो चाहते हैं। और सबसे अफ़सोस जनक बात ये है, कि जनता ने इसे स्वीकार कर लिया है, अब जनता अपनी-अपनी पसंद के लुटेरों को लूटने का मौका देना चाहती है। ऐसे में रानी जैसे लोगों को चौतरफ़ा लड़ाई लड़नी पड़ती है, अपनों से, विरोधियों से और यहाँ तक कि जनता से भी। क्योंकि नेता इसी जनता के बीच से ही तो आता है, वो बेईमानी का बीज सबमें मौजूद है, जो इनमें सबसे बढ़कर हो वो आगे निकल जाता है। कहानी का दूसरा भाग इस संघर्ष को और आगे ले जाता है। इस बार रानी को न सिर्फ़ नवीन और काला नाग से लड़ना है, बल्कि अपने पति भीमा बाबू से भी लड़ना है। रानी ईमानदार है, बाकी सब बेईमान लेकिन अफ़सोस कि जनता इस ईमानदारी को कभी वोट नहीं करती चाहे पूरा चुनाव इसी मुद्दे पर लड़ लिया जाये। कारण ये कि ये जनता खुद अपनी-अपनी हैसियत में लूटपाट कर रही है। मुंबई की एक गरीब बस्ती में दुकानदार 10 रु वाला दूध का पैकेट 12 रु में बेचता है और फुर्सत काटने आए मित्रों के बीच भ्रष्टाचार पे लंबे-लंबे भाषण पेलता है। देश में हर वो आदमी जो नया मकान बना रहा है, कम से कम 2 फीट ज़मीन दबाना चाहता है वरना एक हीन भावना उसे घेरने लगती है। 

 वापस सिरीज़ पर आते हैं, रानी इन सबसे लड़ रही है। नवीन 17 साल से मुख्यमंत्री बनने का इंतज़ार कर रहा है, भीमा बाबू को अपनी खोई कुर्सी वापस पानी है और काला नाग का भी जीवन इसी इंतज़ार में गुज़रा है। ये लोग इतने desperate हैं कि अब रानी को हटाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, और जाते भी हैं। कहानी ऊपर-ऊपर इन मुख्य पात्रों का संघर्ष है लेकिन अंदर-अंदर बहुत सी कहानियाँ, बहुत से पात्र हैं जो इस कहानी को दिशा देते हैं। यही सब चीज़ें इसे बेहद दिलचस्प बना देती हैं, इतनी कि आप देखते-देखते खुद एक पात्र हो जाते हैं। आप उसी दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं।

 और एक फिल्म की सबसे बड़ी सफलता तो यही है। उमाजी ने एक बार कहा था कि पहले भाग के समय कोविड की वजह से हम मन का नहीं कर पाये थे, यानि खुलकर execute नहीं कर पाये थे, मगर इस बार वो सब किया जो पहले नहीं कर पाये थे। बिलकुल यही चीज़ इसे देखते समय मैंने महसूस की, पहला भाग भी बढ़िया था लेकिन कुछ कमी सी थी, इस बार तो बस कमाल ही कर दिया है। जब तक पूरी नहीं देख ली छोड़ी नहीं, उसके बाद उस पर लिखना भी मुझे मुश्किल ही लग रहा था। स्क्रीनप्ले सुभाष कपूर जी का है और संवाद उमा जी ने लिखे हैं और इस सिरीज़ की जान हैं। चुनाव प्रचार के लिए उन्होने नए नारे भी गढ़े हैं, मुहावरों का भी बढ़िया प्रयोग है, और सबसे बड़ी बात, गहराई है संवादों में। इस तरह की कहानी लिखने के लिए राजनीति और समाज की बहुत गहरी समझ चाहिए होती है, जो इसमें नज़र आती है। हुमा कुरैशी का गैंग्स ऑफ वासेपुर देखते ही मुरीद हो गया था। उन्होंने रानी के रोल में कमाल किया है। ये अभिनेत्री ग्लैमर से नहीं अपने काम से लाईमलाइट में रहती है, यही इनकी खासियत है। बड़े-बड़े कद्दावर अभिनेता हैं, अमित स्याल, सोहम शाह, विनीत कुमार। इन सभी में मुझे सबसे ज़्यादा जँचे विनीत कुमार। ऐसा लगता है कि उनसे ज़्यादा एंजॉय अपने चरित्र को और कोई नहीं कर रहा। वे विलीन हो गए काला नाग में ही। उनकी भाव-भंगिमाएँ, मुख-मुद्राएँ, बस मज़ा ही आ गया। उनके हिस्से सबसे चुटीली पंक्तियाँ आईं हैं। मैं तो इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें मैसेज ही कर दिया कि आपका ऑटोग्राफ चाहिए मुझे। डॉक्टर अरोरा के बाद इसमें भी संगीत पर बहुत मेहनत की गई है। जहां एक तरफ डूड्स संगीत का सत्यानाश करने पर तुले हुए हैं वहीं ये देखकर बेहद खुशी हो रही है कि वेब सिरीज़ में भी संगीत का स्कोप बन रहा है और निस्संदेह सिरीज़ में जिस तरह अच्छा कंटैंट बनने लगा है, अच्छा संगीत बनने की भी गुंजाइश है। ये भाग बहुत दिलचस्प मोड़ पर ख़त्म हुआ है, बेसब्री से इंतज़ार है अगले भाग का। मेरी राय में ये हिन्दी में बनी सबसे बढ़िया राजनीतिक सिरीज़ है। इसके अलावा अगर राजनीतिक फ़िल्म देखनी है तो मणि रत्नम की 'इरुवर' देखिये। 

 और हाँ, उमाजी पार्टी चाहिए इसकी, क्योंकि इस सिरीज़ के हीरो हमारे लिए तो आप ही हैं। और मेरे मन में इसे लेकर बहुत से सवाल भी हैं।

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