Khaaki - The Bihar Chapter | A powerful story




 ऐ जी Umashankar जी, आप एतना अच्छा काहे लिखते हैं जी? रात – रात जाग के देखना परता है।

सिरीज़ के बारे में बात करने से पहले बात करें असली अमित लोढ़ा की जिनकी किताब और जीवन पर ये सीरीज आधारित है। उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में निलंबित कर दिया गया है। आरोप भी सीरीज से संबंधित ही हैं कि उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए किताब लिखी और फिर उस किताब पर सीरीज बनाने में मदद की और उससे पैसा कमाया। मुझे नहीं पता कि आचार संहिता क्या है, पर प्रथम दृष्टया ये दुर्भावना से प्रेरित लगता है। यूं तो सभी के बड़े – बड़े रेले सबको पता होते हैं पर सब आंखें मूंदे रहते हैं फ़िर एक किताब के आधार पर कार्यवाही संदेहास्पद लगती है।

अब आएं सीरीज पर। अगर अमित लोढ़ा वाकई इसमें दिखाए किरदार ही हैं तो उनकी किताब लिखने की गलती को नजर अंदाज कर देना चाहिए। Obviously सीरीज में सिनेमेटिक लिबर्टी ली गई होगी किरदारों और परिस्थितियों को और दिलचस्प बनाने के लिए पर फिर भी heroic काम तो था। लोढ़ा आईआईटी छोड़कर आईपीएस सेवा चुनते हैं, बहुत ही नेक इरादों के साथ और उन्हें पोस्टिंग मिलती है बिहार में। चंदन महतो उस वक्त एक निकम्मा, नाकारा, बेरोजगार आदमी था। बहुत ही सीधा साधा। दोनों का करियर एक साथ ही शुरू होता है। ये बिहार में लालू के जंगलराज का समय था, अपहरण एक उद्योग था। चंदन के जीवन में इसी दौरान उथल – पुथल होती है, पहली गोली अपने मालिक के पैर में मारकर और फिर दूसरे मालिक का गला घोंटकर वो बन जाता है चंदन भैया, जिसके नाम से सब थरथराते हैं। यहीं से दोनों के जीवन समानांतर रूप से आगे बढ़ते हैं और एक मोड़ पर आमने सामने आ खड़े होते हैं। इस यात्रा में हम सब कुछ देख लेते हैं, जनता की लाचारी, उसका दोगलापन, पुलिस महकमे की वास्तविकता और राजनीति का तो जानते ही हैं।

कहानी की सबसे अच्छी बात ये है कि ये किसी एक तरफ नहीं झुकती, ना तो अपराधी का मसीहा या शोषित की तरह महिमामंडन है, ना ही खाकी को ही पूरी तरह हीरो बनाया गया है, बल्कि उसे पूरी तरह भ्रष्ट भी नहीं बताया गया है। जैसा कि होता है, बेईमान अफसर होते हैं तो ईमानदार भी होते हैं। ये बात ज़रूर है कि ईमानदार चाहे जिस क्षेत्र में जाए उसे बहुत मुसीबतें झेलनी होती हैं।

अच्छी राइटिंग और एक्जिक्यूशन भी उतना प्रभावी नहीं होता अगर अभिनेता कमज़ोर हों, यहां सभी का काम बहुत उम्दा है। अविनाश तिवारी ने कमाल किया है चंदन के रोल में, उसकी बॉडी लैंग्वेज, मैनरिज्म, सब कुछ परफेक्ट पकड़ा है। अभिमन्यु सिंह को मैंने सबसे पहले गुलाल में देखा था, वो उनकी पहली ही फिल्म थी पर मुझे उसी फिल्म से ये एक्टर बहुत अच्छा लगा था। इस सीरीज में कमाल का काम है उनका। उनकी पर्सनेलिटी और अभिनय बहुत दमदार है। आशुतोष राणा के बारे में तो कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं।

All in all, एक बेहतरीन अनुभव। बावजूद इसके कि बिहार पर हम शूल, गंगाजल, अपहरण, महारानी, बहुत कुछ देख चुके हैं, ये सिरीज़ कहीं से भी बासी नहीं लगती, ये आपको जकड़ लेती है जब तक ख़त्म न हो जाए।

बस एक सवाल रह गया मन में, अंत में ख़बर किसने लीक की?


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