पाताल लोक - हिन्दी में बनी सबसे अच्छी सीरीज़ में एक

शायद सबके देख लेने के बाद देखी होगी मैंने, कुछ पूर्वाग्रहों के चलते। क्या देखूँ का सवाल ज़हन में लिए यूं ही पहला एपिसोड चालू कर लिया और फिर पूरे नौ एपिसोड देखकर ही रुका। आजकल जो sensation क्रिएट करने का दौर चल रहा है उससे मुझे कोफ़्त होती है। मिर्ज़ापुर देखकर मन खराब हो गया था, पाताल लोक को उसी श्रेणी में रखकर मैं देखने से कतरा रहा था। चलन के मुताबिक इसमें वीभत्सता तो है पर सिर्फ जुगुप्सा पैदा करने के उद्देश्य से नहीं है। इतनी गहराई लिए और कोई सिरीज़ मैंने नहीं देखी। डिटेल्स, न सिर्फ दृश्यों के फिल्मांकन में बल्कि विचार में भी। कुछ seconds के दृश्य में कई पैराग्राफ कह जाना सबसे बड़ी विशेषता है इस सिरीज़ की। अपराध दिखाया है लेकिन उस अपराध की जड़ों तक ले जाकर खड़ा कर दिया है आपको, फ़ेस टु फ़ेस; अब आप देखिये क्या करना है। बता दिया कि हथौड़ा, हथौड़ा किन परिस्थितियों में है और हाथी राम, हाथी राम क्यों है। बहुत ही इंटेलिजेंट राइटिंग है। छोटे क़स्बों, शहरों की मानसिकता और इंसान के मनोविज्ञान की गहरी समझ रखने वाला ही ऐसे किरदार रच सकता है, ऐसी परिस्थितियाँ बना सकता है। 

वैसे तो ये एक अपराध कथा है। 4 लोग एक पत्रकार की हत्या की साज़िश करते पकड़े जाते हैं। हाथी राम चौधरी को ये केस मिलता है। उसकी ज़िंदगी का ये पहला बड़ा केस है; वो जान लड़ा देना चाहता है। पूरी कहानी इसी तफ़्तीश की कहानी है और ये एक केस की नहीं पूरे समाज की तफ़्तीश बन जाती है। कहानी समाज की हर सड़ांध के ऊपर पड़ा परदा बेरहमी से फाड़ देती है कि लो, देख लो अपनी असलियत। यूं लगता है जैसे कीचड़ ही कीचड़ है जिसमें हम सब लिथड़ा रहे हैं पर मन बहलाव के लिए आसमान की तरफ नज़र गड़ाए रहते हैं। ऐसा नहीं है कि ये किसी और की कहानी है, ये हम सब की है। उन सब किरदारों में हम भी मौजूद हैं। ये पाताल लोक, जिसे हम धरती के नीचे स्थित मानते हैं, दरअसल यहीं है, हम उसी में रहते हैं। आज अपने आसपास के हालात देखकर क्या ऐसा नहीं लगता? ये लाशों के बीच नकली दवाइयाँ बनाने वाले, ये लोगों को मरते छोड़ काला बाजारी करते लोग, झूठी कहानियाँ गढ़ती मीडिया और रैलियाँ करते नेता, ये पाताल लोक ही तो है। पूरा भारत पाताल लोक में ही बसा हुआ है, ये मान लीजिये। और नेताओं को दोष देना जनता की सहूलियत है पर देश का हर नागरिक अपने स्तर पर वही है, जिसे मौका मिलता है वो बेईमान होने में देर नहीं करता। नेता इन्हीं लोगों के बीच से ही आते हैं ना? यही तो वजह है कि ये लोग कभी ईमानदार, समझदार आदमी को चुनाव नहीं जितवाते, क्योंकि वो इनके बीच से नहीं है। वो इस पाताल लोक में अपवाद है। 

 सिस्टम क्या है? कोई भगवान की बनाई चीज़ नहीं है। एक समाज का सामूहिक चरित्र जो होता है, वही सिस्टम होता है। और ये समाज व्यक्ति से ही बनता है तो जिस समाज में अधिकांश लोग जिस तरह के होंगे, वहाँ का सिस्टम वैसा ही होगा। पाताल लोक इसकी गहराई से पड़ताल करती है और यही बात बिना कहे आपको बता देती है। यही इसकी खूबसूरती है कि सबसे महत्वपूर्ण बातें बिना कहे कही गई हैं। प्रतीकों का बेहतरीन उपयोग है हर जगह। संवादों से ज़्यादा दृश्य बोलते हैं। 
 इसी के एक पात्र “चीनी” की कहानी है, जो मुझे बहुत हृदय विदारक लगी। चीनी जब बच्चा था, उसके माता-पिता मर जाते हैं। उसका मामा उसे रेल में बैठाकर गायब हो जाता है। फुटपाथ पर दूसरे बच्चों के साथ वो रहने लगता है। वहीं का एक गुंडा इन बच्चों का यौन शोषण करता है, उसे चीनी पसंद आ जाता है तो वो खुद तो करता ही है, दूसरों को भी परोसता है। चीनी इसी तरह बड़ा होता है और फिर एक बड़े कांड में फँसा दिया जाता है। इतनी संवेदनशीलता से इस कहानी को कहा गया है कि आपका दिल दुखता है ऐसे हर बच्चे के लिए, और हमारे देश मे लाखों हैं ऐसे बच्चे। वो कौन लोग हैं जो कहानी में सार देखने की बजाय कुछ दृश्यों से आहत हो जाते हैं? आहत होना ही है तो चीनी के लिए होना चाहिए था, तोप सिंह के लिए होना था जो जातिवाद का शिकार था, त्यागी के लिए होना था जो सामाजिक हिंसा की व्यवस्था का शिकार था या हाथी राम के लिए, जो सिस्टम की नंगाई का शिकार था। ये खोखले, आहत लोग ही इस सिस्टम का तेल हैं। 

 ख़ैर, जयदीप अहलावत ने तो बस कमाल ही कर दिया है। कितने जबर्दस्त अभिनेता आजकल सक्रिय हैं, देखकर अच्छा लगता है। गुल पनाग की उम्र हो गई है। इस बढ़िया अभिनेत्री को जाने क्यों ज़्यादा मौके नहीं मिले। एक घटना mob lynching की भी दिखाई गई है। उस अन्याय और पतन की तरफ़ इशारा है जो फिलहाल चलन में है। ऐसा नहीं है कि कोई घटना होकर खत्म हो जाती है, हर एक घटना से लहरें उठती हैं जो उसी तरह की अन्य घटनाओं को जन्म देती हैं। मीडिया की असलियत बहुत ही नपे-तुले अंदाज़ में बता दी गई है। ये लोग आज के दौर के सबसे ज़्यादा सड़ांध से ग्रस्त लोग हैं। देश में आग लगाना इनके लिए बाँये हाथ का खेल है। ये लोगों के मनोविज्ञान के साथ खेल सकते हैं, जैसी चाहें वैसी लहर पैदा लार सकते हैं। एक झटके में लोगों की ज़िंदगी बरबाद कर सकते हैं, इतनी ताक़त इनके हाथ में दे दी गई है और ये उसका दुरुपयोग ही कर रहे हैं। अनूप जलोटा ने अच्छा अभिनय किया है, किसी ने कहीं बताया नहीं कि अनूप जलटा ने भी इसमे अभिनय किया है? वैसे ये पहली बार नहीं है, 80 के दशक में भी वे कोशिश कर चुके हैं, दिल की पुरानी तमन्ना है उनकी। अंसारी का कैरक्टर बहुत ही अच्छा बनाया है और उसके जरिये जो चोट की गई है वो भी सटीक है। सटीक है तभी वो लोग तिलमिलाए जिन पर की गई है। विपिन शर्मा ने वही कैरक्टर किया है जो हमेशा करते हैं, उन पर चिड़चिड़े, मुँहफट आदमी का कैरक्टर सूट करता है। वैसे, असल में भी उनका स्वभाव कुछ ऐसा ही है, मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ है उनसे बात करने का। 

अभिनय सभी का बेहतरीन है पर हाथी राम जी छा गए, उस कैरक्टर में इतने ज़्यादा shades थे कि किसी भी हल्के अभिनेता के लिए असंभव था। उसे मजबूत भी होना था और कमजोर भी, बेबस भी होना था और बेबाक भी। इतनी खूबी से अहलावत ने इसे निभाया है कि लगता है कि और कोई कर ही नहीं सकता था। वैसे तो अधिकांश लोगों ने देख ली होगी पर नहीं देखी तो देखिये और मानवीय नज़रिये से देखिये।

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टिप्पणियाँ

  1. DR. Prashant Kumar7:38 pm

    शानदार, जबरदस्त, जिंदाबाद। मेरी भी फेवरेट वेब सीरीज में से एक है। आपके रिव्यू ने मन आह्लादित कर दिया। मन कर रहा है फिर से एक बार देखूं।

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  2. बेनामी7:44 pm

    Jaideep alhawat bahut hi acha actor hai. Aur kuch expressions to unke face pe bahut zyada janchte hain.

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    1. बिल्कुल next generation की टॉप लीग में है।

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  3. बेनामी11:15 am

    वाह, जैसे लगा कि दुबारा देखा रहा हूँ😊

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