जाने क्यों ये फ़िल्म भुला दी गई है, बल्कि किसी ने नोटिस ही नहीं की कभी। मैंने इसे तब भी देखा था जब ये रिलीज़ हुई थी, और अभी फिर से देखा। क्या ही जबर्दस्त आइडिया है और क्या ही जबर्दस्त execution।
इंडस्ट्री में ये एक टीम है, जो चुपचाप अपना काम करती है, बिना किसी शोर-शराबे के। कम बजट में बेहतरीन काम किया है अब तक इन्होंने। इस टीम के सदस्य हैं, रजत कपूर, सौरभ शुक्ला, मनु ऋषि, हर्ष छाया, रणवीर शौरी, विनय पाठक, पहले नेहा धूपिया भी थी और ऑन एंड ऑफ संजय मिश्रा। ये सब मिलकर धमाल रचते हैं। इस टीम की “आँखों देखी” तो बस कमाल फ़िल्म ही थी।
मिथ्या 2008 में आई थी, हालाँकि फ्लॉप तो नहीं थी पर कोई चर्चा भी नहीं हुई इसकी।
मुझे बहुत बढ़िया लगी थी, और आज भी अच्छी लगी।
कहानी है एक स्ट्रगलिंग एक्टर की जो फिल्मों में एक्सट्रा का काम करता है। खुशकिस्मती कहें या बदकिस्मती, कि उसकी शक्ल एक underworld डॉन राजे भाई से हू-ब-हू मिलती है। राजे भाई का दुश्मन गैंंग है गावड़े (नसीरुद्दीन शाह) और शेट्टी (सौरभ शुक्ल) का। इस गैंंग को ये एक्टर मिल जाता है और राजे भाई को मार कर इसे वहाँ प्लांट कर दिया जाता है। गावड़े की गर्लफ्रेंड सोनम (नेहा धूपिया) उससे प्यार करने लगती है। उधर राजे भाई का छोटा भाई मनु (हर्ष छाया) बहुत गुस्सैल आदमी है। अचानक एक ऐसी घटना होती है कि सब कुछ गड्ड-मड्ड हो जाता है।
एक इंसान असल में क्या है, ये पहचान उसके ख़ुद के दिमाग में अगर गड़बड़ हो जाए तो क्या हो सकता है? दुनिया को देखने का नज़रिया, हमारी अपनी नज़र में अपनी पहचान पर निर्भर करता है। ये कहानी असल में identity crisis की है।
फ़िल्म एक सस्पेन्स थ्रिलर है, और पूरे समय अपनी गति और दर्शक की दिलचस्पी को बरकरार रखती है। थ्रिलर मतलब intense थ्रिलर नहीं है, कॉमेडी थ्रिलर है। रजत कपूर की फिल्मों का ह्यूमर अलग ही लैवल का होता है, कई बार आप ज़ोर से हँस पड़ते हैं और कई बार मुसकुराते रहते हैं। ये ह्यूमर आपको हँसाने की कोशिश नहीं करता बल्कि परिस्थितियों और उन पर किरदार की प्रतिकृया से उपजता है। सबसे अच्छी हास्य फ़िल्म वो होती है जो अपने आप को लेकर गंभीर हो।
मिथ्या को लिखा है रजत कपूर और सौरभ शुक्ला ने, और ये राइटिंग ही फ़िल्म की जान है। डाइलॉग बहुत ही बढ़िया लिखे गए हैं। किरदारों के आपसी रिश्ते बहुत convincingly गुंथे हुए हैं।
परफॉर्मेंस की तो क्या बात करें, सारे ही actors कमाल ही हैं, क्या मैं नसीर साहब की एक्टिंग के बारे में लिखूँ? या सौरभ शुक्ला की? बल्कि नेहा धूपिया ने भी बहुत अच्छा परफॉर्मेंस दिया है जो otherwise कुछ कमाल नहीं कर सकीं कभी। विनय पाठक और बृजेन्द्र काला, गावड़े के गुर्गे हैं जो उसकी सारी गंद साफ करने का काम करते हैं। रणवीर शौरी अपने दोनों किरदारों में फिट हैं, बल्कि आवाज़ भी बदली है दोनों के लिए। हर्ष छाया के बारे में मैं हमेशा यही लिखता हूँ, कि क्यों इस एक्टर को वो मौके नहीं मिले जो मिलने चाहिए थे? बहुत से माने हुए अभिनेताओं की तरह हर्ष छाया भी टीवी धारावाहिक “स्वाभिमान” से निकले हुए हैं। स्वाभिमान में समांतर लीड रोल था उनका और मुझे तभी बहुत पसंद आया था। पर उस धारावाहिक के जो दोनों लीड थे, वे आगे कुछ नहीं कर पाये, और बाकी कलाकार शीर्ष पर पहुँच गए।
संगीत के नाम पे तो कुछ नहीं है फ़िल्म में। कम characters और कम locations के साथ बहुत अच्छी फ़िल्म बनी है।
अमेज़ोन प्राइम पर उपलब्ध है।
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जरूर देखते हैं, आपकी टिप्पणी पढ़ने के बाद उत्सुकता जाग गई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंमैंने तब ही देखी थी जब ये फिल्म रिलीज हुई थी।
जवाब देंहटाएंसीडी पर।
बेहतरीन फिल्म है
शुक्रिया :)
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