तू सबका करती है, तेरा कोई नहीं करता

 


बचपन में देखा था, पता नहीं अब भी होता हो। अक्सर कोई बाबा गली-मोहल्लों के फेरे लगाता आ जाता था। दोपहर में पुरुष काम पर गए होते थे, और महिलाएं पड़ोसनों के साथ पूरी तन्मयता से सास, बहू, ननद, देवरानी, जेठानी इत्यादि की निंदा का भरपूर रस ले रही होती थीं। ये बाबा “अक्कड़-बक्कड़ बंबे बो” करके कोई एक महिला चुनकर, कोई जुमला फेंक देता था जैसे – तेरे माथे पे लिखा है कि तेरा समय बदलने वाला है, या तू सबका करती है पर तेरा कोई नहीं करता, मन दुखी है, कोई चिंता तुझे खा रही है...


अब इस देश में पैदा होने का मतलब ही है कि चिंता रोज़ तुम्हारा नाश्ता, लंच, डिनर करेंगी। यहाँ कौन कह सकता है कि सब चंगा सी? अब साधू बाबा आए हैं, भले ही मन न हो तो भी उन्हें अंदर बुलाना ही पड़ता क्योंकि डर होता था कोई श्राप न दे दें। धरम का मामला है। मेरी माताजी मेरे कुछ बोलने पर डांट देती थीं। 

बाबा का सबसे कारगर जुमला होता था – “तू सबके लिए करती है पर तेरे लिए कोई कुछ नहीं करता”


बस, इतने मे तो बाइयाँ बाबा की मुरीद हो जाती थीं, क्योंकि हर किसी को लगता है कि वो सबके लिए पहाड़ तोड़ता है, और कोई उसके लिए ढेला भी नहीं तोड़ता। कई महिलाओं के तो आँसू टपकने लगते। 

बाबा अगला पाँसा फेंकता...पर चिंता मत कर तेरा समय बदलने वाला है। तेरे माथे पे लिखा है, बहुत जल्दी तेरा बड़ा काम होने वाला है। कोई बच्चा बाहर आ जाए तो कहता था...बड़ा भाग्यशाली बच्चा है। सूर्य के जैसा प्रतापी होगा। ओहो! इतने मे तो लहालोट हो जातीं। मैं आज तक इंतज़ार में हूँ एक बाबा की इस बात के होने के...उम्र 50% से ऊपर निकल गई है। 


इतनी सब बातों के बाद बाबा को कुछ पैसे या अनाज मिल जाता और वो चला जाता, हालांकि बार्गेनिंग भी करता था। कुछ महिलाएँ ज़्यादा दे देती थी और कुछ इतनी बातें सुनने के बाद अपने रंग में आ जाती और 5-10 रु देकर टरका देती पर बाबा की बातों की चाशनी देर तक चढ़ी रहती। 


एक बार एक बाबा ने सोचा कि क्यों न इसे राजनीति में इस्तेमाल किया जाये?

और उसने पूरे देश को मोहल्ला समझ कर हाँका लगाया – भाइयों और बहनों!


हम आज तक उसकी झोली भरे जा रहे हैं, वो आज तक कहे जा रहा है - 

 हे माता तू सौभाग्यवती है, तुम सबका करते हो तुम्हारा कोई नहीं करता, तुम्हारे अच्छे दिन आने वाले हैं, तुम्हारा बच्चा प्रतापी है, फलाना, ढिमका...


कमबख़्त, जाने का नाम ही नहीं लेता।

टिप्पणियाँ

  1. बेनामी7:53 pm

    एक बार पंद्रह बीस साल पहले इक्कीस हज़ार का और दूसरी बार बच्चों को हाथी दिखाना पांच हजार रुपए महंगा पड़ा।

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