एक इंसान की सही पहचान घोर
विपत्ति के समय हो होती है। उस परिस्थिति में वो क्या निर्णय लेता है,
किस तरह का व्यवहार करता है, इंसान होने के नाते इंसानियत के कितने गुण
प्रदर्शित करता है। इस कम या ज़्यादा इंसानियत या इंसानियत के बिलकुल ही नदारद होने
के आधार पर उसे महान, अच्छे, सामान्य और निकृष्ट मनुष्य की संज्ञा दी जाती है।
द टेरर – सीज़न 1,
इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। इस उपन्यास की कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित
है। 1845 में ब्रिटिश नेवी के दो जहाज कैप्टन जॉन फ़्रेंकलिन के नेतृत्व में
ब्रिटेन से उत्तर-पश्चिम में रास्ता ढूँढने निकले थे और दोनों जहाज रहस्यमय तरीके
से गायब हो गए। उनका कभी कोई पता नहीं लगा। ये उपन्यास इसी घटना का काल्पनिक
विस्तार है। लेखक ने बहुत ही गहराई से उस जहाज पर मौजूद लोगों की कहानी बुनी है।
हालाँकि इसे हॉरर की
श्रेणी में रखा गया है पर मुझे ये कहानी बहुत ही मानवीय,
बहुत ही गहराई लिए लगी। इसे आम थ्रिलर या हॉरर फिल्मों की तरह सिर्फ चौंकाने के
लिए नहीं बनाया गया है। थ्रिल है, वीभत्सता भी है लेकीन अंत में जो साथ रह जाता है
वो एक सुखद मानवीय एहसास है। अप्रत्यक्ष रूप से बहुत कुछ सिखा जाती है ये सिरीज़।
हमारे लिए तो खास तौर पर उपयोगी है, क्योंकि इस महामारी के दौर में हमारे नेतृत्व,
और जनता दोनों की असलियत सामने आ गई, दोनों ने अपना निकृष्टतम रूप दिखा दिया। हम लोग
सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें करने वाली क़ौम हैं। मानवीयता के पैमाने पर हम बिलकुल असफल हैं। हाँ, अपवाद हर कहीं होते हैं पर अपवादों से पहचान नहीं
बनती। कहीं न कहीं इसकी कहानी को आज की हमारी परिस्थिति से जोड़ कर देखा जा सकता
है।
कहानी कुछ यूं है कि दो
जहाज कैप्टन जॉन के नेतृत्व में निकलते हैं। जॉन के मातहत कैप्टन फ्रांसिस दूसरे
जहाज का नेतृत्व कर रहे हैं। सर जॉन के साथ एक जूनियर भी है जो उनका विश्वासपात्र
है और वरिष्ठता में क्रम में फ्रांसिस के बाद आता है। जहाज एक अंजान जगह पर बर्फ
में फँस जाते हैं। सर्दियों में चारों तरफ बर्फ जम जाती है और जहाज वहीं फंसे रहते
हैं। ये बर्फ 3 साल तक नहीं पिघलती। इन्हें बर्फ के अलावा एक और चिंता घेर लेती है,
एक रहस्यमय जानवर की, जो कोहरे में नज़र नहीं आता और कहीं से भी हमला
करके इनके लोगों को मारने लगता है। परिस्थिति लगातार बिगड़ती जाती है। इस विकट
परिस्थिति में जहाज पर सवार सभी लोगों को इस अज्ञात मुसीबत के साथ एक-दूसरे से भी
निबटना है और साथ ही वापस घर लौटने की कोशिश भी करनी है क्योंकि बर्फ पिघलने के
कोई आसार नहीं है, और उनके पास रखा भोजन सड़ने लगा है। ऐसे में
नेतृत्व पर दबाव और भी बढ़ जाता है, उसे सही निर्णय लेना है और साथ ही उन सभी लोगों को
सुरक्षित भी रखना है, जिनकी ज़िम्मेदारी है उस पर। शुरुआत में टकराव
सिर्फ जॉन और फ्रांसिस के बीच ही है लेकिन ये टकराव फैलते-फैलते एक-एक आदमी को
गिरफ़्त में ले लेता है। न सिर्फ जहाज पर
मौजूद लोग, बल्कि उस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी लोगों को
भी।
सिरीज़ का लेखन बहुत अच्छा
है। कैरक्टर ग्राफ़ बहुत ही अच्छे और विश्वसनीय तरीके से बनाया गया है। शुरुआत में
कैरक्टर जिस तरह के नज़र आते हैं वो समय के साथ बदल जाते हैं और ये बदलाव बिलकुल रियलिस्टिक
है।
ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं,
और उस पर सभी लोगों में एक अज्ञात बीमारी फैलने लगती है। ऐसे में लोग क्या करेंगे?
अगर नेता सही हो तो हिम्मत बनाए रख सकता है, स्थिति को जहां तक हो सके नियंत्रण में रख सकता है,
कम से कम इकट्ठा तो रख ही सकता है....या फिर नेतृत्व हमारे जैसा हो तो तहखाने में
छुप भी सकता है और कभी-कभी दूर से झाँक कर अपने मन की बात भी कर सकता है फिर चाहे
जहाज के आगे चलने की कोई संभावना न हो, खाना सड़ गया हो, लोग एक-दूसरे की जान के
दुश्मन हो जाएँ या एक दूसरे को खा ही क्यों न जाएँ।
नैतिकता और अनैतिकता का
संघर्ष बहुत पुराना है। दोनों तरह के नेतृत्व के समर्थक भी मौजूद हैं। उनकी संख्या
निर्णायक होती है वर्चस्व की लड़ाई में। लेकिन एक बात तय है...अनैतिकता के साथ जाने
वाले लोग कभी न कभी खुद उसका शिकार अवश्य बनते हैं। इस कहानी में भी जहाज के क्रू
के दो धडे हो जाते हैं जब दृढ़ व्यक्तित्व के मालिक कैप्टन फ्रांसिस के सामने बगावत
की जाती है। बाग़ियों का जो नेता है उसमें कोई खूबी नहीं,
लेकिन नीचता हद दर्जे की है। उसे जलन है फ्रांसिस से,
वो कुंठित है। वो बताना चाहता है कि वो फ्रांसिस से बेहतर है लेकिन वो राजा बन कर
रहना चाहता है, जबकि फ्रांसिस ज़रूरत पड़ने पर अपने अर्दली की भी
सेवा बड़ी खुशी से करता है। मैंने आपको कहा था न कि हमारे आज के समय की बहुत ज़्यादा
झलक है? इसमें आपको फ्रांसिस और उसके विरोधी में हमारे अपने दो पात्र
नज़र आएंगे? ये और बात है कि हमारे यहाँ वो अलग-अलग समय में
हुए। अनैतिकता का आदमखोर होना भी एक और समानता है।
ख़ैर,
लोग मरते जाते हैं और बचे हुए लोग आगे बढ़ते जाते हैं। अब दो खेमे हैं,
अच्छे लोगों के खेमे को बुरे लोगों के हमले का खतरा है और इन दोनों को उस प्राणी
के हमले का खतरा है।
आगे आप खुद देखिये। सिरीज़
बांधे रखती है। कुछ दृश्य वीभत्स हैं। बच्चों को नहीं दिखाया जा सकता। बाकी एक बार
फिर कहूँगा...इंसान की पहचान प्रतिकूल परिस्थिति में ही होती है,
खाते-पीते तो सभी अच्छी-अच्छी, ज्ञान की बातें करते हैं,
पर जान पर बन आए तब आप किस तरह के निर्णय लेते हैं वही निर्धारित करता है कि आप
किस तरह के इंसान हैं। इसके पात्र आपके दिल को छू लेते हैं। आपकी अच्छाई में आस्था
फिर से बनती है।
अभिनय आला दर्जे का है,
यूं लगता है जैसे असली जहाज पर कैमरा लगा दिया गया हो। कहीं-कहीं बहुत कुछ दर्शकों
की समझ पर छोड़ दिया गया है। बर्फ के सीन सभी सीजीआई से बनाए गए हैं पर पूरी तरह
असली लगते हैं। मेरा सुझाव है, अगर कुछ अच्छा देखने के लिए ढूँढ रहे हैं तो इसे
देखिये। अमेज़न prime पर उपलब्ध है।
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