बर्लिन उर्फ़ दिलजले

 



सबसे बड़ा जो विचार मेरे दिमाग में आया बर्लिन झेल लेने के बाद कि इसका नाम “दिलजले” ज़्यादा उपयुक्त होता, वैसे भी ये कहानी तब की है जब बर्लिन बर्लिन नहीं हुआ था। वो नाम तो प्रोफेसर ने दिया था और ये प्रोफेसर से पहले की कहानी है। तो कुल जमा बात ये है कि इसे बर्लिन की लोकप्रियता को भुनाने अर्थात दर्शकों का, वो जो भी कटता है, वो काटने के लिए बनाया गया है। 

दिलजले इसलिए उपयुक्त है कि इसके लगभग सभी पात्र दिलजले हैं। हमारे गाँव के शोहदे जिसको लव-लपट कहते हैं वो सभी का चला हुआ है और सभी चोट खाये प्रेमी हैं। 

मुझे शक है और मैं seriously ये जानना चाहता हूँ कि इन लोगों ने हमारी 80s-90s की फ़िल्में देखी हैं और भर-भर कर टेंसुए बहाये हैं उन्हें देखकर। मुझे तो फ़ील एट होम हो रहा था इसे देखते हुए। मतलब कोई लड़का खाली नहीं रखा है, सबके लिए एक लड़की है इसमें और सबकी सेटिंग हो जाती है। बर्लिन डाका डालने गया है और जिसके घर में डाका डालना है उसकी बीवी से प्यार कर बैठता है। उसके साथ पाँच लोग और हैं जिनमें दो युवा लड़के और दो युवा लड़कियां हैं, एक अधेड़ है जो अपनी बीवी से बहुत बहुत प्यार करता है।

कहानी क्या है? वही मस्सा और दाढ़ी, मूंछ लगाकर मनी हाइस्ट है। 

मुझे मनी हाइस्ट का सिर्फ़ पहला सीज़न अच्छा लगा और उसमें भी कुछ भयानक cliché नज़र आए थे जिन पर मैंने सर पटका था। दूसरा सीज़न तो झेल ही नहीं पाया। पता नहीं कैसे लोग एक ही कहानी को पाँच बार देख गए। मुझे बेसिक premise से ही आपत्ति है। चोरों को क्रांतिकारी किस बिना पर बना रहे हो भाई?

तो बर्लिन मित्र मण्डल बढ़िया सेट अप करता है चोरी का बिलकुल हाइ टेक। जिसके यहाँ चोरी करनी है उसके घर में कैमरे फिट कर देता है और उसका बेड रूम भी देखता है। उसी बेड रूम को देख देख कर अपने बर्लिन भाई को इश्क़, मोहब्बत, प्यार हो जाता है। और वो चोरी की बजाय लड़की को पटाने में लग जाता है। उधर उसकी गैंंग के लड़के लड़कियां भी पर्याप्त रोना-धोना कर एक दूसरे में उलझ जाते हैं और इस उलझने सुलझने में चोरी की वाट लग जाती है। एक अधेड़ ही बचता है, तो उसे कैसे प्यार से महरूम रखते, उसकी बीवी उसे तलाक देने का बोल देती है और वो बहुत रोता चिल्लाता है। प्यार मोहब्बत की दुहाइयाँ देता है और फिर उसे दूसरी एक औरत मिलती है और मिलने के अगले ही दिन दोनों एक साथ बंद कमरे में होते हैं। मतलब कुछ भी चल रिया है। प्यार पे लंबे लंबे भाषण पेल कर लोग अगले ही दिन उल्टी गंगा बहा रहे हैं। लड़की बर्लिन से बहुत प्यार करती है लेकिन पैसा मांग लेती है और पैसा मिलने पर खुश हो जाती है। एक पल जो आदर्श स्थापित करते हैं अगले पल उनमें पलीता लगा देते हैं। ऐसे ही घोड़ा-चतुर, घोड़ा-चतुर करके सिरीज़ सम्पन्न होती है। और आखरी एपिसोड तो हद झिलाऊ है। 

भाई लोग स्पेन से फ़्रांस जाते हैं डाका डालने। फ्रांस की पुलिस को समझने में तपलीक होती है तो स्पेन से एक पुलिस वाली बुलाते हैं और इस पुलिस वाली इतनी ओवर एक्टिंग की है कि सुदेश बेरी भी पानी भरे। फिर कमी थी तो उस पुलिस वाली को भी ले आए जो मनी हाइस्ट में प्रोफेसर की बीवी बन जाती है और उसकी एंट्री पर ऐसा म्यूजिक बजाया जैसा मिथुन की एंट्री पर बजता था। 

मेरे को मालूम है, अब आप बोलेंगे कि फिर मैंने देखी ही क्यों? तो ऐसा है कि कुछ कुछ चीज़ें अच्छी भी थीं, जैसे ही मैं उकताने लगता कुछ अच्छा आ जाता तो मैं सोचता चलो थोड़ी देर और देख लें, इसी उतार चढ़ाव में पूरी हो गई। अपना सिलैबस भी कंप्लीट हुआ।

और तो और ससुर बर्लिन अगली डकैती का भी बोल दिया है, मतलब “तू फिर आएगा? मीम”

मुझे जो सबसे अच्छी चीज़ लगी वो ये कि बर्लिन लड़की को इम्प्रेस करने के लिए अच्छा आदमी बनने की कोशिश करता है और कहता है “I will be the Gandhi of France”. जिस आदमी की उसके अपने देश वाले अहसान फरामोश दुर्गति बनाए हुए हैं उसे सुदूर स्पेन में भी माना जाता है। कुछ बात है ऐसी कि हस्ती मिटती नहीं हमारी…

ख़ैर, आपके पास खाली टाइम हो तो देख सकते हो, वरना नहीं भी देखी तो कोई नुकसान नहीं। मेरा तो फर्ज़ था इसलिए देखनी पड़ी। 

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