महारानी 3 - न्याय या बदला


 

“जब तक सूरज चाँद रहेगा

रानी तेरा नाम रहेगा।“

राहुल गांधी को तुरंत इस सिरीज़ के लेखकों को अपने साथ रख लेना चाहिए। राजनीति के जितने दांव-पेंच इसमें लिखे हैं उतने में तो तख़्ता पलट कर देंगे। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर इससे बेहतर और इससे ज़्यादा authentic कहानी अब तक तो नहीं देखी।

मैंने “मनी हाइस्ट” का पहला सीज़न रात-रात जाग कर देखा पर दूसरा नहीं देख पाया पर महारानी के तीनों सीज़न उसी दिलचस्पी के साथ देखे यानि तीनों ही आपको बांधने में कामयाब हैं।\

“न्याय या बदला”

तीसरे सीज़न की थीम यही है। पहले दो सीज़न रानी भारती के एक घरेलू महिला से कुशल राजनीतिज्ञ बनने की यात्रा है और तीसरा सीज़न विरोधियों के षड्यंत्र के खिलाफ़ उसका बदला है और ये बदला वो जिस तरह लेती है वो साँस रोक कर देखने काबिल है। इस तरह का स्क्रीनप्ले लिखने के लिए राजनीति और समाज की गहरी समझ की ज़रूरत है। सिरीज़ की सबसे खास बात इसकी राइटिंग ही है फिर चाहे वो स्क्रीनप्ले हो या संवाद। लेकिन ऐसा नहीं है कि दूसरे पहलू कमज़ोर हों, निर्देशन भी बेहतरीन है। मैं एक निर्देशक की नज़र से देख रहा था और बहुत कुछ मुझे मिला जो प्रभावित करता है। आज जब थ्रिलर के लिए वीभत्सता अनिवार्य हो गई है, ये पर्फेक्ट एक्जाम्पल है इसका कि पूरा स्कोप होने के बावजूद बिना रक्तरंजित दृश्य और सेक्स के भी एक प्रभावी और सफल सिरीज़ बनाई जा सकती है। कास्टिंग का तो क्या ही कहें, हर एक एक्टर जैसे उस रोल के लिए ही बना है जो उसे दिया गया है, मुख्य किरदार तो हैं ही जबर्दस्त, यहाँ तक कि प्रेम कुमार का किरदार जिस तरह से निभाया गया है वो काबिले तारीफ है। उस कैरक्टर के अंदर की असुरक्षा, मूर्खता और लिजलिजापन एक्टर ने पूरी तरह से बयां कर दिया है।

पिछला सीज़न देखने के बाद एक बार विनीत कुमार मुझे कहीं मिल गए थे तब मैंने लिखा भी था और उन्हें वही बात कही भी थी कि महफ़िल आपने लूट ली है। वे सरापा काला नाग ही हो गए हैं। यूं लगता है जैसे ये एक्टर नहीं असल आदमी ही ले लिया गया है। पिछले सीज़न में उनके कैरक्टर को जितना footage मिला था इस सीज़न में नहीं है। क्योंकि इस सीज़न में हुमा कुरैशी ने सबको खा लिया है। मनीषा कोइराला के बाद जाकर किसी एक्ट्रेस के लिए वैसी फ़ैन वाली फीलिंग महसूस हो रही है। हालाँकि “गंग्स ऑफ वासेपुर” के बाद से ही मैं फ़ैन हो गया था पर अब मोनिका और महारानी के बाद अब बड़का वाला फैन हो गए हैं। इसी को तो वर्सेटाइल कहते हैं, कहाँ मोनिका और कहाँ महारानी और दोनों किरदारों को जीवंत कर देना। किसी को याद हो न हो पर मुझे दूरदर्शन पर 2008 में आने वाले चंद्रप्रकाश द्विवेदी के सीरियल "उपनिषद गंगा" की हुमा कुरैशी भी याद हैं जब वे दुबली पतली सी हुआ करती थीं।

अमित स्याल जैसे नवीन बाबू ही हैं। इस किरदार के लेखन की भी एक खास बात ये है कि इसमें सुशासन बाबू और महमानव दोनों नज़र आते हैं। बहुत महीन कटाक्ष किए हैं Umashankar भाई ने, उनका नाम स्वराज बाबू कहलवाया गया है जो 18-18 घंटे काम करते हैं। इसीलिए तो कहा, पैनी नज़र चाहिए हर एक चीज़ के लिये।

रानी भारती उस नेता की तरह है जो अच्छा काम करना चाहता है लेकिन उसे करने नहीं दिया जाता, नवीन बाबू उस दबंग की तरह है जो सत्ता के लिये हर तिकड़म लगाने को तैयार है और काला नाग वो नेता है जो कॉकरोच है, उसे किसी भी तरह अपना अस्तित्व बचना है चाहे वो किसी के तलवे चाट कर हो या किसी की जान लेकर। उसके लिये पाला बदल लेना कोई बड़ी बात नहीं है, सिद्धान्त तो नॉन एक्सिस्टंट है। वो सिद्धान्त के लिये राजनीति में है भी नहीं। ये काले नाग आज के दौर में तो हम रोज़ ही देख रहे हैं जब इधर से उधर कूदते नेता देखते हैं।

सिरीज़ में कुछ गीत भी हैं जो कतई अनावश्यक नहीं हैं। मुझे “बैन है” गीत तो खास तौर पर पसंद आया।

बदले या न्याय की ये कहानी बहुत दिलचस्प है और अंत में हमें संतुष्टि का अहसास देती है जब सब कुछ पूरा हो जाता है। हमारी मुट्ठियाँ वैसे ही भिंच जाती हैं जैसे बचपन में अमिताभ बच्चन को खलनायक को पीटते हुए देख कर होती थीं।

आशा है ये सिलसिला यूं ही चलता रहेगा और सीज़न 4 भी देखने को मिलेगा। हालाँकि फिलहाल कुछ अधूरा छूटा हुआ नहीं है। आप तो पूछ रहे थे कि तीसरा सीज़न लोग देखेंगे? मैं कहता हूँ चौथा भी देखेंगे और पाँचवाँ भी। सुन रहे हैं ना उमा जी?

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