पंकज त्रिपाठी के हाथ से समय फिसल रहा है।
मेरी ही नहीं, बल्कि आजकल सभी की ये राय बन गई है कि पंकज त्रिपाठी वर्सटाइल नहीं हैं और उनके एक ही तरह के मैनरिज़म से दर्शक अब बहुत ऊब चुके हैं। अभी वक़्त है उन्हें संभल जाना चाहिए। लेकिन फिल्मी दुनिया संभलने भी कहाँ देती है? एक बार एक एक्टर किसी अवतार में सफ़ल हो जाये तो उसे बार-बार दोहराती है, जब तक कि वो ख़त्म न हो जाये। मगर फिर भी आज का दौर वो दौर है जब प्रयोग करना रिस्की नहीं है, वे धीरे-धीरे किरदार के अनुसार अपने आप को बादल सकते हैं, अगर वे ऐसा कर सकते हैं तो।
इस बात को छेडने की वजह है लगातार दो असफल कोशिशें फिल्म "मर्डर मुबारक" देखने की। चूंकि पंकज त्रिपाठी का उसमें सबसे बड़ा और अहम किरदार है, वे ज़्यादातर समय स्क्रीन पर रहते हैं और उतने ही समय irritate करते हैं। वैसे पूरी फिल्म ही irritating बावजूद इसके कि मैं पूरी देख ही नहीं पाया। मर्डर मिस्ट्री में कम से कम इतना तो होता ही है कि दर्शक ये देखने तो रुक ही जाये कि आख़िर मारा किसने है? पर आधी फिल्म तक मेरा वो लालच भी ख़त्म हो गया और मैंने बिना जाने ही फिल्म बंद कर दी, अब पूरी ज़िंदगी मुझे पता नहीं चल पाएगा कि लियो को किसने मारा?
न चले, मैं और एक घंटा नहीं बैठ सकता, हुंह!
दगे हुए कारतूस इकट्ठा करके ये फ़िल्म assemble की गई है। संजय कपूर, करिश्मा कपूर, डिंपल कापड़िया, टिस्का चोपड़ा और हालाँकि सारा अली खान को इस कैटेगरी में नहीं रखा जा सकता लेकिन वो ऐसा कारतूस है जो बिना चले ही दगा हुआ लगता है। सारा से कहीं खूबसूरत उनकी माँ अमृता सिंह दिखती थी भले उस वक़्त लोगों को उनमें मर्द नज़र आता था, और अभिनय के मामले में तो अमृता सिंह उनके मुक़ाबले महान हैं।
विजय वर्मा को सिर्फ ये भ्रम पैदा करने के लिए लिया गया है कि हम एक sensible फ़िल्म बना रहे हैं, पर ये बस भ्रम ही है। हालाँकि लेखक ने भी कोशिश की है बार-बार आजकल के पॉलिटिकल और social हाल पर कमेंट करने की लेकिन पंकज तो अटल बिहारी हैं, उन पर फबता नहीं है।
कहानी बस इतनी सी है कि अंग्रेजों के बनाए एक क्लब में, जिसमें सिर्फ सुपर रिच लोगों की ही एंट्री है, एक हत्या हो जाती है। जिसकी हत्या हुई वो जिम trainer था और कहानी में रोतडू एंगल जोड़ने के लिए उसे अनाथ बताया गया है। अमीर लोगों के मस्तराम किस्सों से प्रभावित कहानी में ये बताया है कि अमीर औरतें हैंडसम लड़कों को देखकर पिघली जाती हैं, चाहे वो 65 साल की उम्र की ही क्यों न हो। लियो वहाँ आने वाली हर औरत को फंसाए हुए है और सबको ब्लैकमेल कर रहा है। और सिर्फ औरतों को ही नहीं एक राजा साहब को भी फंसा रखा है जिन्हें नवाबी शौक है। इस ब्लैकमेल से वो एक अनाथालय को पैसे donate करवाता है, हाउ समाजसेवक ही इस।
तो इसी मर्डर की मिस्ट्री है ये फिलिम और जाने क्यों इसे कॉमेडी भी बनाने की कोशिश की गई है जिससे ऐसा कुछ अतरंगी बनकर निकला है कि खुद बनाने वाले न पहचान पाएँ। किसी भी रिश्ते का कोई ओर-छोर नहीं मिलता। सारा अली खान बहुत अमीर है पर चोट्टी है। हाँ, ये एक साइकोलोजिकल समस्या है और अच्छा सोचा था इसे उपयोग करने का पर बुरी फ़िल्म में किया। विजय वर्मा मिडिल क्लास कहलाता है पर उस क्लब में अपने माँ बाप के साथ जाता है, confusion।
अमीर सोसाइटी पर व्यंग्य की भरपूर कोशिश की गई है लेकिन तीर एक भी बार निशाने पर नहीं लगा। ऐसी बेतुकी स्क्रिप्ट्स पर करोड़ों बहाये जा रहे हैं। पहली बार दक्षिण की कचरा फिल्मों की तारीफ इस मायने में कर रहा हूँ कि कम से कम उनमें दिखाया गया वर्ग ज़मीन से जुड़ा तो होता है। यहाँ तो हवा हवाई चल रहा है सब।
विजय वर्मा जिस तरह उस क्लब में मिसफिट हैं उसी तरह इस फ़िल्म में भी बहुत ही मिसफिट हैं। करिश्मा कपूर "The nun" फ़िल्म की उस डरावनी नन की तरह दिखने लगी हैं। डिंपल कपाड़िया के बारे में तो मैं "तेरी बातों में..." के बारे में लिखते हुए लिख ही चुका कि कितनी डरावनी दिखने लगी हैं, टिस्का चोपड़ा मुझे बहुत अच्छी लगती हैं और लगी तो अच्छी ही हैं इसमें भी, पर करने के लिए नौटंकी के अलावा कुछ नहीं है। संजय कपूर अपनी दूसरी पारी में अभिनय करते तो नज़र आते हैं पर सही रोल नहीं मिल रहे।
और पंकज बाबू के बारे में तो ऊपर लिख ही चुका। उन्हें गंभीरता से सोचना चाहिए अपने बारे में।
तीन लेखकों ने मिलकर बनाया है ये मुजस्सिमा। ऊपर से डाइरेक्टर हैं होमी अदजानिया जिसने आज तक एक ढंग की फिल्म नहीं बनाई है। "बीइंग सायरस", "कॉक्टेल" और "सास बहू और फ्लामिंगो" तीनों गजब की वाहियात फ़िल्में थीं। सास बहू और फ्लामिंगो का मेरा review आप मेरे ब्लॉग पर पढ़ सकते हैं, लिंक कमेंट बॉक्स में दे रहा हूँ। मैं अगर पहले ये नाम देख लेता तो सच में ये फिल्म शुरू करने की भी ज़ुर्रत नहीं करता। इसकी फ़िल्में देखकर लगता है कि ये आदमी pervert है। सेक्स, ड्रग्स, वगैरह का ऐसा भौंडा प्रदर्शन होता है कि कोफ़्त होने लगे।
ख़ैर, आपने नहीं देखी है तो देख लीजिये, मेरे पास दही जमा है तो आपके पास भी तो होना चाहिए।
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