वन कट टू कट - एक मासूम सी फिल्म


 

One cut two cut

An flower is came

Three cut four cut

What is became

यूं ही अमज़ोन के जंगल में भटकते इस फिल्म पर नज़र पड़ी और न जाने क्यों मैंने लगा ली। 

दक्षिण की फिल्मों का ज़िक्र आता है तो ज़हन में वही बेतुकी तस्वीरें आती हैं जिनमें लोग, कारें, ट्रक वगैरह उड़ रहे हैं। हीरो पैर रखता है तो इतनी धूल उड़ती है कि आँधी भी शर्मिंदा हो जाये और उन्हीं बिना सिर-पैर की फिल्मों को लेकर बिना दिमाग वाले लोग बखेड़ा खड़ा किए हैं। जबकि साउथ में सिर्फ यही कचरा नहीं बनता। वहाँ “नॉर्थ 24 कादम” जैसी बहुत ही खूबसूरत फिल्में भी बनती हैं, वहाँ “दृश्यम” भी बनती है और चलती भी है। बात इतनी है कि उन्हें भी मालूम है कि इधर कचरा चलता है इसीलिए टीवी पर और सिनेमा घरों में वही आता है। 

“आरआरआर” के शोर में “गोपी” की आवाज़ कौन सुने? 

“वन कट टू कट” ऐसी ही एक छोटी-सी, प्यारी-सी, अच्छी-सी फिल्म है। फिल्म कन्नड़ है पर कुछ पात्र हैं जो हिन्दी भाषी हैं इसलिए उनके संवाद हिन्दी और अङ्ग्रेज़ी में हैं। 

“myself an Gopi Sir, I am the professor of Arts and Craft”

ये परिचय है जो गोपी कई बार देता है, हर बार देता है। एक बहुत ही भोला, बुद्धू सा आदमी जिसे एक स्कूल में नौकरी मिलती है। माँ उससे निराश ही मर चुकी है क्योंकि उसे डॉक्टर, इंजीनियर बनाने के सपने देखे थे पर उसने आर्ट चुना, उसकी शादी नहीं होती क्योंकि उसकी डिग्री आर्ट में है जबकि लड़की की कॉमर्स में जो आर्ट से ऊँचा समझा जाता है। आज के दौर में बी.ए. अप्रासंगिक हो गया है। बी.ए. सुनकर अनपढ़ वाली ही फीलिंग आती है लोगों को। बी कॉम थोड़ा सा काम का, बी एससी उससे थोड़ा ज़्यादा काम का। हालाँकि हमारे वर्तमान कर्णधारों ने सभी डिग्रियों में भेदभाव समाप्त कर सबको एक ही स्तर पर कर दिया है। कोई भी डिग्री ले लो, कोई वैल्यू नहीं है। कितने पढे हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, कितने बड़े फ्रॉड हो, उससे इज्ज़त बढ़ती है, ओहदा मिलता है, देश का सर्वोच्च पद भी मिल सकता है। 

ख़ैर, गोपी का पहला दिन है स्कूल में लेकिन एक बड़ी मुसीबत उसका इंतज़ार कर रही है। उसी शहर में “पृथ्वीराज” रहता है जिसे अमिताभ बच्चन से सख्त चिढ़ है। इस चिढ़ का कारण? सब जानते हैं की अमिताभ बच्चन को “ऑल इंडिया रेडियो” ने रिजैक्ट कर दिया था। उन्हें रिजैक्ट कर के उस नौकरी के लिए जिस आदमी को चुना गया, वो था पृथ्वीराज। पृथ्वीराज का मानना है कि अगर उस दिन अमिताभ सिलैक्ट हो जाते और उसे रिजैक्ट कर दिया जाता तो उनकी जगह वो सुपर स्टार होता। डॉन, शहँशाह, दीवार सब उसकी फिल्में होती। उसने इन फिल्मों के गेट अप में अपने पोस्टर्स भी बना रखे हैं। पृथ्वीराज सरकार की किसी नई नीति के खिलाफ एक ट्वीट करता है जो viral हो जाता है। उसे लगता है अब उसके फ़ेमस होने का समय आ गया है। वो उसी दिन नौकरी छोड़ देता है और अगले दिन प्रोटेस्ट की घोषणा कर देता है। ट्वीटर पर बहुत से लोग उसका सपोर्ट करते हैं पर अगले दिन पहुँचते सिर्फ 3 लोग हैं। पृथ्वीराज को फ़ेमस होने की उम्मीद टूटती नज़र आती है, पर वो ऐसे ही नहीं छोडने वाला। वो इन तीन लोगों के साथ क्रांति की योजना बनाता है। ये चार लोग एक स्कूल में जाकर बच्चों और स्टाफ को बंधक बना लेते हैं। यही वो स्कूल हैं जहाँ गोपी की नौकरी का पहला दिन है। इनके साथ भाषा एक समस्या है, इन लोगों को कन्नड नहीं आती और स्टाफ को हिन्दी। सिर्फ गोपी ही अपनी टूटी-फूटी हिन्दी के साथ इनके ब्रिज है। ये नौसिखिये क्रांतिकारी हैं जिन्हें ये भी नहीं पता कि उनकी मांगें क्या हैं। सीएम के सचिव को फोन करके चारों अपनी मांगें लिखते हैं जो एक-दूसरे का ही विरोध करती नज़र आती हैं। बीफ बैन करो, पब में शराब बंद करो, पब रात को 2-3 बजे तक चालू रखो, अमिताभ बच्चन की फिल्में बैन करो वगैरह वगैरह। बस ऐसे ही फिल्म चलती है जिसमें टाइम पास के लिए प्रोटेस्ट करने आए ये लोग ऊबने भी लगते हैं। 

बहुत सी चीजों पर व्यंग्य किया गया है। परिस्थितियाँ गुदगुदाती हैं, हालाँकि ठठाकर हँस पड़ें ऐसा कुछ नहीं है पर फील गुड फिल्म है। कमियाँ भी बहुत हैं। बजट की कमी तो नज़र आती ही है पर स्क्रिप्ट में भी हैं। सबसे बड़ी बात अमिताभ को रिजैक्ट कर पृथ्वीराज को हिन्दी सेवा में चुना गया जबकि पृथ्वीराज को हिन्दी ठीक से बोलना नहीं आता। 

गोपी प्रतीक है उन अच्छे लोगों का जिनकी उस अच्छाई की वजह से ही कद्र नहीं है। 

कमियाँ तो हैं मगर फिर भी देख कर अच्छा लगता है। 

#OneCutTwoCut #kannadafilm

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