2007 में एक फ़िल्म आई थी - "भेजा फ्राई".
ग़ज़ब फ़िल्म थी, एक ही लोकेशन पर पूरी फिल्म लिख देना हर छोटे निर्माता की डिमांड होती है। ऐसी कहानी को मनोरंजक बनाये रखना बहुत challanging काम है।
ख़ैर, फ़िल्म की कहानी है कि कुछ अमीर लोग सप्ताहांत पर अपने मनोरंजन के लिए एक नमूना पकड़ते हैं और उसके मज़े लिए जाते हैं पर उसे ये बताया जाता है कि उसके पास अद्वितीय प्रतिभा है।
गेम अच्छा है पर घातक साबित हुआ है जब अम्बानी और अडानी ने इसे असल में खेला। उनका नमूना अब पूरे देश का मनोरंजन करवा रहा है और हर एक का टाइम पास करवा रहा है, हफ्ते के सातों दिन। अब तो अमीर छोड़िए, गरीब भी काम-धंधा छोड़ उसका खेल देखने में मशगूल है।
हम फ़िर भटक गए। तो फ़िल्म में रजत कपूर और हर्ष छाया हैं अम्बानी और अडानी, आय मीन रजत कपूर हैं थडानी और विनय पाठक बने हैं भारत भूषण, वो नमूना जो इस खेल को उल्टा घुमा देता है और थडानी को लेने के देने पड़ जाते हैं। भूषण अपने आप को बहुत बड़ा गायक समझता है पर दरअसल वो असाधारण रूप से पकाऊ आदमी है, बस यही उसका टैलेंट है थडानी के लिए। वो फ्राइडे शाम उसे अपने घर बुलाता है पर परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि वे वहाँ जा नहीं पाते जहाँ उन्हें जाना था। इसके बाद भारत भूषण एक के बाद एक जो ब्लंडर करता है वो दर्शक को उनके साथ उसी घर में खींच लेता है। हालाँकि भूषण पकाऊ है लेकिन हमें उसे देखने में बहुत मज़ा आता है क्योंकि वो सिर्फ पकाऊ नहीं, अव्वल दर्ज़े का बेवकूफ़ भी है। सारी विशेषताएं किसी से मेल खा रहीं हैं ना? इसमें मेरी गलती नहीं है, प्लीज।
मुख्य कहानी में गुँथी हुई हैं अन्य कहानियां जो मुख्य कथानक को आगे बढ़ाती हैं।
मेरे ख़याल से अधिकांश लोगों ने इसे देखा होगा, अगर नहीं तो सिलेबस पूरा करिए, देख लीजिए। इसी फिल्म ने विनय पाठक को स्टारडम दिया था। रजत कपूर तो हमेशा की तरह लाजवाब ही हैं। रणवीर शौरी, रजत कपूर की टीम का अभिन्न हिस्सा हैं। सारिका अरसे बाद नज़र आईं थीं और बहुत अच्छी भी लगी हैं, उसी समय उनकी एक और फ़िल्म "मनोरमा सिक्स फ़ीट अंडर" भी आई थी और इसे उनकी दूसरी पारी की शुरुआत माना जा रहा था पर इसके आगे वे फ़िर गायब हो गईं।
हर्ष छाया को मैंने पहली बार TV सीरियल स्वाभिमान में देखा था। वो शायद उनकी शुरुआत ही थी। मुझे तभी से इस अभिनेता में एक बात नज़र आती है पर जाने क्यों उन्हें कभी कोई बड़ा और अच्छा किरदार नहीं मिला?
फ़िल्म के निर्देशक सागर बेल्लारी की ये पहली फ़िल्म थी। बाद में पता चला कि फ़िल्म किसी विदेशी फ़िल्म की नकल थी और बेल्लारी की क्षमताएँ सामने आईं जब उन्होंने इसका सीक्वल बनाया जो वाकई में भेजा फ्राई था।
मैंने इतना इसलिए लिखा क्योंकि मैंने कुछ ही दिनों पहले फिर से देखी और मुझे फिर उतना ही मज़ा आया। फ़िल्म वाकई स्ट्रेस बस्टर है।
ये उस दौर की फ़िल्म है जब बॉलीवुड में मेनस्ट्रीम से अलग एक नई धारा की शुरुआत हो रही थी, मल्टीप्लेक्स विस्तार पा रहे थे। छोटी, स्टार्स रहित फिल्में बनने लगीं थीं और सफल भी हो रही थीं। चरित्र अभिनेताओं की भी पूछ परख बढ़ने लगी थी।
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