बाबा सहगल - देश का पहला रैपर


 

"ध्यान मुझे आया मैंने पूछा नहीं नाम

मैंने छी छी छी क्यूँ पूछा नहीं नाम

अरे भूल गया मैं, क्यूँ भूल गया मैं

मैंने इक लड़की का नाम नहीं पूछा?

फ़्रेंड्स ये सुनेंगे और हँसेंगे 

कहेंगे 'ओह वॉट आ शेम यार'

तूने इक लड़की का नाम नहीं पूछा

रिब बा बा रिबाबा बा रिरिरारा

रिब बा बा रिबाबा बा रिरिरारा"

किसको याद आया इन पंक्तियों से पूरा गाना?

90s वाले बेहतरीन लोगों को ज़रूर याद होगा जब इस गीत की धूम मची थी। नया-नया एमटीवी आया था, इंडी-पॉप अपने उरूज़ पर था और उसी में भारत का पहला रैप सिंगर उभरा था - बाबा सहगल। 

इस गीत के आने के बाद कुछ सालों तक बाबा का जलवा रहा। हालाँकि बाबा सहगल किशोर कुमार को सुनते थे और उन्हीं की तरह गायक बनना चाहते थे पर ज़िंदगी के मोड़ बड़े ही अंधे होते हैं। दिल्ली में नौकरी करने वाला "हरजीत सहगल" गायक बनने की हिम्मत जुटा रहा था नौकरी करते हुए और जब हिम्मत जुटी तो पहुँच गया मुंबई। मुंबई में एक दोस्त के पास टिका जो म्यूजिक कंपनी "मैग्नासाउंड" में काम करता था। अब देखिये, कुछ लोगों के लिए रास्ता किस तरह आसान होता है। हमारा कोई दोस्त कहीं किसी ऐसी जगह काम नहीं करता जिससे हमारे सपने पूरे हो जाएँ 🙁

तो इस दोस्त ने बाबा को मैग्नासाउंड के मालिक से मिलवाया, उन्होंने बाबा को सुना और उनका एल्बम निकालने को राज़ी हो गए। कैसा परी कथा की तरह लग रहा है। उनके दो एल्बम आए "दिलरुबा (1990)" और "अलीबाबा (1991)" और दोनों ही असफ़ल रहे। मैग्नासाउंड उन्हें टाटा बाइ बाइ कर दिया। अब टीवी पर अंतर्राष्ट्रीय संगीत सुना जा सकता था। एक दिन बाबा सहगल ने टीवी पर "आइस आइस बेबी" गाना देखा, उन्हें बहुत पसंद आया और उसी धुन पर उन्होंने तुरंत एक गाना लिखा और सीधे मैग्नासाउंड पहुँच गए। वहाँ ये गाना सुनाया जो उन्हें बहुत पसंद आया और मैग्नासाउंड ने अगले एल्बम की घोषणा कर दी। 

ये एल्बम था "ठंडा ठंडा पानी" और इस एल्बम ने ऐसी धूम मचाई कि बाबा स्टार बन गए। मैंने भी ये कैसेट खरीदी थी, हालाँकि बहुत कम ही सुनता था इसे। पहली बार इस एल्बम के गीत "दिल धड़के" का म्यूजिक विडियो बनाया गया। इसके बाद बाबा की रैप की रेहड़ी चल निकली और चलते-चलते बॉलीवुड भी पहुँच गई। उससे पहले एक concert में बाबा की मुलाक़ात मनी रत्नम और ए आर रहमान से हुई जो अपनी फ़िल्म रोजा का हिन्दी एल्बम लॉंच करना चाहते थे। बाबा ने मैग्नासाउंड के साथ मीटिंग करवाने का वादा किया, इस शर्त पर कि इस फिल्म में कम से कम एक गीत वे गाएँगे। मीटिंग हुई और मैग्ना साउंड ने रोजा के हिन्दी वर्शन के अधिकार ले लिए और बाबा को मिला "रुक्मणी रुक्मणी" जो रहमान के साथ गाया उनका इकलौता गीत है। मैंने भी जब सुना था तो सोचता रह गया था कि बाबा सहगल को क्यों लिया होगा रहमान ने। उसकी असली वजह ये थी। 

फिर बाबा हीरो बन गए शीबा के, फ़िल्म "मिस 420" में। इस फ़िल्म में संगीत अनु मलिक का था और उन्हीं के साथ गाया एक गीत "आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा" बहुत चला था।  बाबा की रेहड़ी बॉलीवुड में ही नहीं रुकी वो लुढ़कते=लुढ़कते अंडरवर्ल्ड के भाई लोगों तक पहुँच गई। भाई लोगों ने गल्ले में बहुत माल देखा तो अपने हिस्से के लिए बाबा को फोन करने लगे। बाबा ने उनको सीरियसली नहीं लिया लेकिन भाई लोगों ने इसी सीरियसली न लेने के कारण गुलशन कुमार की हत्या कर दी और गोलियों की आवाज़ से बाबा का दिल बैठ गया। बाबा भारत छोडकर सिंगापुर चले गए और वहाँ अपना सारा पैसा इन्वेस्ट कर दिया। इससे एक तो नुकसान ये हुआ कि यहाँ इंडस्ट्री से उनका संपर्क टूट गया फिर आगे बिजली ये गिरी कि उन्होंने जिस काम में इन्वेस्ट किया उसमें उनका पैसा डूब गया। सारी जमा पूंजी उनकी ख़त्म हो गैया रु वे फिर भारत आ गए। अब अंडर वर्ल्ड क्या ही ले लेगा उनसे। पर अब तक लोग उन्हें भूल चुके थे, यहाँ भी काम नहीं मिल रहा था। एक दिन एयरपोर्ट पर उदास बैठे थे और वहाँ से चिरंजीवी गुज़रे, उन्होंने बाबा को पहचान लिया और बातें करने लगे। बाबा ने अपनी परेशानी बताई, और अगले ही दिन चिरंजीवी ने अपनी एक तेलुगू फ़िल्म में उन्हें एक गीत दे दिया। तक़दीर ने फिर करवट ली और ये गाना हिट हो गया, और अब बाबा की रेहड़ी तेलुगू में लग गई। 

इन्सान को चुन्ने काटने की बीमारी बहुत पुरानी है। अच्छा-भला काम चल रहा था और बाबा को संगीत सीखने के लिए अम्रीका जाने के चुन्ने काटने लगे। और वे प्रस्थान कर गए अमरीका। वहाँ दो साल पता नहीं कौन सा संगीत सीखा पर इन दो सालों में इधर के दरवाज़े फिर बंद हो गए जो फिर कभी नहीं खुले। अब बाबा अपने पुराने दिनों की जुगाली यूट्यूब पर करते पाये जाते हैं। 

सच कहा है किसी ने "Truth is stranger than fiction"।

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