स्नो पियर्सर - मनु की ट्रेन


क्या देख लिया मैंने! रात के 12 बजे के बाद फिल्म स्टार्ट की कि थोड़ा मूड ठीक करके सो जाऊंगा 15-20 मिनट में लेकिन फिर नहीं सो पाया, फिल्म खत्म हो जाने के बाद भी...

मैंने parasite देखी तो हैरान रह गया filmmaker की सोच और समझ पर... Bong Joon Ho के नाम पर सर्च किया तो निश्चय किया ये फिल्म भी देखनी चाहिए और ये फिल्म भी जेहन पर छा गई। कोई इंसान कैसे सोच सकता है इतनी गहराई से और उसे फिल्मा भी लेता है उतनी ही गजब की विश्वसनीयता से। 

फिल्म देखकर एक गाना मुझे याद आया - "हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे, इक बाग़ नहीं, इक खेत नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे।" 

फिल्म के बहुत सारे फलसफ़ों में ये भी एक फलसफ़ा है। 

भारत में हमने कहानियाँ सुनी हैं कि प्रलय के समय मनु ने नाव बनाई उसमें जितने लोग, जीव, जन्तु चढ़ गए बस वही बचे और सृष्टि की उन्हीं से फिर शुरुआत हुई। 

यही कहानी बाइबल में नोह के नाम से है। पता नहीं किसने किससे लिया है पर पूरी दुनिया में मिथक लगभग समान ही होते हैं। बस यही आधार है इस फिल्म की  कहानी का। ग्लोबल वार्मिंग से निबटने के लिए पूरी दुनिया के देश एक साथ वातावरण में एक गैस छोडना प्लान करते हैं जिससे ये वार्मिंग खत्म हो जाएगी लेकिन इसे छोडते ही सब कुछ जम जाता है। एक तरह से आइस एज फिर से आ जाती है। सब कुछ खत्म हो जाता है। बचती है तो बस एक ट्रेन जिसे इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि उसमें जीवन बच जाये और वो हमेशा चलती रहे। उसी ट्रेन में क्लास divide है। आगे उच्च वर्ग है, पीछे गरीब भुखमरे, जिन्हें बस ज़िंदा रखा गया है। ये विद्रोह की कहानी है और सिस्टम की कहानी है और....बहुत सी बातों की कहानी है। इसे देखिये और इस एक व्यक्ति को दुआ दीजिये जिसके पास ये अद्भुत क्षमता है, कुछ अद्वितीय सोच लेने की।

अब दो शब्द dubbing वालों पर - ये कौन 5-10 लोग हैं जो हर फिल्म की ऐसी-तैसी फेर रहे हैं बरसों से। साले आधा मज़ा तो इनके डाइलॉग बोलने के लहजे से ही खत्म हो जाता है। ऐसा लगता है कोई मज़ाक चल रहा है। वही कुछ आवाज़ें हर फिल्म मे सुनाई देती है - ये बढ़ रहे हैं, इन्हें रोकना होगा, हे ये तुम क्या कर रहे हो...ओ मैं बस मज़ाक कर रहा था। 🤬🤬🤬🤬

मैंने फिल्म पहले हिन्दी में लगाई, दिमाग का दही बनने लगा तो इंग्लिश किया।

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