#समलैंगिकता के मुद्दे को संवेदनशीलता के साथ लेकिन मनोरंजक तरीक़े से प्रस्तुत करती शायद ये पहली ही फ़िल्म है। आयुष्मान खुराना और जितेंद्र कुमार की फ़िल्म “शुभ मंगल ज़्यादा सावधान” भी कुछ फूहड़ और उबाऊ थी। आम तौर पर इस तरह के पात्रों पर चुट्कुले बनाकर पेश किए जाते हैं। पहले तो ये पात्र बिल्कुल ही unreal हुआ करते थे, जिन्हें एकाध सीन में आँख मारते या ऐसी ही कोई हरकत करते हुए दिखाकर कॉमेडी create की जाती थी।
इस फ़िल्म में दोनों ही genders की समस्या को एक ही साथ दिखा दिया गया है। राजकुमार राव एक gay policeman है। उनका बड़ा परिवार है। वही मध्यमवर्गीय परिवार जो आजकल हर छोटे कस्बे वाली फ़िल्म में नजर आता है। और उस परिवार में ‘सीमा पाहवा’ न हो तो परिवार असली मध्यमवर्गीय लगता ही नहीं। अब तो वे मुझे भी अपनी मौसी लगने लगी हैं। उनके किरदार का काम, उनका चरित्र और हाव-भाव सब वही लिखे जाते हैं जो पिछले लेखक ने लिखे थे। ये मौसी अब स्टॉक कैरक्टर हो गई है। शार्दूल ठाकुर बॉडी बिल्डर policeman है, ऊपर से बिल्कुल tough मगर अंदर क्या है, किसी को नहीं पता और वो किसी को बता भी नहीं सकता।
परिवार वाले शादी के लिए चिल्ल-पों मचाए हुए हैं। परिवार के इस दबाव में बंदा बेहद परेशान है और उधर परिवार की चिंता भी वाजिब है कि शादी की उम्र निकली जा रही है। शार्दूल किसी न किसी बहाने घरवालों को रोके हुए है। यही हाल सुमि (भूमि पेडनेकर) का है। उसे लड़कों में कोई इंटरेस्ट नहीं है पर 31 की हो गई है तो परिवार वाले परेशान हैं।
शार्दूल को सुमि के बारे में पता चलता है। वो उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखता है। दोनों एक ही सिचुएशन में हैं, एक ही जाति के भी हैं, दोनों के लिए विन-विन सिचुएशन है। और फिर परिवार की चीख़-चिल्लाहट से भी निजात। शादी हो भी जाती है, पर ज़िंदगी इंसान के सोचे रास्ते पर थोड़े ही चलती है, उसका अपना चलन है। दोनों ने सोचा था कि शादी करके सबसे दूर बिना किसी परेशानी के जैसे चाहें अपनी ज़िंदगी जिएंगे। दोनों के अपने affairs, परिवार वालों का अब बच्चे के लिए दबाव ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करता है कि मुसीबतें बढ़ती ही जाती हैं।
बेशक़ ये कान्सैप्ट ही कॉमिक है पर कान्सैप्ट को शुरू से आखिर तक एक जैसा बनाए रखना भी एक चुनौती है।
फ़िल्म सिर्फ़ गुदगुदाती नहीं, बल्कि हँसाती है। कई जगह बरबस मेरी हँसी फूट पड़ी। बेशक इसमें राजकुमार राव और अन्य कलाकारों के अभिनय का बहुत बड़ा हाथ है। सभी का काम जबर्दस्त है। हँसते-हँसाते कई बार फ़िल्म भावुक भी हो जाती है। कुछ cliché का सहारा भी लिया गया है। पर कुल मिलाकर फ़िल्म अच्छी बनी है। पर रिलीज़ होकर फ्लॉप भी हो गई। अब यूट्यूब पर ही उपलब्ध है। बॉय कट गैंंग से ये कैसे छूट गई?
राजकुमार राव फिलहाल इंडस्ट्री के सबसे उम्दा अभिनेताओं में एक हैं, भूमि पेडनेकर इस तरह के किरदारों के लिए पहली पसंद होती हैं। राजकुमार राव की माँ का किरदार बहुत अच्छा लिखा गया है और उसे शीबा चड्ढा ने बहुत बढ़िया तरीके से निभाया है। गुलशन देवैया surprise एलेमेंट हैं। ये अच्छा अभिनेता अब तक अंडर रेटेड है।
मेरा इस विषय में ज्ञान थोड़ा कम है लेकिन मैंने अपने आसपास 2-3 लोग इस तरह के देखे हैं। पहले मैं भी इन्हें pervert ही मानता था। बहुत से लोग जो ऐसा मानते हैं वो समाज की कंडिशनिंग की वजह से, बचपन से जो देखा सुना बस वही दिमाग में घर कर जाता है। हमारे यहाँ तो हाथ धोना सिखाने के लिए भी करोड़ों के विज्ञापन बनाने पड़ते हैं, फिर ये तो बहुत बड़ी बात है।
फिल्म के संवाद अच्छे हैं, निर्देशन भी बढ़िया है। संगीत की तो अब बातें न ही किया करें तो बेहतर है। मुझे याद भी नहीं कि गाने भी थे फ़िल्म में।
#badhaido #RajkumarRao #BhumiPednekar
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