इंसाफ़ – दूसरी किस्त


 

इंसाफ़ कौन करेगा?

मैं करूँगा...

इंसाफ़ – दूसरी किस्त

जागीरा अपने दारू के अड्डे पर बैठा है, उसका दोस्त आता है जो उसी की दारू पीकर उसी से पैसे लेकर जुआँ खेलने अंदर चला जाता है। दोनों ही अधेड़ावस्था को कब का पीछे छोड़ चुके दिख रहे हैं पर डाइरेक्टर मानने को ही तैयार नहीं है। जागीरा की बीवी गर्भवती है, उसे प्रसव पीड़ा होने लगती है। ऐसे में जागीरा के उसी दोस्त की माँ अकेली उसके पास बैठी है और बड़बड़ा रही है। दोस्त की बहिन भी वहीं है। माँ बहिन को जागीरा को बुलाने भेज देती है, जबकि अपने बेटे को कई बार इस गुंडे से दोस्ती के लिए गरिया चुकी है। अब ऐसे ही तो माँ बहिन हो जाती है।  

उधर दोस्त पी-पा के जागीरा के अड्डे के पिछले दरवाजे से निकल लेता है और अगले दरवाज़े से बहिन आ जाती है, और इस तरह नज़ाकत से जागीरा को उसकी बीवी की तबीयत खराब होने की खबर देती है जैसे मालूम हो कि आगे क्या होने वाला है। जागीरा ने अभी कल ही तालाब में छपाक छपाक किया था एक लड़की के साथ, और इस भुक्खड़ को फिर भूख लग आती है। वो दरवाजा बंद कर देता है और....

उधर माँ रोहिणी हत्तंगड़ी के पास बैठी बैठी बेमतलब की बातें करती रहती है और इन बातों से बोर होकर बच्चा खुद ब खुद बाहर निकल आता है। न तो उसको डॉक्टर की ज़रूरत पड़ी, न ही इस औरत ने हाथ-पैर ही हिलाये। बच्चा समझ गया कि इधर सिर्फ बोल बच्चन चलने है, पैदा होना है तो आत्मनिर्भर होना होगा। 

पूरी रात हो गई लड़की वापस नहीं आई पर माताजी इतनी व्यस्त रही बिना काम से कि एक बार भी सवाल नहीं आया कि लड़की का क्या हुआ। सुबह उसका नालायक बेटा आकर बिगड़ने लगता है। तभी बेटी भी आ जाती है और ये घोषणा करती है कि भाई ने जागीरा से जो क़र्ज़ा लिया था वो उसने मुझसे वसूल कर लिया और भाई को ऑफर देती है कि आगे भी क़र्ज़ा लेता रह, मेरे से वसूल करता रहेगा वो। पर भाई इस बात को अन्यथा लेकर छोटा सा चक्कू लेकर जागीरा को मारने निकल पड़ता है, और नल्ला उधर जागीरा के चक्कू से मारा जाता है।

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