मादक मधुरता - आशा भोंसले जन्मदिन विशेष

 


आज सुबह जब मैं अमज़ोन म्यूजिक पर playlists देख रहा था तो मुझे पुराने दिग्गजों की बहुत सी playlists मिलीं पर आशा की दो मिलीं वो भी मन्ना डे और ओ पी नय्यर के साथ। ऐसा नहीं है कि आशा जी को सम्मान और प्यार नहीं मिला, बहुत मिला लेकिन बतर्ज़ “बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फ़िर भी कम निकले”, कुछ कमी सी रह ही गई। मेरे हिसाब से आशा जी लता जी से ऊपर नहीं तो बराबरी की तो हक़दार हैं ही। लता अगर आकाश है तो आशा धरती हैं। लताजी के गीतों में दैवीय तत्व हैं मगर आशा के गीत इंसानी हैं, उनमें पंचतत्वों की ख़ुशबू है। लता और आशा में अगर अंतर है तो सिर्फ़ महसूस करने का है जैसे गुलाब और चन्दन में है। दोनों ख़ुशबुएँ हैं पर अलग हैं, दोनों का एहसास अलग है। 

आसान तो लता जी के लिए भी नहीं रहा अपना स्थान बनाना पर आशा के लिए कहीं ज़्यादा मुश्किल था। जिस दौर में लता ने बाकी सभी आवाज़ों को हाशिये पर धकेल दिया था या चलन से बिलकुल बाहर ही कर दिया था, उस दौर में अपनी जगह बनाना वाकई बेहद मुश्किल काम था। शुरू में जो मादकता आशा की पहचान बनी, वो उस वक़्त गीता दत्त की पहचान थी, आशा को वही गीत मिलते थे जो लता और फिर गीता के छोड़े हुए हों। लड़खड़ाते क़दमों से जो सफर शुरू हुआ था उसे मजबूती दी दो घटनाओं ने। पहली जब ओ पी नैयर ने लता के साथ कभी काम न करने की कसम खाई और दूसरी जब एस डी बर्मन का लता से झगड़ा हुआ और 5 सालों तक दोनों ने साथ काम नहीं किया। नय्यर साहब धीरे-धीरे गीता दत्त से आशा की तरफ़ मुड़ गए और शुरू हुआ इन दोनों का सुरीला सफ़र। इस साथ ने आशा के कैरियर को नई ऊँचाइयाँ दीं। वहीं लता से मन मुटाव के चलते बर्मन दादा भी आशा की तरफ़ मुड़ गए। पर दूसरे संगीतकार उतना तवज्जो नहीं दे रहे थे। हाँ, कैबरे हो या वैसा ही चुलबुला कोई गीत हो तो ज़रूर उन्हें बुलाया जाता था। आर डी बर्मन के साथ संगीत के एक नए युग की शुरूआत हुई और आशा को इस नई तरह के संगीत में बिलकुल नई तरह के गीत मिले हालांकि आशा को पंचम से ये शिकायत रहती थी कि सबसे अच्छे गीत तुम दीदी को देते हो। लेकिन जिस तरह लता के गाये गीत कोई और नहीं गा सकता, वैसे ही आशा के गीत भी किसी और के बस की बात नहीं। किसी और की आवाज़ में ये गीत मुर्दा जिस्म से ही लगते हैं जिनमें रूह नहीं है। आशा की ये मादक गीतों की गायिका वाली पहचान बदली खय्याम ने जब उन्होने “उमराव जान” के गीत उनसे गवाए। शास्त्रीय रागों पर आधारित इन गीतों को जिस तरह से आशा ने निभाया था और जो असर उनमें पैदा किया था वो अपने आप में अद्वितीय है। आशा ने हर तरह से अपने आप को साबित किया है, फिर चाहे वो “मांग के साथ तुम्हारा” हो, “पिया तू अब तो आजा”, “मेरा नाम है शबनम”, “इन आँखों की मस्ती के” या फिर “मेरा कुछ सम्मान” हो। और रहमान के साथ संगीत के नए जन्म में “रंगीला रे”, “तन्हा तन्हा”, “ओ भँवरे”, “मुझे रंग दे” या “कहीं आग लगे लग जाये” को आशा की आवाज़ ने अमरता ही दे दी है। 

हम लोग खुशनसीब रहे कि बचपन से हमारे कानों में ये शहद घुलता आया है। आज आशा जी के जन्मदिवस पर उन्हें ढेरों शुभकामनाएँ। 

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