Mad Max: The Jambudveep Road


एक था जम्बूद्वीप, आई मीन “वेस्टलैंड”। उस पर राज चलता था “इम्मोर्टन जो” का जिसे वहाँ के लोग अमर मानते थे। उसने कई बरसों में लोगों में ये विश्वास पैदा कर दिया था कि वो अमर है, और जो उसके लिए मरेगा उसे स्वर्ग में जगह मिलेगी। इस स्वर्ग को वे वल्हाला कहते थे। इसके परम भक्त इसके कहने पर भौंकते थे, इसके कहने पर काटते थे। इन सबकी बुद्धि उसने बहुत पहले ही हर ली थी। पहले वो 50 दिन के लिए आया था, ये कहकर कि पचास दिन में अगर जो कहा है वो न कर दिया तो इस वेस्टलैंड के चौराहे पर मुझे जूते मारना। पर उसके पास अमरत्व की कहानियाँ थीं, स्वर्ग की, धर्म की, नफरत की, और जाने कितनी कहानियाँ थीं जो औसत बुद्धि के आदमी को फुसला सकती थी और कम बुद्धि को तो गुलाम बना सकती थीं। पचास दिनों में बस ये हुआ कि अब चौराहे वाली बात लोग नज़र अंदाज़ करने लगे। उसका हौसला बढ़ा, उसने अब थोड़े मनमाने फैसले लिए, जैसे उसे रात कोई खयाल आता और सुबह वो उसके लिए नियम बना देता। इस क्रम में कई लोगों की जान चली गई, लेकिन उसने एक अद्भुत परिवर्तन देखा कि अब लोग अपने आसपास के मरे हुए लोगों की मौत को उसके लिए justify कर रहे हैं। उसकी अफीम काम कर रही थी। उसका हौसला और बढ़ा, अब उसके जो मन में आता वो करता और जब भी करता तब अफीम का डोज़ बढ़ा देता ताकि लोग गाफिल रहें और उसके बचाव में आते रहें। 

इस तरह उसने धीरे-धीरे सबकी बुद्धि हर ली और बुद्धि की जगह गोबर भर दिया। उसके परम भक्त जो थे उन्हें वॉर बॉय्ज़ कहा जाता था, ये लोग एक इशारे पर आग में भी कूद जाते थे, ये नारे लगाते थे कि रोटी नहीं चाहिए, रोजगार नहीं चाहिए, मंदिर चाहिए और अपने आप को मौत के हवाले कर देते थे, ये सोचकर कि हमारा डंकापति 'जो', हमें स्वर्ग के दरवाजे तक लेकर जाएगा और हम अप्सरा के हाथों से शराब पिएंगे। इस सबके पीछे वो सारे संसाधनों पर कब्जा करता गया। वेस्टलैंड में सूखा था, लोगों के पास खाने को नहीं था। उसके पहाड़ों पर हरियाली थी, उसके पास पानी के और तेल के भंडार थे। उसने इनका कंट्रोल अपने दो “मैन इटर्स” के हाथ में दे रखा था। नियत समय पर विशाल पाइप खुलते थे और उनमें से पाँच किलो राशन, मेरा मतलब पानी आता था आम जनता के लिए। उसने एक, एक आँख वाला बाबा भी रखा था जो लोगों को आगाह करता था कि ज़्यादा पानी की आदत मत डालो। इससे घुटने खराब होते हैं। एक बार उसके लोग “मैक्स” को पकड़ लाये, और किस्मत से उसी समय फ्यूरिओसा वहाँ से जो की पाँच बीविओं को लेकर भाग निकली। ये दोनों मिल गए और फिर शुरू हुई चेज़, दस साल लंबी चेज़। फ़्योरिओसा को लगा था कि उसे वही देश फिर मिल सकता है जहां भाईचारा था, प्यार मोहब्बत थी, तरक्की थी, अमन चैन था और सौहर्द्र था। लेकिन 'जो' ने सब खत्म कर दिया था। अब वो धरती बची ही नहीं थी। अब अगर कुछ हो सकता था जो बचा है उसी को लेकर फिर से इस “वेस्टलैंड” को बनाना। बहुत मुश्किल था इन दो ही लोगों के लिए 'जो' की इस ज़ोम्बी सेना से लड़ना, कई बार हारने के बाद आखिर जीत होती है और 'जो' को मार कर ये लोग citadel पहुँचते हैं। वहाँ भक्तों को ये देख कर जबर्दस्त सदमा लगता है कि डंकपति चल बसे हैं। उनके चंगू-मंगू भी निकल लिए हैं। जनता को समझ आ जाता है कि 'जो' झूठा था, मक्कार था, “नीच” था। जनता एक स्वर से इन लोगों को ऊपर लेने का शोर मचाती है और किले के लोग इन्हें ऊपर ले लेते हैं। 

पानी के पाइप खुल जाते हैं और जनता जितना चाहे उतना पानी लेती है। 

उम्मीद की जीत होती है, वेस्टलैंड के एक बार फिर उपजाऊ होने की उम्मीद साकार होती है, नफरत की हार होती है। 

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