बंदिश बेण्डिट्स सीज़न 2

 


हाँ तो ब्रोस अँड ब्रोस्निज, अनपॉपुलर ओपिनियन है पर है। मैंने “बंदिश बेण्डिट्स 2” के चार एपिसोड देख लिए और अब आगे देखने का कोई मोटिवेशन मिल नहीं रहा। 80 के दशक में आपने फ़िल्में देखी होंगी “घर घर की कहानी”, “जैसी करनी वैसी भरनी”, “स्वर्ग यहाँ नरक यहाँ” वगैरह वगैरह जिनमें कहानी आगे बढ़ती थी तानों से, गलतफहमियों से, लोगों की चुगलखोरियों से। बस यही सब देखने को मिलेगा आपको इस दूसरे मौसम में। वैसे तो पहला एपिसोड देखकर ही दिमाग की लंका लग गई थी पर सोचा इतनी जल्दी कोई राय नहीं बनानी चाहिए – “कंट्रोल उदय कंट्रोल”। तो आगे तीन एपिसोड और निबटा दिये। बीच में थोड़े से समय के लिए ऐसा लगा भी कि शायद मेरी राय गलत हो पर चौथा एपिसोड होते-होते मैं ढह गया, जब दो एपिसोड में चौथी बार तमन्ना राधे से नाराज़ होकर अपने सहपाठी के साथ हमबिस्तर होने आ गई। मल्लब चल क्या रिया है ये? इश्क़ में ग़म ग़लत करने का ये गज़ब तरीका देखा भाई। अब तक देखा था कि प्रेमी या प्रेमिका से नाराज़ होकर दारू पीना, तोड़-फोड़ करना, लड़ाई-झगड़ा करना पर ये लड़की तो सीधे आती है, उस लड़के का हाथ पकड़ती है और ले जाती है।

चलिये कायदे से पहले एपिसोड से छीलते हैं। वैसे ये कोई थ्रिलर नहीं है तो थोड़ा-बहुत स्पोइलर चलेगा। प्रसंग ये है कि पंडित जी गुज़र चुके हैं क्योंकि शायद नसीर साहब ने आगे काम करने से इंकार कर दिया होगा, या फिर इस बार डूड्स गले तक भर रखे हैं कहानी में तो वे फिट नहीं हो रहे होंगे। पंडित जी के जीवन पर एक छिछोरे लेखक ने किताब लिखी है और इतनी बड़ी किताब में एक ही प्रसंग लिखा है कि पंडितजी ने एक लड़की के अपने से अच्छा गाने पर उसे बहू बनाकर उसका गाना बंद करवा दिया। अब साहब किताब के विमोचन में पंडितजी के पूरे परिवार की उपस्थिति में मंच से यही एक बात बोली जाती है। कोई सैन्स है इस बात का? किसी की जीवनी आपने लिखी है और उसका पूरा परिवार मौजूद है तो कीचड़ ही उछालोगे? क्या इसीलिए किताब लिखी थी? भाई, कंट्रोल कर लेते, कम से कम विमोचन में तो मुँह से कुछ अच्छा ही उगल देते। उसके बाद दिखाया है कि टीवी न्यूज़ पर, और शहरों में पंडितजी की थू-थू होने लगती है। विद्यार्थी उनके घर संगीत सीखने आना बंद कर देते हैं। लोग खुले आम ताने मारते हैं, जैसे 80s की फ़िल्मों में होता था ना कि अबला हीरोइन गली से गुज़र रही है तो महिलाएं उसे सुना-सुनाकर बातें कर रही हैं – “देखो वो जा रही है कुल्टा”। कुछ ऐसे ही पंडितजी की बातें हो रही हैं। महाराज, जो बरसों से इस परिवार के संरक्षक थे अचानक सब रिश्ते तोड़ लेते हैं, अरे महाराज जी एक बार पूछ तो लेते उनसे। और तो और, राधे के अंकल जी सारंगी बजाने मुंबई जाते हैं तो रिकॉर्डिंग से उनको निकाल दिया जाता है ये कह के कि “तेरा बाप चोर है, हाँय!”। अरे भाई कौन से गोले पे हो रही ये सब चिरकुट हरकतें? क्या आप लोगों में से किसी ने किसी भी शास्त्रीय संगीत के बड़े उस्ताद की आत्मकथा पढ़ी है? हर इंसान के जीवन में कुछ विवादित चीज़ें होती हैं, क्या 300 पन्नों की किताब के एक पन्ने पर लिखी ऐसी किसी घटना से आप उनके परिवार का हुक्का-पानी बंद करने या उनके परिवार को ताने मारने निकल पड़ते हैं? और मुंबई की रिकॉर्डिंग में एक साज़िंदे के परिवार से किसी को क्या ही लेना-देना होता है? आजकल के संगीतकारों ने तो फ़िल्मी दुनिया के ही बड़े संगीतकारों को नहीं सुना है तो शास्त्रीय संगीत के उस्ताद को क्या ही सुनेंगे।  

तो आपने चार साल लिए इस दूसरे सीज़न को बनाने में, एक ढंग का मोटिवेशन तो खोज लेते कहानी का पहिया घुमाने के लिए। आपको राधे को मुंबई भेजना था तो दूसरे तरीके भी हो सकते थे। जिस तरह का टेंशन आपने पहले भाग में बनाया था, उसी से निकल आता कुछ। और सबसे भयंकर अपराध, जो सिरीज़ शास्त्रीय संगीत को पुनर्स्थापित करने के दावे के साथ बनाई गई थी, वो अब उसका मखौल उड़ाती नज़र आती है और रॉक, पॉप को पूरे ग्लैमर के साथ दिखा रही है। इसका कारण ये हो सकता है कि जब पहले भाग का संगीत हिट हुआ था तो हमारे जैसे आम आदमी ने उसे हिट करवाया था, उसके संगीत को सुनकर पर तिवारी जी जिस सर्कल में उठते-बैठते हैं वो elite क्लास हिप्स के झूठ सच बोलने में रुचि रखता है तो उस तबके ने रोज़-रोज़ कहा होगा, कि डूड, कौन सुनता है आजकल ये आ, ऊ...? कुछ वेस्टर्न मिक्स करो ब्रो और तिवारी जी घबरा गए, उन्होंने वही सब परोस दिया। यहाँ तक कि शंकर-एहसान-लॉय से भी तौबा कर ली और कुछ कराहती सी खुरदरी आवाज़ों को ले लिया।

तमन्ना किसी स्कूल में संगीत सीखने गई है, मज़े की बात ये है कि गई थी वो पंडित जी के संगीत से प्रभावित होकर पर सीख रही है वही संगीत जो वो स्टेज पर गाया करती थी, तो उस प्रेरणा का क्या किया बहिन? इधर राधे एक सड़क छाप सितारिस्ट के बैंड में शामिल हो जाता है जो जब देखो बड़े उस्तादों के खिलाफ़ ज़हर उगलता रहता है। उसका एट्टीट्यूड ऐसा है कि 5 मिनट भी उसके पास न बैठा जा सके। वो हर वक़्त राधे को जलील कर रहा है और राधे बिचारा घराना-घराना करके जलील हो रहा है। उधर दिव्य दत्ता मदाम स्कूल में संगीत सिखाती हैं जिसमें तमन्ना गई है पर उनकी ओवर एक्टिंग ऐसी है कि जब स्क्रीन पर आती हैं समझ ही नहीं आता कि साला महसूस क्या करना है। दिव्य दत्ता ने शायद अपने जीवन में पहली बार ओवर एक्टिंग की है वरना वे बेहतरीन अभिनेत्री हैं। उधर राधे की माँ और अतुल कुलकर्णी भी एक साथ रियाज़ करने लगते हैं और इन तीनों bands को बारी-बारी से हम देखते रहते हैं जिसमें हमारी बैंड बज जाती है। 

चार एपिसोड हो गए पर अब तक कहनी कहीं नहीं जा रही है, कोई खास conflict भी नहीं पैदा हुआ है जैसा पिछले भाग में हुआ था। सब अपने ही रोने-धोने में मगन हैं। और सबसे बड़ा गुनाह जिसके लिए मेरा गालियाँ देने का मन करता है – बहुत ही खराब संगीत। पहले भाग के गीत मैं आज भी सुनता हूँ, खास तौर पर “विरह”; पर इसमें बस शोर है। “गरज बरस” को भी रॉक बना कर पेश कर दिया है। शास्त्रीय संगीत को अपडेट करने का जो मैसेज दिया जा रहा है वो गलत है, ठीक है कुछ चीज़ें बदली जानी चाहिए लेकिन इतना भी नहीं कि वो रॉक के रहमो-करम पर हो जाए। संगीत में आत्मा गायब है। 

लानत है!

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