American Crime Story - Best courtroom drama

 


“अमेरिकन क्राइम स्टोरी” पर यूं ही भटकते-भटकते नज़र पड़ी और मैंने देखना शुरू कर दिया। इससे पहले न तो मैंने कभी इस सीरीज़ का नाम सुना था, और न ही मुझे उस केस के बारे में कोई जानकारी थी जिस पर ये सीरीज़ बनी है। ये एक असल मुक़दमा था जो उस वक़्त पूरे अमेरिका की सनसनी था।

1994 में अमेरिका के मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी “ओ जे सिम्पसन” पर अपनी पत्नी और एक और लड़के की हत्या का आरोप लगा था। लड़का उसे उसका चश्मा देने आया था जिसे वह एक कॉफी हाउस में भूल आई थी। पत्नी अपने दो बच्चों के साथ अलग घर में रहती थी। सिम्पसन के खिलाफ वो कई बार domestic violence की शिकायत कर चुकी थी। 

पुलिस को सिम्पसन के खिलाफ़ पर्याप्त सबूत मिलते हैं और उस पर मुक़दमा दर्ज किया जाता है। जब सिम्पसन को लगता है कि जैल जाना ही पड़ेगा तो वो एक पिस्टल अपने सर पर तान कर मरना चाहता है। उसका एक दोस्त उसे कार में बैठा कर ले जाता है। सिम्पसन के मन में मरने का खयाल भी आता है और उसमें गोली चलाने की हिम्मत भी नहीं है। पुलिस को कार के बारे में पता चलता है और पुलिस कि कई कारें उसका पीछा करने लगती हैं। चूँकि सिम्पसन आत्महत्या की धमकी दे रहा है तो उसकी कार को कोई रोकता नहीं है, बस कुछ दूरी बनाकर पीछे चलते हैं। सिम्पसन की कार दिन भर शहर के चक्कर काटती रहती है और पीछे-पीछे पुलिस भी। इस चैस को पूरे अमेरिका में लोगों ने टीवी पर लाइव देखा था, और इसी चैस ने इस केस की तरफ लोगों का ध्यान दिलाया। आखिर सिम्पसन सरेन्डर करता है और मुक़दमा शुरू होता है। सिम्पसन का वकील है शिपेरो (जॉन त्रावोलटा)। पुलिस का केस बहुत मजबूत है, उसमें बचने की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आती तब शिपेरो एक काले अमेरिकन वकील जॉन को hire करता है, केस को रंगभेद का ऐंगल देने के लिए क्योंकि सिम्पसन भी ब्लैक है। बस यहीं से मुक़दमें के कई पेंच आने शुरू हो जाते हैं। हम देखते हैं कि कैसे वकील कानून का मज़ाक बनाते हैं, कैसे जाति, धर्म, नस्ल बेईमान का साथ देते हैं, हत्यारों के बचने का रास्ता बनते हैं। खैर, अपने देश में तो ये हम देखते ही आ रहे हैं। ये एक कोर्ट रूम ड्रामा है जिसमें किरदारों के व्यक्तिगत जीवन को बस उतना ही छुआ गया है जितना जरूरी है। मैंने अब तक जितने कोर्ट रूम ड्रामा देखे हैं, उनमें मुझे ये सबसे अच्छा लगा। केस बार-बार इधर से उधर झूलता रहता है, और दर्शक को स्क्रीन से चिपकाए रखता है। सबसे बड़ा आश्चर्य रहा, पूरी सिरीज़ में एक भी अंतरंग दृश्य न होना और उसके बिना ही कहानी बहुत अच्छी लगती है, दर असल कहानी की डिमांड बहुत कम मामलों में वाजिब excuse होता है। जैसे आजकल गालियों को कहानी की डिमांड कह कर भरा जाता है, वरना “घातक” जैसी फ़िल्म बिना गाली के वो असर छोडती है जो दूसरी सभी गालियों वाली फ़िल्में नहीं छोड़ पाती।

ये पहला केस था जो पूरा टीवी पर लाइव दिखाया गया था और, किसी भी टीवी कार्यक्रम से ज्यादा दर्शक इसे मिले थे। वकीलों ने जो घिनौना तरीका अपनाया इस केस को जीतने के लिए उसने अमेरिका को दंगों के मुहाने पर ला खड़ा किया था, और अमेरिका डरा हुआ था कि दंगे हो गए तो? इन्हें हमसे सीखना चाहिए, हम तो नाश्ता करते हैं दंगों का। यहाँ तो दंगों के आधार पर लोग पॉवर में आ जाते हैं। वहाँ हत्या के आरोपी के खिलाफ उसके आसपास के रहवासी खड़े हो जाते हैं “गो बैक” के नारे लगाने, restaurant उसे खाना देने से इंकार कर देता है, जबकि वो बहुत रईस आदमी है।। ये लोग क्या खा कर हमसे मुकाबला करेंगे।। यहाँ तो जितना बड़ा आरोप लगे, इंसान उतना ही बड़ा आदमी बन जाता है, mass murderer ऊंचे से ऊंचे पद पर पहुँच जाता है... और जनता खुद उसके लिए लड़ती है, उसे लड़ने की भी जरूरत नहीं। अब तो और भी चार कदम आगे निकल गए हैं, जनता अदालतों को भी गाली देने लगी है, उसने जो फैसला कर लिया वही सही है। इसीलिए अमेरिका को सबसे लोकतान्त्रिक देश कहा जाता है। हालांकि loopholes तो हर जगह मौजूद हैं पर हम loopholes को ही सही मानते हैं, हमें सच पचता ही नहीं। वहाँ दो जानें जाने पर बवाल हुआ, यहाँ तो गंगा भर गई थी लाशों से फ़िर भी लोग मस्त हैं, बल्कि अपने नेताओं की तरफ़ से खुद सफ़ाई भी दे रहे हैं।

फ़िल्म को प्रोड्यूस किया है “जॉन ट्रावोल्टा” ने। जॉन अपने समय के सुपर स्टार रहे हैं और प्रोड्यूसर भी हैं, फ़िर भी इस सिरीज़ में उनहोंने कोई बहुत महत्वपूर्ण किरदार नहीं लिया, उनके किरदार से बड़े दूसरों के किरदार हैं। देखिये एक बार फ़िर वही मुद्दा आ गया। मैंने एक निर्माता के साथ काम किया था, जो ख़ुद हीरो भी था उसी में, उसने अपने एट्टीट्यूड से जो सत्यानाश किया उस कहानी का कि उसे बंद ही करना पड़ा। उसने अपने बड़े बालों को न कटवाने के लिए कहानी में ही फेरबदल कर दिया। हमारे यहाँ अहंकार सबसे बड़ा होता है, कहानी से, व्यक्ति से, समाज से, देश से, दुनिया से, सबसे। यहाँ oceans 11 जैसी फ़िल्म बन ही नहीं सकती क्योंकि हमारे मूल में विचार है “उसकी कमीज़ मेरी कमीज़ से सफ़ेद कैसे?”। इस विज्ञापन को बनाने वालों बिलकुल सही नब्ज़ पकड़ी थी, यही कुंठा हमारी पहचान है, बाकी सब बकवास है।

ख़ैर, सिरीज़ न देखी हो तो देख डालिए। मेरी राय में तो बेहतरीन है।   

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टिप्पणियाँ

  1. बेनामी12:08 pm

    अब यही देखेंगे

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  2. बिल्कुल सही कहा, यहां इगो इतनी रहती है कि फिल्म या सीरीज में कई मिनट तक तो नामों की लिस्ट ही चलती रहती है....

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